जयपुर

कोरोना (Corona) का बहाना कर प्राचीन मंदिर (ancient temple) समूहों का मूल स्वरूप बिगाड़ने के मामले में पुरातत्व विभाग (archeology department) नहीं पेश कर रहा उच्च न्यायालय (high court) में जवाब

कोटा झालावाड़ के अति प्राचीन मंदिरों (ancient temple) का मूल स्वरूप बिगाड़ने के मामले में बुरा फंसा पुरातत्व विभाग (archeology department) अब कोरोना (corona)के बहाने राजस्थान उच्च न्यायालय (high court) में जवाब पेश करने से बच रहा है। उच्च न्यायालय की चीफ जस्टिस चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंति और जस्टिस सतीश कुमार शर्मा की बैंच ने इस मामले में जांच कर 31 मार्च तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।

उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद पुरातत्व विभाग ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित कर इस मामले की जांच कराई और जांच कमेटी ने रिपोर्ट पुरातत्व निदेशक को सौंप दी। बताया जा रहा है कि जांच रिपोर्ट मिलने के बावजूद पुरातत्व निदेशक ने इस रिपोर्ट को उच्च न्यायालय में पेश नहीं किया।

इस दौरान कोरोना की दूसरी लहर के कारण फिर से लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन हटने के बाद 1 जून से पुरातत्व विभाग के सभी कार्यालय खुल गए थे। विभाग के कार्यालय खुले दो महीने होने को आए, लेकिन रिपोर्ट उच्च न्यायालय में पेश नहीं होने से अधिकारियों की नीयत पर सवाल खड़े हो रहे हैं, कि कहीं वह जांच रिपोर्ट में कुछ रद्दोबदल की कोशिशों में तो नहीं लगे हैं?

विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस मामले में पुरातत्व निदेशक पीसी शर्मा पर भी अंगुलियां उठ रही है, क्योंकि अति प्राचीन मंदिरों के मूल स्वरूप को बिगाड़े जाने और उसकी पूरी जानकारी होने के बावजूद ठेकेदार को बिलों का भुगतान कर दिया गया। बिलों का भुगतान निदेशक की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है। विभाग के कोटा वृत्त अधीक्षक और इंजीनियरिंग शाखा भी इसमें शामिल रही।

न्यायालय ने पूछा था कि काम नियमों से हुआ या नहीं?
पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी हरफूल सिंह ने इन मंदिरों के संबंध में उच्च न्यायालय में याचिका पेश की थी। इन मंदिर समूहों का निर्माण हरे और मटमैले पत्थरों से हुआ है, जबकि विभाग ने आस-पास में उपलब्ध पत्थरों को दरकिनार कर करौली-धौलपुर के पत्थरों से मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जो सफेद-गुलाबी रंग के हैं, ऐसे में इन मंदिरों का मूल स्वरूप बिल्कुल खत्म हो गया। न्यायालय ने भी जांच रिपोर्ट में यही पूछा है कि क्या संरक्षण और जीर्णोद्धार कार्य पुरातत्व नियमों के अनुसार हुआ है।

जांच कमेटी पर खड़े हो चुके सवाल
मामले में अपील करने वाले हरफूल सिंह भी जांच कमेटी पर सवाल खड़े कर चुके हैें, क्योंकि इसमें शामिल विभाग के दो सदस्य उनसे काफी जूनियर हैं, जिनके खिलाफ जांच कराई गई। सूत्रों का कहना है कि कमेटी में शामिल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारी ने रिपोर्ट में कई ऐसे तथ्य दिए हैं, जो पुरातत्व अधिकारियों के खिलाफ जा रहे हैं और इसी के चलते न्यायालय में रिपोर्ट पेश होने में देरी हो रही है।

शासन सचिव ने भी तलब की थी रिपोर्ट
इस दौरान विभाग की शासन सचिव ने भी कोटा और झालावाड़ के अति प्राचीन मंदिरों का मूल स्वरूप बिगाड़े जाने के मामले में संज्ञान लिया और निदेशक से तथ्यात्मक रिपोर्ट तलब कर ली। बताया जा रहा है कि पुरातत्व अधिकारी विभाग के कार्यों की पूरी जानकारी शासन सचिव तक नहीं पहुंचाते हैं, और विभाग की ओर से शासन सचिव को भी जांच रिपोर्ट पेश नहीं की गई है।

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