जयपुर

4 दशकों की मिलीभगत को छिपाने के लिए एक्शन में आया वन विभाग (forest department), नाहरगढ़ अभ्यारण्य (Nahargarh sanctuary) में शुरू करेगा लेपर्ड (leopard) सफारी

राजधानी जयपुर के एकमात्र नाहरगढ़ अभ्यारण्य (Nahargarh sanctuary) में वन अधिकारियों की मिलीभगत पर एनजीटी का डंडा पड़ने वाला है। ऐसे में घबराया वन विभाग (forest departmant) अपने अधिकारियों की खाल बचाने के लिए अभ्यारण्य की दशा सुधारने में जुट गया है। नाहरगढ़ को अभ्यारण्य घोषित होने के बाद पहली बार वन विभाग की नजर इसपर पड़ी है, नहीं तो यह अभ्यारण्य वन अधिकारियों की मोटी कमाई का जरिया बना हुआ था।

नाहरगढ़ अभ्यारण्य में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों का मामला एनजीटी में चल रहा है। इस मामले में दूसरी सुनवाई 23 अगस्त को होने वाली है, लेकिन इसमें दायर जनहित याचिका पर पहली सुनवाई में एनजीटी ने जिस तरह का रुख दिखाया, उससे वन विभाग के कान खड़े हो गए और उसे लग रहा है कि एनजीटी वन अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई कर सकता है। ऐसे में विभाग ने दूसरी सुनवाई से पहले ही अभ्यारण्य में सुधार कार्य करने शुरू कर दिए हैं, ताकि एनजीटी में कुछ तो कार्रवाई रिपोर्ट पेश की जा सके।

विभाग ने सबसे पहले अभ्यारण्य के अंदर जाने वाले रास्तों पर गेट और चैकपोस्ट स्थापित करने का निर्णय लिया है, क्योंकि एनजीटी में याचिकाकर्ता की ओर से यह कहा गया था कि नाहरगढ़ देश का पहला ऐसा अभ्यारण्य है, जहां कोई चैकपोस्ट-गेट नहीं लगा है और लोग बिना किसी इजाजत के अभ्यारण्य में प्रवेश कर रहे हैं।

इसके बाद विभाग ने अब यहां दो रूटों पर लेपर्ड (leopard) सफारी शुरू करने का फैसला किया है। नाहरगढ़ के डीसीएफ कार्यालय को लेपर्ड सफारी शुरू करने की मंजूरी मिल गई है। विभाग की ओर से यहां दो रूटों पर लेपर्ड सफारी कराई जाएगी। इनमें एक रूट पापड़ के हनुमानजी से मायला बाग तक और दूसरा रूट नाहरगढ़ बॉयोलॉजिकल पार्क से ओदी रामसागर तक का होगा। पहले रूट पर 8 से 10 लेपर्ड और दूसरे रूट पर 15 से 20 लेपर्ड का मूवमेंट रहता है।

वन विभाग के इस कदम पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सूत्र सवाल उठा रहे हैं कि अभ्यारण्य होते हुए भी चार दशकों में नाहरगढ़ में सफारी क्यों नहीं शुरू की गई, क्यों जयपुर के झालाणा फॉरेस्ट में लेपर्ड सफारी पहले शुरू कर दी गई?

सूत्रों का कहना है कि नाहरगढ़ के चारों ओर पर्यटन और औद्योगिक गतिविधियों के चलते जमीनों के भाव हमेशा आसमान पर रहते हैं। इन गतिविधियों के लिए जमीनें कम ही उपलब्ध है, लेकिन विभाग की मिलीभगत के चलते यहां बड़ी संख्या में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियां पनपती रही। ऐसे में वन अधिकारी भी नहीं चाहते थे कि अभ्यारण्य में वन एवं वन्यजीव अधिनियम के तहत सख्ती की जाए। यदि यह सख्ती करते तो उनकी ऊपर की कमाई मारी जाती।

अब जरूरी है कि वन विभाग अभ्यारण्य और उसके आस-पास वन भूमि पर चल रही अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों की हाई लेवल जांच कराए। तय किया जाए कि यह अतिक्रमण चार दशकों में कब-कब हुए। उस समय यहां तैनात अधिकारियों की भी जिम्मेदरी तय की जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

वन एवं पर्यावरण विशेषज्ञ कमल तिवाड़ी का कहना है कि विभाग द्वारा अभ्यारण्य क्षेत्र में सफारी को लेकर किए जा रहे प्रयास सराहनीय पहल है। सफारी से वन्यजीवों के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ेगी। रास्तों पर चैकपोस्ट स्थापित होने से अभ्यारण्य में अवैध रूप से प्रवेश कर रहे लोगों पर भी लगाम लगेगी। वन विभाग को अब समर्पित भाव से इस अभ्यारण्य में वन विकास के लिए जुट जाना चाहिए। छितराए वन क्षेत्र में सघन वृक्षारोपण कर राजधानी की आबोहवा को साफ करने का प्रयास करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि क्लियर न्यूज ने सबसे पहले नाहरगढ़ अभ्यारण्य में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों का मामला उजागर किया था क्लियन न्यूज पिछले करीब एक वर्ष से लगातार इस मामले को फॉलो कर रहा है और वन विभाग की गलतियों को उजागर कर रहा है। इसके बाद ही यह मामला एनजीटी में पहुंचा है और एनजीटी अभ्यारण्य में अवैध वाणिज्यिक गतिविधियों पर शुरू से ही सख्त दिखाई दे रहा है।

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