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पर्यावरण मानकों को पूरा किए बिना 2 साल से चल रहा है राजस्थान का सबसे बड़ा कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल आरयूएचएस

हॉस्पिटल संचालन के लिए दो साल से नहीं ली राजस्थान पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से सहमति

धरम सैनी
जयपुर। सरकार का काम जनता के हितों में नियम-कानून बनाने के साथ-साथ उनकी पालना कराना है, लेकिन यदि सरकार ही नियमों की धज्जियां उड़ाने लगे तो भगवान ही मालिक है। ऐसा ही कुछ हो रहा है राजस्थान के सबसे बड़े कोविड डेडिकेटेड सेेंटर राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हैल्थ साइंसेज (आरयूएचएस) में। आज ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आरयूएचएस को 70 बैड के आईसीयू की सौगात दी है, लेकिन जानकारी में आया है कि दो साल से संचालित इस यूनिवर्सिटी को अभी तक राजस्थान पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से संचालन के लिए सहमति नहीं मिली है और यूनिवर्सिटी को नियमविरुद्ध बिना सहमति के संचालित किया जा रहा है।

इसी अस्पताल में भर्ती चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने दो दिन पूर्व मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल का दौरा किया और व्यवस्थाओं का जायजा लिया, लेकिन शायद वह यह जांच करना भूल गए कि कॉलेज व हॉस्पिटल पूरे दस्तावेजों के साथ चल रहे हैं, या फिर सरकारी होने का ठप्पा लगाकर यहां अंधेरगर्दी मची हुई है। सवाल यह है कि एक छोटा सा हॉस्पिटल खोलने वाले डाक्टरों को पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड सहमति के लिए नाकों चने चबवा देता है, तो फिर इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी कैसे बिना सहमति के चल रही है?

जानकारों का कहना है कि अस्पतालों को प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। अस्पताल से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण नहीं किया जाए तो उससे बड़ी मात्रा में संक्रमण फैलने का कारण बन सकता है। ऐसे में किसी भी अस्पताल के संचालन से पूर्व पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की सहमति आवश्यक होती है। सहमति देने से पूर्व बोर्ड की टीम अस्पताल का निरीक्षण करती है और वहां कि व्यवस्थाओं को जांचती है, कि कहीं अस्पताल से संक्रमण फैलने का खतरा तो नहीं है। यदि अस्पताल बोर्ड के मानकों पर खरा उतरता है तो ही उस अस्पताल को बोर्ड की ओर से संचालन की अनुमति दी जाती है।

बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि करीब दो साल से आयूएचएस का संचालन किया जा रहा है, लेकिन न तो इसके प्रबंधन ने कभी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से सहमति लेने की जहमत उठाई और न ही बोर्ड के अधिकारियों ने कभी इस यूनिवर्सिटी पर कोई कार्रवाई की। जब इस संबंध में क्लियर न्यूज ने अस्पताल प्रबंधन और बोर्ड के अधिकारियों से बात की तो दोनों एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते नजर आए।

सवालों को टालने में लगे बोर्ड अधिकारी

बोर्ड के चीफ इंजीनियर विजय सिंघल से इस मामले की जानकारी ली गई तो उनका कहना था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है और इसकी जानकारी रीजनल ऑफिस (आरओ) साउथ दे सकते हैं। मतलब चीफ इंजिनियर ने अपनी जिम्मेदारी दूसरों के सिर थोपने की कोशिश की, क्योंकि आरओ तो मात्र 100 बैड के अस्पतालों के लिए सहमति जारी करते हैं। इससे ऊपर के अस्पताल के लिए बोर्ड के मुख्यालय से ही सहमति जारी होती है।

आरओ साउथ ने साफ कह दिया कि आरयूएचएस 1100 बैड का अस्पताल है और इसकी जानकारी मुख्यालय से ही मिल सकती है। बाद में हमने इस मामले में मुख्यालय में तैनात अधिशाषी अभियंता विष्णु दत्त पुरोहित से जानकारी मांगी तो उन्होंने कहा कि बड़े अस्पतालों को सहमति तो हम ही देते हैं, लेकिन अभी बिना रिकार्ड देखे कुछ भी नहीं बता सकता हूं। बोर्ड के मेंबर सेकेट्री उदय शंकर ने भी टालने वाला जवाब दे दिया कि वह रिकार्ड देखने के बाद ही कुछ बता सकते हैं। जबकि यह कोई छोटा-मोटा मामला नहीं बल्कि प्रदेश के एक बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल का मामला है।

जो जवाब देगा, उसी पर संकट आ जाएगा

इस मामले में जब हमने आरयूएचएस के वरिष्ठ अधिकारियों से बात की तो कोई भी इस मामले में बोलने को तैयार नहीं हुआ। एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यह काफी गंभीर मामला है और कोई भी इसका जवाब नहीं देगा। जो जवाब देगा, उसी पर संकट आ जाएगा। वैसे हमारा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल एकदम नया है और हम पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के सभी मानकों की पालना करते हैं।

एसएमएस पर डाली जिम्मेदारी

दो महीनों से आरयूएचएस को एसएमएस अस्पताल ने टेकओवर कर रखा है और उसे कोविड डेडिकेटेड सेंटर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। आरयूएचएस के अधिकारी बोर्ड सहमति के सवाल को एसएमएस पर टालने में लगे हैं, जबकि आरयूएचएस में दो वर्ष से दो हॉस्पिटल संचालित हैं। ऐसे में आयूएचएस की ही जिम्मेदारी बनती है कि वह बोर्ड से सहमति लेते।

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