जयपुर

2023 के चुनावों में राजस्थान में भी शुरू होगी स्वर्ण-शूद्र की राजनीति!

जयपुर। रामचरित मानस पर विवादित बोल के बाद अब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की ओर से ‘गर्व से कहो मैं शूद्र हू’ के बैनर लगवा दिए हैं। उत्तर प्रदेश में इस समय जो स्वर्ण-शूद्र का मसला चल रहा है, उसका असर दस महीने बाद होने वाले राजस्थान और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।

राजस्थान की बात करें तो लंबे समय से ही स्वर्ण-शूद्र की राजनीति हो रही है। राजस्थान में एससी-एसटी वर्ग अत्याचार के कई मामलों ने काफी तूल पकड़ा। इसके बाद से ही कई राजनीतिक पार्टियां नए समीकरण बनाने में जुट गई हैं और कहा जा रहा है कि इन नए समीकरणों का विधानसभा चुनावों पर गहरा असर पड़ेगा। राजस्थान में इस बात को आगे बढ़ाया जा रहा है कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’।

वैसे तो उत्तर प्रदेश की राजनीति, राजनेताओं और वोटरों को राजस्थान से दो दशक आगे माना जाता है। पिछले चार दशक में उत्तर प्रदेश के चुनावों में कई तरह के समीकरण देखने को मिलते हैं। इनमें मुस्लिम-यादव, एससीएसटी-ब्राह्मण, यादव-जाट-गुर्जर, स्वर्ण-यादव के अलावा शेष मूल ओबीसी प्रमुख हैं। ऐस ही कुछ अब राजस्थान में देखने को मिल रहा है। राजस्थान में एससी, एसटी-मूल ओबीसी के समीकरण पर काम चल रहा है।

कुछ दिनों पूर्व आरएलपी के सांसद हनुमान बेनीवाल ने बयान दिया था कि यदि भाजपा से किरोड़ी लाल मीणा और कांग्रेस से सचिन पायलट जैसे नेता उनके साथ आ जाएं, तो वह विधानसभा चुनावों में 140 सीटें ले आएंगे। इस बयान के पीछे भी एससी,एसटी-ओबीसी का समीकरण है। यदि एससी, एसटी ओबीसी एक साथ आ जाए तो यह आंकड़ा लाना कोई मुश्किल काम नहीं है। प्रधानमंत्री का भीलवाड़ा दौरा भी भाजपा की ओर से ओबीसी को साधने का उदाहरण है, क्योंकि सबसे ज्यादा वोटर अगर हैं, तो वह ओबीसी के हैं।

राजस्थान में एससी-एसटी वर्ग को तो विधानसभा और लोकसभा चुनावों में सीटों पर आरक्षण मिला हुआ है, लेकिन सबसे ज्यादा विवाद ओबीसी वर्ग को लेकर चल रहा है। दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस ओबीसी के नाम पर सिर्फ जाट और गुर्जर समाज को टिकट देती आई है, जिससे ओबीसी की मूल जातियां लंबे समय से नाराज चल रही है। इस बार मूल ओबीसी में शामिल कई बहुसंख्य जातियां पाला बदलने की तैयारी में है। इनमें कुमावत, यादव और माली जातियां प्रमुख हैं।

बहुजन समाज पार्टीं के कमजोर होने के चलते एससी-एसटी और मूल ओबीसी पर नजर रखते हुए आजाद समाज पार्टी ने चुपचाप राजस्थान में दस्तक दे रखी है और समीकरण बनाए जा रहे हैं कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में आरक्षण है, वहां राजस्थान का मूल ओबीसी वर्ग आजाद समाज पार्टी को सपोर्ट करे और जहां जनरल सीटों पर मूल ओबीसी के वोटरों की संख्या ज्यादा है, वहां एससी-एसटी वर्ग मूल ओबीसी के आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवारों को जितवाएगा। देखने में यह समीकरण काफी प्रभावी है और उत्तर प्रदेश में इस तरह के समीकरणों के चलते कई सरकारें बनी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश में खतोली विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे ने भाजपा को चिंता में डाल दिया है। आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व भीम आर्मी चीफ एडवोकेट चंद्रशेखर आजाद रावण और रास्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयन्त चौधरी के गठबंधन ने जीत दर्ज कर पश्चिमी यूपी में समीकरण बदल दिये हैं। हाल यह है कि अब समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी चंद्रशेखर रावण से नजदीकियां बढ़ाने में जुटे हैं। ऐसे में देखने वाली बात यह है कि कौन सी पार्टी इन समीकरणों को धरातल पर ले आती है। जो पार्टी इन समीकरणों को साधनें में कामयाब होती है, उसी पार्टी को राजस्थान विधानसभा के चुनावों में बड़ा लाभ मिल सकता है।

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