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उड़ता तीर : क्यों पागल (crazy) हैं युवा (youth) सरकारी नौकरी(government jobs)पाने के लिए ?

इस लेख के लेखक वेद माथुर, पंजाब नेशनल बैंक में महाप्रबंधक रहे हैं और हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण उपन्यास बैंक ऑफ पोलम्पुर के लेखक हैं

हमारे देश में सरकारी नौकरियां पाने के इच्छुक लोगों की कतार बहुत लंबी है। बिहार सहित कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,  पंजाब,  हरियाणा आदि के निवासी सरकारी नौकरियों के लिए बेहद जुनूनी हैं। उनके जुनून के कई कारण हैं :

1: भ्रष्टाचार :

सरकारी नौकरी ज्यादातर लोगों के लिए भ्रष्टाचार का पर्याय है। अधिकतर सरकारी अधिकारी विधि सम्मत साधनों की तुलना में भ्रष्टाचार के बावजूद कहीं अधिक पैसा कमाते हैं। कोई भी कॉर्पोरेट कर्मचारी एक भ्रष्ट सरकारी अधिकारी जितना पैसा नहीं कमा सकता है। यह देश के किसी हिस्से में लोगों द्वारा सरकारी सेवाओं को चुनने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है।

2: नौकरी की सुरक्षा:

सरकारी नौकरी सुरक्षित मानी जाती है। एक बार जब आप इसमें शामिल हो जाते हैं, तो आपको रिटायर होने तक हटाया नहीं जा सकता है। आप काम करें या आराम, यह विकल्प भी आपको चुनना है। सरकारी नौकरी में आने के लिए सिर्फ एक बार विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता गाइड व पुस्तकें पढ़कर ‘मेहनत’ करनी है जबकि निजी क्षेत्र में पूरी जिंदगी परिश्रम करना पड़ता है।

3: अच्छा वेतन :

आजकल सरकारी वेतन उत्कृष्ट हो गए हैं, खासकर निचले स्तर पर। एक सरकारी चपरासी, सफाई कर्मचारी, अध्यापक या बाबू को शुरुआती वेतन के रूप में 20,000-40,000 रुपये मिल जाते हैं,  जो बाजार में समान स्तर के कर्मचारी से कई गुना अधिक है।

4: सुविधाएं :

कुछ सरकारी सेवाओं जैसे आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आरएएस, पीसीएस, पीपीएस आदि में सरकारी अधिकारियों को बड़े बंगले, बड़ी संख्या में परिचारक (जो वास्तव में निजी नौकरों की तरह काम करते हैं) और यहां तक ​​कि कई कारें मिलती हैं। ये भत्ते किसी भी कॉर्पोरेट कर्मचारी को वरिष्ठ रैंक पर भी नहीं दिये जाते हैं।

5: बिना जवाबदेही लीगल और एक्स्ट्रा लीगल पावर :

सरकारी अधिकारियों के पास बहुत अधिक ‘शक्तियां’ होती हैं, जिनका उपयोग अक्सर बिना अधिक जवाबदेही के किया जा सकता है। एक पटवारी, बाबू या पुलिस के सिपाही का भी अपने ‘हल्के’ में अच्छा खासा दबदबा होता है।

6: व्यापार और उद्योग की कमी :

भारत में व्यापार और उद्योगों का पर्याप्त विकास नहीं हुआ है। अधिकांश लोगों को कॉरपोरेट्स या विदेशों में उपलब्ध अवसरों के बारे में पता नहीं है। हमारे युवा डिग्री जरूर ले रहे हैं लेकिन उनमें ‘स्किल’ और उद्यमशीलता का अभाव है। गुजरात जैसे राज्यों में सरकारी नौकरियों का क्रेज नहीं है क्योंकि लोगों के पास कई बेहतर अवसर हैं।

7: सामंतवादी मानसिकता :

अधिकांश सरकारी अधिकारी सामंतों और जमींदारों की तरह काम करते हैं। सरकारी अमला राजनेताओं के जूते चाटने से गुरेज नहीं करता लेकिन वे आम लोगों के लिए ज़मीदारों की तरह काम करते हैं। ऐसी बेहिसाब शक्तियां आज की दुनिया में केवल सरकारी नौकरियों में ही उपलब्ध हैं जहाँ आप अब भी ऐसा व्यवहार कर सकते हैं जैसे कि आप भगवान हैं। ऐसे में कौन ‘जागीरदार’ नहीं बनना चाहेगा?

8. निजी क्षेत्र में शोषण :

निजी क्षेत्र में औसत वेतन 4000 से 14000 ₹  है जिसमें गुजर-बसर करना बहुत मुश्किल है। यह भी आपके एम्प्लायर की मर्जी है कि वह कब आपको दरवाजा दिखा दे। सरकार और न्यायपालिका निजी क्षेत्र के बड़े उद्योगपतियों का साथ देते हैं। आम कर्मचारी की हैसियत ही नहीं है कि वह विवाद की स्थिति में अपने नियोजक से लड़ सके।

निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को शोषण से मुक्त कराने के लिए और प्रभावी कानूनों की जरूरत है तथा साथ ही इन कानूनों के त्वरित क्रियान्वयन के लिए एक नई चुस्त-दुरुस्त मशीनरी की जरूरत है। जहां कर्मचारियों के शोषण या उनके बकाया का भुगतान नहीं करने के मामले आए हैं, उनमें इतनी सख्त सजा हो कि वह एक उदाहरण बन जाए।

9. सम्मान:

दुर्भाग्य से हमारे देश में आज भी भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों को निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले ईमानदार अधिकारियों की तुलना में कई गुना अधिक सम्मान मिलता है। कुल मिलाकर यह स्थिति विस्फोटक है और इसका समाधान खोजा जाना चाहिए। प्रभावी व नए श्रम कानूनों के द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरियों को ‘ल्यूक्रेटिव’ और आकर्षक बनाये बिना बेरोजगारी की समस्या का समाधान असंभव है। निजी क्षेत्र में शोषण करने वालों को ऐसी सख्त सजा मिलनी चाहिए कि उदाहरण बन जाए। सरकारी तंत्र में निकम्माई और भ्रष्टाचार को खत्म करना भी समय की सबसे बड़ी जरूरत है।

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