जयपुरपर्यटन

पुरातत्व विभाग में मलाई चाटने वालों के तबादले की आवाज उठी

जयपुर। अल्बर्ट हॉल में पुरा सामग्रियों और पुरातत्व मुख्यालय के रिकार्ड की बर्बादी के बाद विभाग के उच्चाधिकारी इन दिनों भारी दबाव में चल रहे हैं। दबाव का कारण यह है कि अल्बर्ट हॉल प्रकरण के बाद राजधानी में बरसों से कुंडली मार कर बैठे अधिकारियों को बदलने की मांग उठने लगी है।

विभागीय सूत्रों का कहना है कि अल्बर्ट हॉल और मुख्यालय में हुआ नुकसान सीधे-सीधे अधिकारियों की लापरवाही के कारण है। राजधानी में मलाई चाट रहे कुछ अधिकारी तो ऐसे हैं, जिनकी सर्विस का दो तिहाई से ज्यादा का कार्यकाल तो राजधानी में ही बीत चुका है।

सूत्र कहते हैं कि राजधानी में रहने के कारण यह अधिकारी अपने उच्चाधिकारियों को मैनेज कर लेते हैं और राजधानी में ही बने रहते हैं। ऐसे में प्रदेश भर में लगे अधिकारियों को राजधानी में काम करने का मौका ही नहीं मिल पाता है।

जयपुर मे जमे अधिकारियों के काले कारनामों को देखकर उनके तबादले की मांग की जा रही है। इसके पीछे विभाग में हुए टिकट घोटाले और अल्बर्ट हॉल में हुए नुकसान का हवाला दिया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि जयपुर में जो करोड़ों का टिकट घोटाला हुआ था, वहां के अधिकारी बरसों से जयपुर में ही जमे बैठे थे। इस घोटाले की ईमानदारी से जांच नहीं की गई, नहीं तो यह और भी बड़ा घोटाला निकलता।

एक अधिकारी प्रदेश में सबसे ज्यादा कमाई वाले स्मारक पर पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से बैठे हैं। जबकि कंपोजिट टिकट मामले में एसीबी इस स्मारक पर छापा मार चुकी है। टिकट घोटाले की जांच के दौरान विश्व विरासत स्थल जंतर-मंतर के स्टोर से छपे हुए कंपोजिट टिकटों की एक ही सीरियल नंबर की काउंटर स्लिपें बरामद हुई थी, जो रिकार्ड पर हैं। यह साफ सबूत है कि विभाग में कंपोजिट टिकट घोटाला भी हुआ था और जयपुर में नकली कंपोजिट टिकट भी बेचे गए थे। इस घोटाले को विभाग के तत्कालीन उच्चाधिकारियों ने दबा दिया गया है। यह सब जयपुर में जमे अधिकारियों के कारण ही संभव हुआ।

वर्ष 2012 में पुरातत्व विभाग में कई पदों पर नियुक्तियां निकाली गई थी। अभ्यर्थियों के हजारों फार्म मुख्यालय मे जमा थे। इस दौरान मुख्यालय में बारिश का पानी भरा और सभी फार्म भीग गए। तत्कालीन पर्यटन मंत्री बीना काक ने इस मामले में जांच के आदेश भी दिए थे, लेकिन इन अधिकारियों का कुछ भी नहीं बिगड़ पाया।

अल्बर्ट हॉल में इस वर्ष पानी भरा तो इन्हीं अधिकारियों ने प्रकृति को दोष दे दिया और कहा कि पहली बार मुख्यालय में पानी भरा है, जबकि 2012 में भी पानी भरा था और उससे पूर्व भी पानी भरने की समस्या थी, लेकिन अधिकारियों ने कभी पानी की रोकथाम के लिए पुख्ता कार्ययोजना नहीं बनाई, बल्कि अल्बर्ट हॉल को एयरकंडीशन करने, खुद के कार्यालयों को आरामदायक बनाने का काम किया। कहा जा रहा है कि यह अधिकारी भी अपने करीब 17 वर्षों के कार्यकाल में मात्र आठ महीनों के लिए ही जयपुर से बाहर गए थे।

सूत्र कह रहे हैं कि विभाग के अन्य अधिकारी और कर्मचारी लगातार उच्चाधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं कि जयपुर में जमे बैठे अधिकारियों का तुरंत तबादला किया जाए। विभाग में चर्चा चल रही है कि नए प्रशासनिक अधिकारियों को टिकट घोटाले व कंपोजिट टिकट घोटाले की फिर से जांच करानी चाहिए। उच्चाधिकारियों को अल्बर्ट हॉल और मुख्यालय में हुए नुकसान की जांच कराकर दोषियों को दंडित भी करना चाहिए, तभी पुरा सामग्रियों और पुरा स्मारकों के प्रति अधिकारियों की लापरवाही कम हो पाएगी।

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