जयपुर

पुरातत्व विभाग में नहीं होता सेटिंगबाज अधिकारियों का तबादला

अधिकारी दशकों से जमे हुए हैं मोटी कमाई वाले स्मारकों पर

प्रदेश के पुरा स्मारकों को नुकसान पहुंचाकर अपने घर भरने वाले सेटिंगबाज अधिकारियों के मजे हो रहे हैं। पूरे विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले भले हो जाए लेकिन इन कमाऊ अधिकारियों का बाल भी बांका नहीं होता है, जिसके चलते ये अधिकारी दशकों से राजधानी के मोटी कमाई वाले स्मारकों पर जमे हुए हैं और इन्हीं स्मारकों के तार विभाग के टिकट घोटालों से जुड़े हैं।

एक लंबे अरसे के बाद पुरातत्व विभाग में अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले हुए हैं। विभाग में कहा जा रहा था कि यह तबादलों के लिए कला संस्कृति एवं पुरातत्व मंत्री डॉ. बीडी कल्ला के स्तर पर सूची तैयार की जा रही थी। अधीक्षक से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारियों के तबादले होने थे। दशकों से एक ही स्थान पर जमे अधिकारियों को बदलने की तैयारी थी। दागी अधिकारियों की भी मंत्री स्तर पर ऑडिट कराई गई थी लेकिन जब यह सूची सामने आई तो सभी के होश उड़ गए क्योंकि दशकों से एक ही जगह जमे और दागी अधिकारियों को इस सूची में अभयदान दे दिया गया और उनकी जगह अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले कर दिए गए।

विभाग में कहा जा रहा है कि नये आए निदेशक ने कर्मचारियों के तबादले करने की हिम्मत जुटाई थी और करीब एक महीना पूर्व तबादला सूची निकाली थी लेकिन अगले ही दिन ऊपर से यह सूची निरस्त कर दी गई। बताया जा रहा है कि निदेशक की विभाग के अधीक्षकों, इंजीनियरिंग शाखा के अधिकारियों पर चल नहीं पा रही है। इसी के चलते अब ऊपर से नई सूची जारी की गई है। इस नई सूची में भी निदेशक की कोई खास चल नहीं पाई है क्योंकि जयपुर में जमे अधिकारियों की ऊपर तक राजनीतिक पहुंच जगजाहिर है।

पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि इस सूची में जयपुर के दो प्रमुख स्मारकों के अधीक्षकों के नाम गायब है, जहां रिकॉर्ड तोड़ पर्यटक आते हैं। इन अधीक्षकों में से एक अधीक्षक पिछले एक दशक से ज्यादा समय से एक ही स्मारक पर जमे हुए हैं। वहीं दूसरे अधीक्षक की आधी से ज्यादा नौकरी राजधानी में ही बीत चुकी है। कुछ समय पूर्व इनका तबादला दूसरे शहर में हुआ लेकिन मात्र आठ महीनों में ही ये वापस राजधानी में आ जमे। इनके नाम ही सबसे ज्यादा रिकॉर्ड अतिरिक्त चार्ज लेने का भी है। विभाग में कहा जा रहा है कि इन दोनों अधिकारियों की सरकार में ऊपर तक पैठ है, जिसके चलते हर बार तबादला सूची में उनका नाम बच जाता है। विभाग की इंजीनियरिंग शाखा में तैनात दो बाबुओं की जोड़ी में से एक को कुछ समय पूर्व दूसरी जगह पर लगा दिया गया था लेकिन ताजा सूची में इस बाबू को फिर से इंजीनियरिंग शाखा में लगाया गया है। इन दोनों बाबुओं को भी विभाग का कमाऊ पूत कहा जाता है।

क्या विभाग में अन्य कोई काबिल अधिकारी नहीं?
इस तबादला सूची के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या विभाग के पास इन दो अधीक्षकों के अलावा कोई अन्य अधिकारी नहीं है, जो जयपुर के स्मारकों को संभाल सके? विभाग में रोटेशन के आधार पर अधिकारी क्यों नहीं बदले जाते? कुछ अधिकारियों को साल-दो साल में स्थानांतरित कर दिया जाता है और कुछ अधिकारी दशकों तक एक ही सीट पर जमे रहते हैं, ऐसा क्यो? क्या इसके पीछे टिकटों में कमाई का मोटा खेल तो नहीं है क्योंकि पूर्व में हुए टिकट घोटालों के तार इन्हीं के स्मारकों से जुड़े हुए हैं। इन कमाऊ सेटिंगबाज अधिकारियों का तबादला आखिर क्यों नहीं हो रहा है, विभाग को इसका जवाब देना पड़ेगा क्योंकि अभी भी इन स्मारकों पर टिकटों में घोटाला कर सरकारी राजस्व को चूना लगाए जाने का खेल चल रहा है।

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