कूटनीति

अमेरिकी प्रतिबंधों से परेशान पाकिस्तान ने मिसाइल कार्यक्रम के संदर्भ में मुस्लिम देशों से भेदभाव करने के आरोप लगाये

इस्लामाबाद। पाकिस्तान अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते गहरे संकट में है। हाल ही में अमेरिका ने पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम की निगरानी करने वाली संस्था को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का कहना है कि 16 दिसंबर को नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स पर लगाए गए प्रतिबंध भारत के पक्ष में दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को झुकाने की कोशिश है।
अमेरिकी बयान से बढ़ी चिंताएं
अमेरिकी डिप्टी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जॉन फाइनर ने पाकिस्तान की मिसाइल क्षमताओं को उभरता हुआ खतरा करार दिया, जिससे पाकिस्तान में चिंताएं बढ़ गई हैं। पाकिस्तान को यह कदम भारत और इजरायल की सैन्य ताकत के पक्ष में उठाया गया प्रतीत होता है। पाकिस्तान का दावा है कि उसकी शाहीन-3 बैलिस्टिक मिसाइल भारत और इजरायल तक पहुंचने में सक्षम है।
पाकिस्तानी विशेषज्ञों का नजरिया
पाकिस्तानी विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका मुस्लिम देशों के परमाणु हथियारों को लेकर भेदभावपूर्ण रवैया अपनाता है। वरिष्ठ टिप्पणीकार नुसरत जावेद ने आरोप लगाया कि अमेरिका इस्लामिक देशों को परमाणु तकनीक से दूर रखना चाहता है। अन्य विशेषज्ञों ने वाशिंगटन के हालिया कदमों को इजरायल और भारत की तरफ झुकाव बताते हुए पाकिस्तान के खिलाफ दोहरे हमलों की आशंका जताई है।
इतिहास और संभावनाएं
विशेषज्ञों ने 1981 की उस कथित घटना का उल्लेख किया, जिसमें भारत और इजरायल पर पाकिस्तान के यूरेनियम संवर्धन केंद्र पर हमला करने की योजना बनाने का आरोप था। हालांकि, तब अमेरिका ने ऐसा करने से मना कर दिया था, क्योंकि वह अफगानिस्तान में सोवियत संघ के प्रभाव को रोकने के लिए पाकिस्तान के साथ मिलकर काम कर रहा था।
प्रतिबंधों का औचित्य और प्रभाव
वाशिंगटन स्थित जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्रिस्टीन फेयर का कहना है कि पाकिस्तान पर सीधा हमला संभव नहीं है, क्योंकि वह एक घोषित परमाणु शक्ति है। उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व के संघर्षों में पाकिस्तान की कोई सक्रिय भूमिका नहीं है, लेकिन अमेरिका और इजरायल पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं को लेकर सतर्क हैं।
अमेरिका और चीन के बीच संतुलन का संघर्ष
पाकिस्तान के लिए चुनौती यह है कि वह अमेरिका और अपने प्रमुख साझेदार चीन के साथ संतुलन बनाए रखे। चीन, पाकिस्तान का सबसे बड़ा ऋणदाता और रक्षा सहयोगी है। इसके साथ ही, पाकिस्तान घरेलू सुरक्षा समस्याओं से भी जूझ रहा है। तालिबान विद्रोहियों की घुसपैठ और अलगाववादी हमलों के कारण खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान प्रांतों में स्थिति खराब हो रही है।
आर्थिक और सुरक्षा मोर्चे पर दबाव
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा लगाए गए कठोर आर्थिक सुधारों ने पाकिस्तान को दीवालिया होने से बचने में मदद की है, लेकिन बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच पाकिस्तान का भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है।

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