सामाजिक

आरएसएस प्रमुख ने उत्तर प्रदेश में मंदिर-मस्जिद विवादों को भड़काने से बचने की दी सलाह

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने उत्तर प्रदेश में मंदिर-मस्जिद विवादों को लेकर चिंता जताते हुए ऐसे मुद्दों को उभारने से बचने की सलाह दी है। प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ से पहले आई इस सलाह के बीच अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, जो 13 अखाड़ों की सर्वोच्च संस्था है, इन विवादों पर अपने विचार व्यक्त कर सकती है। यह परिषद हिंदुओं द्वारा उन मंदिरों पर दावे करने जैसे मुद्दों पर चर्चा कर सकती है, जिन्हें मुस्लिम शासकों ने कथित रूप से तोड़कर मस्जिदें बनाई थीं।
भागवत की यह टिप्पणी संभल में शाह मस्जिद के सर्वे को लेकर हुई हिंसा के संदर्भ में आई है। कहा जाता है कि यह मस्जिद 1529 में बाबर ने एक मंदिर को तोड़कर बनाई थी। हालांकि, अखाड़ा परिषद इस पर अलग दृष्टिकोण अपना सकती है।
19 दिसंबर को मोहन भागवत ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं की भावनाओं का सम्मान करने के लिए किया गया था, लेकिन इसे “हिंदू नेता” बनने के लिए इस्तेमाल करना उचित नहीं है।
कुछ परिषद सदस्यों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना की है, और वे ऐतिहासिक मंदिरों को पुनर्स्थापित करने के उनके अभियान के लिए समर्थन जुटा सकते हैं।
अखाड़ा परिषद का संभावित मतभेद
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने भागवत की टिप्पणियों की आलोचना करते हुए कहा कि भले ही भागवत ने इस तरह की सलाह पहले भी दी हो, लेकिन 56 स्थानों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान हो चुकी है, जो इस मुद्दे में लगातार रुचि दर्शाती है। उनका मानना है कि धार्मिक संगठन आमतौर पर जनता की भावनाओं के साथ चलते हैं, न कि राजनीतिक एजेंडा के साथ।
काशी और मथुरा के मंदिरों को पुनः प्राप्त करने का प्रयास भी एक विवादास्पद मुद्दा है, जिस पर अखाड़ा परिषद अलग रुख अपना सकती है।
संघ का रुख और विवाद
आरएसएस काशी और मथुरा के मंदिरों को लेकर कोई अभियान नहीं चला रहा है। यह न तो इन आंदोलनों का नेतृत्व करता है और न ही इन्हें नियंत्रित करता है। हालांकि, आरएसएस से जुड़े विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने अयोध्या, मथुरा और काशी के मंदिरों को मुक्त कराने की मांग की थी और अयोध्या मंदिर के लिए अखाड़ा परिषद का समर्थन मांगा था।
योगी आदित्यनाथ ने मथुरा मंदिर के नवीनीकरण के संकेत दिए हैं। इससे पहले, भागवत ने हिंदुओं को हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग खोजने और सामाजिक अशांति फैलाने से बचने की सलाह दी थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनसांख्यिकी और धार्मिक स्थल
मुजफ्फरनगर, मेरठ और कानपुर जैसे इलाकों में साम्प्रदायिक दंगों के इतिहास के चलते जनसांख्यिकी में बदलाव देखने को मिला है। 1987 से 2013 तक हुए दंगों के बाद इन इलाकों में हिंदुओं और मुसलमानों ने अलग-अलग क्षेत्रों में पलायन किया।
कानपुर में मेयर प्रेमलता पांडे ने मुस्लिम इलाकों में छोड़े गए मंदिरों का निरीक्षण किया और उनकी मरम्मत का आदेश दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि किसी ने अतिक्रमण हटाने में बाधा डाली, तो “बुलडोजर” कार्रवाई की जाएगी।
मुजफ्फरनगर और अन्य स्थानों पर भी साम्प्रदायिक तनाव के कारण समुदायों ने अपने पूजा स्थलों को छोड़ दिया। कुछ जगहों पर मुसलमान मंदिरों की देखभाल कर रहे हैं, तो कुछ जगहों पर हिंदुओं ने मस्जिदों को छोड़ दिया है।
सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक आयोजनों में बदलाव
लखनऊ में क्रिसमस के मौके पर कैथेड्रल चर्च में लोग शांति से प्रार्थना कर रहे थे, लेकिन पास के एक मंदिर में भजन-कीर्तन जोर-शोर से हो रहा था। शांति बनी रही, लेकिन यह आने वाले दिनों में संभावित तनाव का संकेत हो सकता है।

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