मुख्यमंत्री ने दी 4 करोड़ रुपये की वित्तीय स्वीकृति
जयपुर। चित्तौड़गढ़ जिले में महाबलिदानी पन्नाधाय के पैतृक स्थल पाण्डोली में ‘महाबलिदानी पन्नाधाय पेनोरमा’ बनेगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पेनोरमा निर्माण के लिए 4 करोड़ रुपये की वित्तीय स्वीकृति प्रदान की है।
मुख्यमंत्री की इस स्वीकृति से पेनोरमा के लिए निर्धारित स्थल पर मुख्य पेनोरमा भवन, सभागार, हॉल, पुस्तकालय, प्रवेश द्वार, प्रतिमा, छतरी, स्कल्पचर्स, ऑडियो-विडियो सिस्टम, शिलालेख एवं विभिन्न आर्ट वर्क सहित अनेक कार्य होंगे।
इस पेनोरमा द्वारा पन्नाधाय के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को विभिन्न माध्यमों के जरिए दर्शाया जाएगा, जिससे आमजन को उनके अविस्मरणीय बलिदान, त्याग, साहस, स्वाभिमान एवं स्वामिभक्ति की जानकारी मिलेगी।
यह है पन्नाधाय की कहानी
महाबलिदानी पन्नाधाय का जन्म चित्तौड़ के पास ‘माताजी की पांडोली’ नामक गाँव मे वर्ष 1501 ई. में एक गुर्जर परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम हरचंद हांकला था। तत्कालीन रिवाजो के अनुसार पन्ना का विवाह कम उम्र मे ही सुरजमल से करवा दिया गया। थोड़े समय बाद ही पन्ना को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम चन्दन रखा गया। इसी चन्दन के बलिदान की महक से पन्नाधाय और चन्दन का नाम इतिहास मे अमर हो गया।
चित्तौड़ के शासक राणा सांगा के निधन के बाद बनवीर चित्तौड़ का शासक बनना चाहता था। बनवीर राणा सांगा की एक दासी का पुत्र था। उसने कुछ सामंतों को बहकाकर विक्रमादित्य को मारने की योजना बनाई। एक दिन मौका पाकर बनवीर विक्रमादित्य के कक्ष मे पहुँच गया और उसकी हत्या कर दी। बनवीर की राह का दूसरा काँटा उदयसिंह था वो उसे भी मारना चाहता था। पन्नाधाय को इसकी भनक लग चुकी थी और वो मेवाड़ के उत्तराधिकारी अपने पुत्र समान कुँवर उदयसिंह को हर कीमत पर बचाना चाहती थी। पन्ना को किसी ने खबर दी की बनवीर कुछ सैनिको के साथ उदयसिंह को मारने आ रहा है।
पन्ना चिंतित हो उठी और उसे शीघ्र ही निर्णय लेना था। वीर स्वामिभक्त पन्ना डरी नहीं वो उदयसिंह को छोड़ भागी नहीं बल्कि पन्ना को एक युक्ति सूझी और उसने एक ऐसा निर्णय लिया जो इतिहास मे प्रथम बार देखा गया। उसने अपने सगे पुत्र चन्दन को मातृभूमि के लिए बलिदान करने का निर्णय लिया। यही निर्णय पन्ना को महाबलिदानी पन्नाधाय के नाम से सम्मानित करता हैं।
पन्ना ने महल के बारी (जूठी पत्तले उठाने वाला) को खाली टोकरा लेकर बुलवाया और उदयसिंह को उसमे बैठने का आदेश दिया। उदयसिंह को टोकरे मे पत्तलों से ढँककर महलो के गुप्त रास्ते से बाहर निकलवा दिया तथा उस बारी को बेड़च नदी के किनारे के प्रतीक्षा करने के लिए कहा। उदयसिंह के जाते तत्काल ही पन्ना ने अपने पुत्र चन्दन को बुलवाकर उसे कुँवर के कपड़े पहनाकर उदयसिंह के पलंग पर लेटा दिया। जल्दी ही बनवीर आ पहुंचा और चिल्लाकर पूछा ‘कहा हैं वो उदयसिंह’? सहमी पन्ना पलंग के सामने आकर खड़ी हो गई , सत्ता के लालची बनवीर ने ज़रा भी नहीं विचारा और अपनी तलवार से चन्दन पर लगातार प्रहार कर दिये और महल चीखो से गूंज उठा। बनवीर को लगा की उसने उदयसिंह को मार दिया हैं और वो चला गया। सीने पर पत्थर रखकर पन्ना ने अपने पुत्र चन्दन के टुकड़े समेटे और बेड़च नदी के किनारे पहुँच कर उसका दाह संस्कार कर दिया।
राष्ट्रवेदी मे पुत्र को आहूत करने के बाद पन्ना उदयसिंह को लेकर पैदल ही कुंभलगढ़ जा पहुंची जहा किलेदार आशाशाह देवपुरा ने मेवाड़ के उत्तराधिकारी उदयसिंह को सुरक्षा प्रदान की। आशाशाह देवपुरा ने पन्ना के बलिदान के समक्ष अपना शीश नवा दिया तथा तत्काल ही मेवाड़ के अन्य सामंतों को उदयसिंह के जीवित होने का समाचार भिजवा दिया। चित्तोडगढ़ मे गद्दी पर बैठे बनवीर को भी इसका समाचार प्राप्त हो गया और वो चिंतित हो उठा , उसे ज़रा भी अंदेशा नहीं था की पन्ना ने उसे मूर्ख बनाया हैं। उदयसिंह ने जल्दी ही सामन्तो और कुछ सैनिको को एकत्रित कर चित्तोडगढ़ से बनवीर को गद्दी से हटा दिया।