सामान्य प्रशासन विभाग की इमारत में चल रहा मुख्यालय
जयपुर। किराए के मकान में रहने वाला एक आम आदमी जिंदगी भर हाड़तोड़ मेहनत करता है, ताकि वह कुछ पैसा बचाकर खुद का घर खरीद सके और बाकी की जिंदगी चैन से गुजार सके। लेकिन, पुरातत्व विभाग के काबिल अधिकारियों को शायद यह छोटी सी बात भी छह दशकों में समझ में नहीं आई।
आपको जानकर हैरानी होगी कि विभाग का मुख्यालय जिस भवन में चल रहा है, वह पुरातत्व विभाग की संपत्ति नहीं है। इसके बावजूद अधिकारियों ने कभी खुद का मुख्यालय बनाने के बारे में सोचा तक नहीं।
पुरातत्व विभाग का मुख्यालय जिस भवन में चल रहा है, उसे बने हुए छह दशक हो चुके हैं। जानकारी के अनुसार अल्बर्ट हॉल पुरातत्व विभाग की संपत्ति है, लेकिन इसके पीछे बनी इमारत सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) की संपत्ति है।
जीएडी अपनी संपत्तियों के रख-रखाव और मरम्मत के लिए हर वर्ष कुछ बजट जारी करता है। इस बजट से सार्वजनिक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) इमारतों की मरम्मत कराता है। वर्ष 2005-06 में पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर पुरातत्व विभाग में आए और 4 लाख के बजट की जानकारी देकर इमारत की मरम्मत की बात कही। उस समय इस बजट से मुख्यालय की छत पर टाइलें लगाने का कार्य पीडब्ल्यूडी ने कराया था। इस समय तक विभाग के काबिल अधिकारियों को इमारत की ओनरशिप का ही पता नहीं था।
हैरानी की बात यह है कि विभाग की ओर से मुख्यालय भवन की रिपेयर के लिए कोई प्रावधान नहीं है। पुरातत्व विभाग को पैसा प्लान से मिलता है, इनका खुद का कोई बजट नहीं होता है। ऐसे में रिपेयर के लिए प्रावधान कैसे करें।
पूर्व में वसुंधरा सरकार के समय करोड़ों रुपए खर्च कर मुख्यालय भवन का कायाकल्प कर कार्पोरेट ऑफिस का लुक दिया गया, वह भी बारहवें वित्त आयोग से पुरा स्मारकों के संरक्षण के लिए मिले पैसे से कराया गया। अधिकारियों ने चालबाजी यह की कि मुख्यालय भवन को भी अल्बर्ट हॉल के हिस्से के रूप में शामिल कर लिया गया था, जबकि अल्बर्ट हॉल से इसका कोई लेना-देना नहीं है।
ऐसे हालातों को देखते हुए कहा जा रहा है कि विभाग को जल्द ही अपना नया मुख्यालय तलाशने की जरूरत है, क्योंकि इस इमारत में जल भराव का कोई स्थाई समाधान नजर नहीं आ रहा है। जब तक स्थाई मुख्यालय नहीं मिल जाता, तब तक इस मुख्यालय को रेलवे स्टेशन के पास आरटीडीसी के खाली पड़े भवन में, पुरानी विधानसभा स्थित एडमा के भवन में या फिर पुराने पुलिस मुख्यालय में ही कुछ जगह की व्यवस्था करके शिफ्ट करना जरूरी हो गया है।
यह है इतिहास
इस भवन के निर्माण से पूर्व पुरातत्व विभाग का कार्यालय अल्बर्ट हॉल के उसी बेसमेंट में चलता था, जिसमें विभाग की ओर से ममी गैलरी बनाई गई थी। पीडब्ल्यूडी ने वर्ष 1960 में इस भवन का निर्माण कराया था। तब पुरातत्व विभाग ने प्रदेशभर में होने वाले उत्खनन में मिलने वाली पुरा सामग्रियों को रखने के लिए इस भवन को पीडब्ल्यूडी से ले लिया था।
पहले भी हो चुका है पुरा सामग्रियों का नुकसान
1981 की बाढ़ में पुरातत्व विभाग के कार्यालय और इस नई इमारत में पानी भर गया था। कई दिनों तक पानी भरे रहने के कारण आधे से ज्यादा उत्खनित प्राचीन सामग्रियां गल कर नष्ट हो गई थी। इनके मलबे को रामनिवास बाग के लॉन में दफना दिया गया था।
प्राचीन सामग्रियों के नष्ट होने के बाद में खाली हुए कमरों में विभाग ने अल्बर्ट हॉल के बेसमेंट से निकालकर अपना कार्यालय इस भवन में शिफ्ट कर लिया था। इसके बाद भी इस भवन में हर बारिश में पानी भरने की समस्या निरंतर बनी रही, जिसके चलते भवन के मुख्यद्वार पर दो फीट ऊची पक्की दीवार बनवा दी गई, ताकि पानी अंदर नहीं आ सके।