जयपुर। जयपुर मेट्रो ने हाल ही में वर्ल्ड हेरिटेज सिटी जयपुर के संरक्षित परकोटा क्षेत्र में मेट्रो फेज वन सी की डीपीआर तैयार कर सरकार को भेजी है। कहा यह जा रहा है कि मेट्रो फेज वन बी की तरह फेज वन सी में भी यह ध्यान रखा जाएगा कि विरासत को किसी प्रकार नुकसान नहीं हो, लेकिन यह बातें सिर्फ राजनेताओं और जनता को बरगलाने के लिए गढ़ी जा रही है। हकीकत में जयपुर मेट्रो का विरासत संरक्षण से कोई लेना-देना नहीं है। इसकी बानगी यह है कि जयपुर मेट्रो यूनेस्को की गाइडलाइन की पालना करने से भी कतरा रहा है।
यूनेस्को की गाइडलाइन के अनुसार परकोटे में जयपुर मेट्रो की ओर से चांदपोल से बड़ी चौपड़ के बीच बनाई गई मेट्रो फेज वन बी परियोजना का पोस्ट ऑपरेशनल हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट कराया जाना जरूरी है। असेसमेंट तैयार कराकर उसको यूनेस्को के संज्ञान में भी लाया जाना जरूरी था कि इस प्रोजेक्ट से चांदपोल से लेकर बड़ी चौपड़ तक हेरिटेज के मूल स्वरूप में क्या-क्या बदलाव आए हैं, लेकिन चांदपोल से बड़ी चौपड़ तक मेट्रो चलते लंबा अरसा बीत जाने के बाद भी जयपुर मेट्रो पोस्ट ऑपरेशनल हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट कराकर यूनेस्को को रिपोर्ट भेजने से कतरा रहा है। उधर, जयपुर मेट्रो के निर्माण से जुड़ अधिकारियों का कहना है कि पोस्ट ऑपरेशनल हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट भी तक नहीं कराया गया है, यदि जरूरी होगा तो करा लिया जाएगा। गौरतलब है कि परकोटे में मेट्रो परियोजना शुरू करने से पहले भी जयपुर मेट्रो की ओर से किसी तरह का हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट नहीं कराया था।
परकोटे में जिस समय मेट्रो का निर्माण कार्य चल रहा था, उस समय इस प्राचीन शहर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी घोषित कराने की भी प्रक्रिया चल रही थी। जयपुर का निरीक्षण करने आए यूनेस्को के विशेषज्ञों ने प्राचीन शहर में मेट्रो और स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्टों पर आपत्तियां भी उठाई थी कि हेरिटेज के बीच नवीन निर्माण कार्य का क्या काम है? यूनेस्को की गाइडलाइन के अनुसार उनकी ओर से संरक्षित क्षेत्र में यदि कोई नवीन निर्माण परियोजना चल रही है तो उसके पूरा होने के बाद हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट होना चाहिए। यदि कोई नई परियोजना शुरू की जाती है तो उससे पूर्व व परियोजना के समाप्त होने के बाद हेरिटेज इम्पेक्ट असेसमेंट करा कर यूनेस्को को भेजा जाना जरूरी है।
सबकुछ तो बदल गया
किसी भी शहर को बसाने के लिए एक ले-आउट प्लान बनाया जाता है। उसी प्लान के अनुसार शहर का निर्माण किया जाता है। वर्ल्ड हेरिटेज सिटी घोषित प्राचीन शहर जयपुर को बसाने के लिए भी एक ले-आउट प्लान बनाया गया था, उसमें चार अक्ष प्रमुख थे, जिन पर इस शहर को विभिन्न हिस्सों में बांटा गया और अलग-अलग चौकडिय़ों का निर्माण किया गया था। इनमें सबसे प्रमुख अक्ष पूर्व से पश्चिम की ओर गलता गेट से चांदपोल गेट तक का है। इसके अलावा अजमेरी गेट से नाहरगढ़, सांगानेरी गेट से आमेर और घाटगेट से लेकर चार दरवाजे तक तीन अन्य अक्ष हैं।
यह तीनो अक्ष पूर्व से पश्चिम के प्रमुख अक्ष को जहां काटते हैं, वह स्थान जयपुर के केंद्रीय स्थल छोटी चौपड़, बड़ी चौपड़ और रामगंज चौपड़ कहलाते हैं। फेज वन बी के निर्माण के बाद इनमें से छोटी चौपड़ और बड़ी चौपड़ का मूल स्वरूप पूरी तरह से बदल चुका है। यदि फेज वन सी बनता है तो रामगंज चौपड़ का मूल स्वरूप बदलना तय है, क्योंकि इसी चौपड़ पर मेट्रो का अंडरग्राउंड स्टेशन बनेगा। स्टेशन निर्माण के दौरान यह चौपड़ पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो जाएगी, जैसा छोटी और बड़ी चौपड़ पर हुआ। इसके बाद स्टेशन के आगम और निकास द्वार बनाने, वेंटिलेशन आदि के कारण चौपड़ का मूल स्वरूप बदल जाएगा।