जयपुर

नाहरगढ़ फोर्ट को लेकर एनजीटी के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया स्टे

पुरातत्व विभाग, आरटीडीसी की याचिका के खिलाफ वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में न तो अपना पक्ष प्रस्तुत किया और न ही काउंसलर को खड़ा किया, जिम्मेदार वन अधिकारी जयपुर में बैठे रहे

जयपुर। वन विभाग राजस्थान के अधिकारी राजधानी के नाहरगढ़ फोर्ट की लड़ाई जीतने के बावजूद अपने हथियार डाल रहे हैं। हाल यह है कि नाहरगढ़ अभ्यारण्य में स्थित नाहरगढ़ फोर्ट में चल रही वाणिज्यिक गतिविधियों के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) भोपाल की ओर से दिए गए आदेशों को चुनौति देने वाली याचिका के खिलाफ वन विभाग ने न तो सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष पेश किया और न ही अपने काउंसलर को खड़ा किया। हैरानी वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में तारीख होने के बावजूद वन विभाग के ओआईसी जयपुर में बैठे रहे, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने तक की जहमत नहीं उठाई। नतीजा यह रहा कि रिजर्व फॉरेस्ट में वाणिज्यिक गतिविधियों को रोकने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया।

हालांकि अभी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सिर्फ स्टे ही दिया है, लेकिन पुरातत्व विभाग और आरटीडीसी ने नाहरगढ़ अभ्यारण्य के नाहरगढ़ फोर्ट में बंद हुई वाणिज्यिक गतिविधियों (रेस्टोरेंट, होटल, बार) और आमेर के लाइट-साउण्ड शो को फि र से शुरू करने की तैयारी शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है कि एनजीटी ने पिछले साल नवंबर में आदेश जारी कर दिसंबर से नाहरगढ़ अभ्यारण्य में समस्त वाणिज्यिक गतिविधियां बंद करने के आदेश दिए थे। एनजीटी के इस आदेशों के खिलाफ पुरातत्व विभाग राजस्थान और राजस्थान पर्यटन विकास निगम लिमिटेड (आरटीडीसी) ने सुप्रीम कोर्ट ने याचिका लगाई थी, जिस पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए स्टे दे दिया।

न्यायधीश अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की बैंच में इस मामले पर सुनवाई हुई। पुरातत्व विभाग और आरटीडीसी की तरफ से पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट मनीष सिंघवी ने दलील दी कि नाहरगढ़ फोर्ट में जो एक्टिविटी चलती थी, वह नॉन फोरेस्ट एक्टिविटी में नहीं आती है। न ही इस एक्टिविटी के शुरू होने के बाद नाहरगढ़ क्षेत्र में पेड़-पौधों या जीव-जंतुओं को कोई नुकसान पहुंचाया गया है।

गत वर्ष अक्टूबर को वनप्रेमी राजेंद्र तिवाड़ी की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद एनजीटी ने नाहरगढ़ वाइल्ड लाइफ एरिया में सभी नॉन फॉरेस्ट एक्टिविटी को बंद करने के लिए कहा था। एनजीटी ने पुरातत्व विभाग और आरटीडीसी को कहा था कि अभ्यारण्य क्षेत्र में इस तरह की वाणिज्यिक गतिविधियां चलाने का आपको कोई अधिकार नहीं है और इसे तुरंत बंद करके फोर्ट को खाली किया जाए। एनजीटी ने जिला कलेक्टर को नोडल अधिकारी बनाकर अभ्यारण्य से समस्त वाणिज्यिक गतिविधियां बंद कराने का निर्देश दिया था, लेकिन जयपुर जिला कलेक्टर एनजीटी के एक भी निर्देश की पालना नहीं करा पाए और न ही वन विभाग ने अभ्यारण्य में अपनी दखल बढ़ाने में कोई रुचि दिखाई।

राजेंद्र तिवाड़ी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में उन्हें और वन विभाग को पार्टी बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट में वन विभाग का पक्ष पेश करने के लिए विभाग ने इस क्षेत्र के डीसीएफ अजय चित्तौड़ा को ओआईसी नियुक्त किया था। चित्तौड़ा की जिम्मेदारी थी कि वह कोर्ट में काउंसलर को खड़ा करें, विभाग का पक्ष पेश कराएं, लेकिन चित्तौड़ा जयपुर में ही रहे। वन विभाग की ओर से कांउसलर खड़ा नहीं किए जाने के कारण पुरातत्व विभाग के काउंसलर ने कोर्ट को मौखिक बताया कि पुरातत्व विभाग और वन विभाग के बीच समन्वय स्थापित हो गया है और शायद इसी बेस पर पुरातत्व विभाग को स्टे मिल गया। यदि यहां वन विभाग का काउंसलर उपस्थित होता तो समन्वय की दलील नहीं चल पाती।

पुरातत्व विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में समन्वय का गलत तथ्य पेश किया है। यदि कोई समन्वय स्थापित हुआ है, तो इसके दस्तावेज कोर्ट में क्यों नहीं पेश किए गए, हम इस मामले में पार्टी हैं और हमें भी यह समन्वय के दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। लगता है कि वन विभाग के अधिकारी या तो किसी दबाव में या पुरातत्व विभाग से मिलीभगत के चलते पेश नहीं हुए। ऐसे में अब वन विभाग को इस स्टे का विश्लेषण करना होगा कि आखिर किस कारण से सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यारण्य में वाणिज्यिक गतिविधियों को रोकने के आदेश को स्टे कर दिया? इसके लिए विभाग के कौन अधिकारी दोषी है? विभाग को इन अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए।

इस संबंध में जब वन विभाग के ओआईसी एसीएफ अजय चित्तौड़ा से सवाल-जवाब

सवाल– आज सुप्रीम कोर्ट में नाहरगढ़ मामले की तारीख थी, क्या हुआ?
जवाब– मैं इस तारीख में नहीं गया। मुझे इस बारे में मालूम नहीं है।

सवाल-इस मामले में ओआईसी आप ही हैं?
जवाब-ओआईसी हर बार थोड़े ही जाता है।

सवाल– क्या वन विभाग की ओर से काउंसलर भी पेश नहीं हुए?
जवाब-मैं तो नहीं गया, मुझे नहीं मालूम है कि क्या आदेश हुए हैं, ओआईसी का काम जवाब पेश करना होता है।

सवाल-क्या वन विभाग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब पेश कर दिया गया है?
जवाब– मुझे इस केस के बारे में ज्यादा मालूम नहीं है, मैं दिखवाता हूं कि क्या जवाब पेश कर दिया गया है।

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