जयपुर

जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी की ‘ना-लायकी’, विरासत संरक्षण में हुए फेल, अब बारामदों पर लगा रहे कोटा स्टोन और सीमेंट की कालिख

धरम सैनी

जयपुर। राजधानी में विरासत संरक्षण का दंभ भर रही जयपुर स्मार्ट सिटी कंपनी की ‘ना-लायकी’अब खुलकर सामने आने लगी है। कंपनी विरासत संरक्षण में पूरी तरह से फेल साबित हो गई है और साफ हो गया है कि कंपनी के अधिकारी विरासत संरक्षण कार्य कराने के लायक ही नहीं है, ऐसे में वह अपनी ना-लायकी छिपाने के लिए विरासत के साथ खिलवाड़ करने में लगे हैं। ताजा मामला सामने आया है त्रिपोलिया बाजार में।

त्रिपोलिया बाजार में स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से दुकानों के आगे बने बरामदों के संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य कराया गया था। दावा यह किया गया था कि शहर के प्राचीन निर्माण की तरह ही यहां संरक्षण का कार्य कराया जाएगा, लेकिन भारी भ्रष्टाचार और संरक्षण व जीर्णोद्धार कार्यों की जानकारी नहीं होने के कारण यहां बेहद घटिया काम कराया गया, जिसकी पोल पिछले वर्ष मानसून में ही खुल गई। अब सीमेंट से लीपा-पोती कर भ्रष्टाचार और कंपनी की नाकामियों को छिपाने का काम चल रहा है।

मिर्जा इस्माइल ने बाजारों की दुकानों के बाहर जो बारामदे बनाए थे, उनपर चूने का पक्का दड़ किया गया था, जिसकी जगह अब स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने ईंटों के चूरे को बिछाकर उसपर चूना पोत दिया, जिससे पूरे बाजारों में बारिश के दौरान बरामदों से झरने बहने लगे। प्रमुख समस्या यह है कि पहले तो दड़ का कार्य ही घटिया हुआ, उसपर इमारतों से बरामदों पर गिरने वाले नालों के पानी से दड़ बर्बाद होने लगा।

अब दे रहे ना-लायकी का उदाहरण
स्मार्ट सिटी का दड़ उघड़ गया तो अब कंपनी के अधिकारी उसपर मनमर्जी से सीमेंट का इस्तेमाल कर कोटा स्टोन के चौके लगवा रहे हैं। चूने की छत का आखिरी सरफेस दड़ होता है। अब यदि दड़ पर कोटा स्टोन लगाया जा रहा है तो फिर कंपनी अधिकारियों को मान लेना चाहिए कि एक-डेढ़ वर्ष पूर्व जो दड़ डाला गया, वह घटिया निर्माण के चलते बर्बाद हो गया है। हैरानी की बात यह है कि चौके लगवाने के बाद अपनी ना-लायकी को छिपाने के लिए अधिकारी मार्बल पाउडर में कली मिलाकर सीमेंट को छिपा रहे हंै।

क्या सरकार नहीं चाहती जयपुर का वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा बरकरार रहे?
स्मार्ट सिटी ने जब से प्राचीन परकोटा शहर में कार्य शुरू किया है, तभी से यह कंपनी लगातार शहर की विरासत से खिलवाड़ कर रही है। कंपनी के अधिकारी संरक्षित स्मारकों को भी नहीं बख्श रहे हैं। तो क्या यह माना जाए कि सरकार नहीं चाहती है जयपुर का वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा बरकरार रहे? आखिर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में और नगर निगम हेरिटेज में बने हेरिटेज सेल के अधिकारी कहां छिपे बैठे हैं? क्यों सरकार स्मार्ट सिटी कंपनी पर सख्ती नहीं कर रही? विरासत की दुश्मन बनी इस कंपनी को परकोटे से बाहर क्यों नहीं निकाला जा रहा है? इन सवालों को कोई तो जवाब होगा, नहीं तो इसका भारी खामियाजा भुगतने के लिए जयपुर को तैयार रहना चाहिए।

अफसरों के नाकाबिले-बर्दाश्त बयान
संरक्षण और जीर्णोद्धार के सामान्य नियमों और यूनेस्को की गाइडलाइन के विपरीत बरामदों पर सीमेंट से लगाए जा रहे कोटा स्टोन पर स्मार्ट सिटी के अधिकारी जो बयान दे रहे हैं, वह बर्दाश्त से बाहर हैं। कंपनी से एसई दिनेश गोयल को तो यह भी मालूम नहीं है कि उनका कहां-कहां और क्या काम चल रहा है। गोयल का कहना है कि मुझे इन कामों की जानकारी नहीं है। इसके बारे में संबंधित अधिशाषी अभियंता नरेंद्र गुप्ता से जानकारी ली जा सकती है।

गाइडलाइन के विपरीत कार्य पर नरेंद्र गुप्ता से सवाल-जवाब
सवाल-क्या त्रिपोलिया बाजार में बरामदों पर कोटा स्टोन स्मार्ट सिटी लगवा रही है?
जवाब-यहां काम आरटीडीसी करा रही है। मुझे इस काम की जानकारी नहीं है, दस मिनट में पता करके बताता हूं।

दस मिनट बाद

सवाल-क्या त्रिपोलिया बाजार के बरामदों पर यूनेस्को की गाइडलाइन के अनुरूप काम हो रहा है।
जवाब-गाइडलाइन में यह कहां लिखा है कि हम कोटा स्टोन नहीं लगा सकते।

सवाल-कोटा स्टोन लगाने के लिए सीमेंट का प्रयोग हो रहा है?
जवाब-गुप्ता इस सवाल को लगातार टालते रहे, कोई जवाब नहीं दिया।

सवाल-आखिर दड़ के ऊपर कोटा स्टोन क्यों लगाया जा रहा है?
जवाब-मकानों के नालों का पानी गिरने से दड़ खराब हो रहा था, इसलिए जहां-जहां पानी गिरता है, वहां कोटा स्टोन के चौके लगाए जा रहे हैं।

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