जयपुर

लंबे शीतयुद्ध के बाद क्या अब होगा न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच सीधा विवाद

विधानसभा स्पीकर्स के सम्मेलन में बोले उपराष्ट्रपति धनखड़, ‘क्या सुप्रीम कोर्ट मुहर लगाए तभी कानून बनेगा’ लोकसभा अध्यक्ष ने कहा- अदालतें मर्यादा का पालन करें

जयपुर। न्यायपालिका और कार्यपालिका में पिछले कई वर्षों से शीतयुद्ध चल रहा था, लेकिन अब क्या न्यायपालिका और कार्यपालिका में सीधा विवाद हो सकता है। कार्यपालिका की ओर से आए ताजा बयानों से तो यही नजर आता है। जयपुर में विधानसभा स्पीकर्स का दो दिवसीय सम्मेलन बुधवार से शुरू हुआ है। इस सम्मेलन में ही यह बयान सामने आए हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी। उपराष्ट्रपति के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी अदालती हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई।

धनखड़ ने कहा कि संसद के फैसले कोई और क्यों रिव्यू करे?1973 में एक बहुत गलत परंपरा चालू हुई। केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर का आइडिया दिया कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं। कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि इससे मैं सहमत नहीं। हाउस बदलाव कर सकता है। यह सदन बताए कि क्या इसे किया जा सकता है? क्या संसद को यह अनुमति दी जा सकती है कि उसके फैसले को कोई और संस्था रिव्यू करे?

धनखड़ ने कहा कि जब मैंने राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया तब कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक​ नहीं होगा। कहना मुश्किल होगा कि हम लोकतांत्रिक देश हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज संसद और विधानसभाओं में जो माहौल है, वह बहुत निराशाजनक है। हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधियों का बर्ताव संसद और विधानसभा सदनों में बहुत गिरता जा रहा है। इस निराशाजनक माहौल का समाधान निकाला जाए, इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। संसद और विधानसभा सदनों में जनप्रतिनिधियों के अशोभनीय बर्ताव से जनता नाराज है। गले नहीं उतरता कि संविधान की शपथ लेने वाले जनप्रतिनिधि ऐसे आचरण करते हैं। लोग सोचते हैं कि हमारे चुनकर भेजे हुए जनप्रतिनिधि रास्ता दिखाएंगे।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि न्यायपालिका भी मर्यादा का पालन करे। न्यायपालिका से उम्मीद की जाती है कि जो उनको संवैधानिक अधिकार दिया है, उसका उपयोग करें। साथ ही अपनी शक्तियों का संतुलन भी बनाए। हमारे सदनों के अध्यक्ष यही चाहते हैं।

सम्मेलन में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कई बार न्यायपालिका से मतभेद होते हैं। ज्यूडिशियरी हमारे कामों में हस्तक्षेप कर रही है। इंदिरा गांधी ने प्रिवी पर्स खत्म किए थे। इसे ज्यूडिशियरी ने रद्द कर दिया था। बाद में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लेकर उनके सब फैसलों के पक्ष में जजमेंट आए।

गहलोत ने कहा- 40 साल से मैंने भी देखा है। कई बार हाउस नहीं चलता। 10-10 दिन गतिरोध चलता है। फिर भी पक्ष और विपक्ष मिलकर भूमिका निभाते हैं। पक्ष-विपक्ष अपनी-अपनी बात करते हैं। जब 75 साल निकल गए हैं तो देश का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। हम संविधान की रक्षा करें। कई बार उस पर भी सवाल उठते हैं। देश में जो माहौल होता है, उसका लोकसभा-विधानसभा हाउस पर भी फर्क पड़ता है।

राजस्थान विधानसभा के स्पीकर डॉ. सीपी जोशी ने कहा कि आज संसदीय लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियां हैं। आज कार्यपालिका की तानाशाही है। विधानसभा सदनों की बैठकें ही कम हो रही हैं तो सरकार को जवाबदेह कौन बनाएगा। विधानसभा स्पीकर तो हेल्पलेस हैं। विधानसभा के स्पीकर तो केवल रेफरी हैं। स्पीकर विधानसभा नहीं बुला सकते हैं। यह काम सरकार करती है। दुर्भाग्य यह है कि हम केवल हाउस चलाते हैं। बाकी कोई पावर नहीं हैं। स्पीकर हेल्पलेस है।

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