दिवाली इस वर्ष 12 नवम्बर को मनाई जाएगी। पांच दिवसीय इस त्यौहार में धनतेरस दिवाली उत्सव का पहला दिन है। यह हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। ‘धन’ का अर्थ है धन और ‘तेरस’ का अर्थ है चंद्र चक्र का तेरहवां दिन।
हिंंदू धर्म में धनतेरस का खास महत्व है। धनतेरस के दिन धन्वंतरि देव, माता लक्ष्मी और कुबेर महाराज की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन कुछ न कुछ खरीदने की भी परंपरा है। खास तौर पर लोग इस दिन बर्तन या सोने या चांदी की चीजें खरीदते हैं। मान्यता है कि इस दिन सोने-चांदी के आभूषण,बर्तन और झाड़ू खरीदना शुभ होता है।लोग घर में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट और नया वाहन लाना भी शुभ मानते हैं। वे इस दिन दिवाली पर पूजा करने के लिए देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की मूर्तियाँ खरीदते हैं।
भगवन धन्वन्तरि की जयंती
धनतेरस ‘आयुर्वेद के देवता’ की जयंती है और इसलिए इसे ‘धन्वंतरि त्रयोदशी’ या ‘धन्वंतरि जयंती’ के रूप में भी जाना जाता है।इस दिन, मान्यताओं के अनुसार, ‘धन की देवी’ लक्ष्मी, समुन्द्र मंथन के समय समुद्र से प्रगट हुई थीं। इस प्रकार, इस दिन ‘धन के देवता’ लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है।
तिथि और पूजा मुहूर्त:
इस वर्ष द्रिकपंचांग के अनुसार धनतेरस 10 नवंबर 2023, शुक्रवार को मनाया जाएगा। त्रयोदशी तिथि 10 नवंबर को दोपहर 12:35 बजे शुरू होगी और 11 नवंबर को दोपहर 1:57 बजे समाप्त होगी।
धनतेरस पर पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
धनतेरस के दिन प्रदोष काल यानि शाम के समय धन्वंतरि देव, कुंबेर महाराज और मां लक्ष्मी की पूजा करने का शुभ समय कहा गया है। पंचांग के अनुसार, 10 नवंबर की शाम 06:02 बजे से 08:34 बजे तक प्रदोष काल रहेगा। मान्यता है कि इस समय पूजा करना अत्यंत लाभकारी होता है।
धनतेरस पर पूजा का महत्व
ऐसा माना जाता है कि अगर हम शुभ मुहूर्त के दौरान धनतेरस पूजा करते हैं तो देवी लक्ष्मी पूरे वर्ष हमारे घरों में निवास करती हैं और हमारे जीवन में प्रचुरता और समृद्धि लाती हैं।
धनतेरस पर कब करें खरीदारी?
धनतेरस पर बर्तन ,सोने -चांदी, बर्तन, झाड़ू या घर का कोई भी सामान खरीदने वाले हैं तो 10 नवंबर को दोपहर 12:35 बजे से शाम 6: 40 बजे तक आप खरीद सकते हैं। अगर आप इस दिन खरीदारी न कर पाएं तो आप 11 नवंबर को दोपहर 1:57 बजे तक खरीद सकते हैं। इसके बाद त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाएगी। धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन, प्रॉपर्टी, वाहन, बही-खाता, आभूषण आदि खरीदना बेहद फलदायी माना गया है। कहते हैं आज के दिन खरीदी गई वस्तुएं लंबे समय तक समृद्धि प्रदान करती हैं।
पुराणों में इस दिन का इतिहास
किंवदंती है कि अपनी शादी की चौथी रात, राजा हिमा का सोलह वर्षीय बेटा सांप के काटने के कारण मरणासन्न था। उसकी पत्नी ने उसकी जान बचाने की कोशिश में अपना सारा सोना, पैसा और गहने एक टीले में इकट्ठा कर दिए। अपने पति को सोने से बचाने के लिए वह गाने गाती रही और उसे कहानियाँ सुनाती रही। जब यमराज, ‘मृत्यु के देवता’, राजकुमार को मारने के लिए एक साँप के रूप में प्रकट हुए, तो वह सोने की चमक से चकित हो गए और कहानियों और संगीत से मंत्रमुग्ध हो गए।
तब से, लोगों ने ‘यमदीपदान’ नामक प्रथा का पालन करना शुरू कर दिया, और वे यमराज का सम्मान करने और बुराई और परिवार के किसी भी सदस्य की प्रारंभिक मृत्यु को रोकने के लिए इस दिन पूरी रात दीये जलाते हैं।