श्री कान्यकुब्ज ब्राह्मण विकास समिति ने रविवार, 19 नवंबर को जयपुर में दीपावली स्नेह मिलन समारोह का आयोजन किया। इस मौके पर स्वतंत्रता सेनानी स्व. पंडित श्री शांति स्वरूप अग्निहोत्री की पुण्य स्मृति में उनके नाम से समाज के कार्यालय में एक वाचनालय का उद्घाटन किया गया। वाचनालय का विधिवत् उद्घाटन स्वर्गीय पंडित शांति स्वरूप अग्निहोत्री के पुत्र आनंद स्वरूप अग्निहोत्री और रमेश चंद्र मिश्रा ने फीता काटकर किया और इसे समाज को समर्पित किया।
श्री कान्यकुब्ज ब्राह्मण विकास समिति का दीपावली मिलन समारोह कान्यकुब्ज भवन में आयोजित हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन व गणेश वंदना के साथ हुई। इसके बाद समिति के पदाधिकारियों ने कार्यक्रम के अध्यक्ष रमेश चंद्र मिश्रा और पधारे हुए अन्य गणमान्य सदस्यों का माल्यार्पण कर उनका स्वागत किया। इस मौके पर सभी ने एक दूसरे को दीपावली की शुभकामनाएं दी। श्री कान्यकुब्ज ब्राह्मण विकास समिति के वर्तमान अध्यक्ष राजेश चन्द्र द्विवेदी ने अपने उदघाटन भाषण में पधारे हुए सभी समाज बन्धुओ से आग्रह किया कि वे आपसी मतभेद भुलाकर समाज के लिए संगठित हों। उन्होंने कहा कि समाज के सभी बंधु जब एकजुट होंगे तभी अपनी ताकत को प्रदर्शित कर सकेंगे।
स्वर्गीय पंडित शांति स्वरूप अग्निहोत्री का व्यक्तित्व और कृतित्व
इस मौके पर आनंद स्वरूप अग्निहोत्री ने बताया कि स्वर्गीय पंडित शांति स्वरूप अग्निहोत्री उत्तर प्रदेश में हरदोई जिले की बिलग्राम तहसील के पूराअत्ता गांव में 22 सितम्बर, 1925 को जन्मे थे। जब वे मात्र 4 वर्ष के ही थे, तभी उनके पिता पंडित श्री विष्णु नारायण अग्निहोत्री जी का निधन हो गया। इस विकट परिस्थिति में आदरणीय शांति स्वरूप को इनके ननिहाल जो फर्रुखाबाद के रामपुर मांझ गांव से सहयोग प्राप्त हुआ। शांति स्वरूप अग्निहोत्री की प्रारंभिक शिक्षा सावित्री पाठशाला, फर्रुखाबाद में हुई। अध्ययन के दौरान उन्होंने 1942 पर में भारत रोको आन्दोलन में उत्साह के साथ भाग लिया जिसके कारण इन्हें विद्यालय से निष्कासित कर दिया और उन्हें गांव से फरार होना पड़ा।
पुलिस सेवा और फिर विधानसभा में रिपोर्टर पद पर तैनात
वर्ष 1943 में आप अपने मामा के घर अजमेर गए। यहां आगे की पढ़ाई करते हुए वे पुलिस में भर्ती हो गये और वर्ष 1968 में सब इन्स्पेक्टर पद पर रहते हुए जयपुर स्थानांतरित हुए। इन्हीं दिनों कान्यकुब्ज समाज के बड़े- बुजगों के सहयोग से उन्होंने राजस्थान कान्यकुब्ज ब्राह्मण महासभा की स्थापना की। वर्ष 1968 में शांति स्वरूप जी ने पुलिस की नौकरी छोड़कर राजस्थान विधानसभा में रिपोर्टर पद पर सेवा प्रारंभ की और इसी दौरान उन्होंने हिन्दी साहित्य की विशारद और प्रभाकर की उपाधियां प्राप्त कीं। इसके अलावा उन्होंने हिंदी और संस्कृत में स्नाकोत्तर (एमए) भी किया और एलएलबी की उपाधि भी प्राप्त की।
आदरणीय शांति स्वरूप जी की लेखन और संपादन कार्य में गहन रुचि थी। आपके लेख और कविताएं नियमित रूप से प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ करते थे। शांति स्वरूप जी के ज्ञान और योग्यता के आधार पर ही उन्हें राज्य सरकार ने राजस्थान भूदान बोर्ड का दो बार सदस्य मनोनीत किया गया था। इसके अलावा वे राजस्थान विधानसभा में बनने वाले कानूनों के प्राधिकृत पाठ को अंतिम रूप देने वाली विधि विभाग की कमेटी ‘ राजस्थान शासन हिन्दी विधायी समिति ’ के सदस्य भी रहे। विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थाओं का आपका नेतृत्व और मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। वे आर्य समाज, मोती कटला के प्रधान रहे। आर्य प्रतिनिधि सभा, जयपुर के उपप्रधान तथा प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। आदरणीय शांति स्वरूप जी ‘मन्दिर मुरली मनोहर जी’ बास बदनपुरा – गंगापोल बाहर के ट्रस्टी भी रहे।
साहित्य लेखन और समाज सेवा
आदरणीय शांति स्वरूप अग्निहोत्री जी द्वारा संपादित पंडित मुकुट बिहारी लाल भार्गव के जीवन पर हो स्मृति ग्रंथ न्यायिक क्षेत्र में मील का पत्थर हैं। क्रिया योग परम्परा के महान संत ‘स्वामी हरिहागिरी’ उपाख्य ‘पहाड़ी बाबा ‘के जीवन पर भी दो स्मारिकाओं के संपादन में भी आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अनेक शोधार्थी आपसे मार्गदर्शन लेने एवं सन्दर्भ पुस्तकें हेतु भेंट करने आते रहते थे। अनेक विद्वान समाजसेवी, साहित्यकार, धार्मिक महापुरुष, राजनेता चर्चा, संपर्क एवं भेंट के लिए आते रहते थे। वर्ष 1986 में आपको राज्य सरकार द्वारा स्वतंत्रता संग्राम सेवारी सम्मान पेंशन स्वीकृत की गयी थी। वर्ष 1992 में एक राज भवन, जयपुर में आपको महामहिम राज्यपाल द्वारा ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया। आपकी पुस्तकों का अध्ययन और निराल ज्ञानार्जन में विशेष रुचि रही। आपकी इच्छा रही कि आपका पुस्तक संग्रह समाज के हित में उपयोग में किया जाए। आप जयपुर के चौड़ा रास्ता बाजार में स्थित ‘महाराजा सार्वजनिक पुस्तकालय की पुस्तक चयन समिति के भी सदस्य रहे थे। शांति स्वरूप अग्निहोत्री का 31 मई, 1996 को रात्रि में हृदयाघात से निधन हो गया। इसके दूसरे दिन यानी 1 जून 1396 को आपका पूर्ण राजकीय सम्मान से तिरंगा ओढ़ाकर पुलिस सलामी के साथ आपका अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ।
आनंद स्वरूप अग्निहोत्री ने बताया, उनके पिता शांति स्वरूप अग्निहोत्री की इच्छा रही कि समाज एकजुट हो और इसके लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहे। यही वजह है कि उन्होंने अपने पिता द्वारा संकलित पुस्तकों का खजाना समाज के लिए भेंट किया है। उम्मीद है कि इसका सदुपयोग होता रहेगा।