चुनावजयपुर

राजस्थान में युवा चेहरे को मिलेगा मुख्यमंत्री का ताज..!

धरम सैनी
भारतीय जनता पार्टी की ओर से छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा हो चुकी है। अब सबकी निगाहें राजस्थान पर टिकी हुई है। मध्यप्रदेश की घोषणा के बाद राजस्थान में सीएम फेस पर चर्चाएं तेज हो गई है और नाम को लेकर अलग—अलग कयास लगाए जा रहे हैं।
समीकरणों की बात करें तो कहा जा रहा है कि राजस्थान में किसी युवा चेहरे को ही कमान मिल सकती है। छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा के ट्रेंड को देखते हुए यह समीकरण बताया जा रहा है। राजनीति के जानकारों का कहना है ​कि भाजपा ने इस समय जीते हुए विधायकों में से ही युवा और उर्जावान चेहरों को ही छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की कमान सौंपी है। ऐसे में राजस्थान में भी जीते हुए विधायकों में से ही किसी युवा चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है। इसके पीछे कार्यकर्ताओं के जोश को बढ़ाना और उन्हें भरोसा दिलाना है कि भाजपा में कोई साधारण कार्यकर्ता भी सत्ता में उंचाईयों पर पहुंच सकता है। भाजपा कार्यकर्ताओं के जोश का फायदा लोकसभा में लेना चाह रही है। इसके साथ ही जातिगत और राजनीतिक समीकरण भी भाजपा साध रही है।
जानकार कयास लगा रहे हैं कि अगर भाजपा का यही समीकरण राजस्थान में भी रहा तो अर्जुनराम मेघवाल, किरोड़ीलाल मीणा, ओम बिड़ला, वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह, अश्विनी वैष्णव जैसे नाम रेस से बाहर हो जाते हैं। अर्जुनराम, किरोड़ीलाल, वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह उम्रदाराज नेता हैं। वहीं ओम बिड़ला और अश्विनी वैष्णव ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा है। ऐसे में यह दोनों भी मुख्यमंत्री की रेस से बाहर हो जाते हैं।
अब दीया कुमारी और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ का नाम शेष बचता है। ऐसे में राजनीति के जानकार कयास लगा रहे हैं कि इन दोनों में से या फिर कांग्रेस के जातिगत जनगणना के मुद्दे की काट के लिए जीते हुए विधायकों में से किसी ओबीसी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए जातिगत जनगणना एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इसकी काट के लिए राजस्थान में भी ओबीसी चेहरा दिया जा सकता है। अगर भाजपा राजस्थान में सामान्य वर्ग से मुख्यमंत्री बनाती है, तो फिर उपमुख्यमंत्री का एक पद ओबीसी को दिया जा सकता है। यह कयास इसलिए लगाया जा रहा है कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ में बड़े आदिवासी वोटबैंक को साधने का काम किया है। वहीं मध्यप्रदेश और राजस्थान में ओबीसी वर्ग 65 फीसदी वोटरों का सबसे बड़ा वोटबैंक है।

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