जयपुरधर्म

आज से चैत्र नवरात्रि आरंभ.. प्रतिपदा पर करें कलश स्थापना और मां शैलपुत्री का पूजन

मंगलवार, 9 अप्रेल 2024 से चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा के साथ विक्रम संवत् 2081 का आरंभ हो रहा है। इस पावन पर्व पर क्लीयरन्यूज डॉट लाइव परिवार की ओर से सभी को मंगलकामनाएं। हम सभी के उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं और हृदय के अंतःस्थल से चाहते हैं कि सभी के लिए नव वर्ष प्रसन्नता की स्थितियां उत्पन्न करें।
चैत्र नवरात्रि की शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है और इसी दिन से हिन्दू नववर्ष की भी शुरुआत मानी जाती है। यद्यपि चैत्र माह की शुरुआत होलिका के दूसरे दिन यानी कृष्णपक्ष से हो जाती है जो अमावस पर पूर्ण होता है। लेकिन, इसके बाद यानी शुक्ल पक्ष के आरंभ होते ही चंद्रमा धीरे-धीरे अपना आकार बड़ा करना आरंभ करता है यानी शुभता की ओर अग्रसर होता है। जिस तरह चंद्रमा अपना आकार बढ़ाता है, शुभता का विस्तार करता हुआ पूर्णिमा की ओर बढ़ता है। चंद्रमा के बढ़ने के इसी संकेत के साथ हिंदू भी चाहते हैं जीवन में शुभता दिनों-दिन बढ़ती ही जाए। यही वजह है कि चैत्र नवरात्रि में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर आरंभ होता है और नववर्ष भी इसी दिन मनाया जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में ही घटस्थापना की जाती है। इस अनुष्ठानिक कार्य को कलश स्थापना भी कहा जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा का आशीर्वाद पाने के लिए घटस्थापना शुभ मुहूर्त में करना अति महत्वपूर्ण है।
इस बार कलश स्थापना का मुहूर्त
मंगलवार 9 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 32 मिनट तक पंचक रहने वाले हैं इसलिए कलश स्थापना इस समय या इससे पहले करना संभव उचित नहीं माना गया है। इसके बाद 9 बजकर 11 मिनट से अशुभ चौघड़िया रहेगा। अतः घट स्थापना के लिए शुभ चौघड़िया यानी 9 बजकर 12 मिनट से 10 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। इस दौरान घटस्थापना की जा सकती है। घटस्थापना के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त है। अभिजीत मुहूर्त का आरंभ 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। सबसे उत्तम मुहूर्त कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त ही है। दरअसल, अभिजीत मुहूर्त के दौरान वैघृत और अश्विनी नक्षत्र का शुभ संयोग भी रहने वाला है।
ऐसे करें कलश स्थापना
कलश स्थापना करने के लिए सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश या छोटा घड़ा, नारियल, लाल चुनरी, हल्दी, अक्षत, लाल रंग का वस्त्र, सिक्का, पंच पल्लव, सुपारी, शहद, गंगाजल, पंच पल्लव, रोली, जौं के बीज, लाल कपड़ा लें।
नवरात्रि में सुबह जल्दी उठें। इसके बाद स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद अपने घर के मंदिर को अच्छे से स्वच्छ कर लें। फिर, मंदिर की साफ सफाई के बाद उसे अच्छे से फूलों से सजाएं। घट स्थापना के लिए सबसे पहले कलश में पानी भरकर रख दें। इसके बाद कलश में सिक्का, सुपारी, गंगाजल, शहद और आम के पत्ते रखें। इसके बाद नीचे मिट्टी को फैला लें और अष्टदल बनाएं। फिर नारियल को एक लाल कपड़े में बांधकर कलश के ऊपर स्थापित कर दें। कलश पर स्वास्तिक जरुर बनाएं और साथ में मिट्टी के बर्तन में जौ के दाने भी जरूर बो दें। कलश स्थापना के बाद में दुर्गा मां के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री का पूजन करें।
मां शैलपुत्री का स्वरूप
देवी दुर्गा का पहला स्वरूप मां शैलपुत्री सफेद वस्त्र धारण किए हुए, वृषभ पर सवार रहती हैं। उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल होता है। मां शैलपुत्री को स्नेह, धैर्य, शांति का रूप माना जाता है। शैलपुत्री की पूजा करने से अविवाहित युवतियों को मनचाहा वर मिल सकता है।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद देवी शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री, संस्कृत में, दो शब्दों का मेल है- ‘शैल’ जिसका अर्थ है पर्वत और ‘पुत्री’ जिसका अर्थ है बेटी।पुराणों के मुताबिक, देवी सती के आत्मदाह के बाद पर्वतराज हिमालय के घर पार्वती ने जन्म लिया था। इसलिए उनका नाम शैलपुत्री भी है।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
सुबह उठकर स्नानादि के बाद आपने कलश स्थापित कर दिया होगा। इसके बाद आटे से चौक बनाकर एक चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना करें। इसके बाद मां शैलपुत्री का ध्यान कर व्रत का संकल्प करें। चूंकि मां शैलपुत्री को सफेद रंग प्रिय है इसलिए उन्हें सफेद वस्‍त्र और सफेद पुष्प में चमेली अर्पित करें। जहां तक संभव हो भोग के लिए भी सफेद मिठाई का ही उपयोग करें। इसके बाद मां शैलपुत्री की कथा का पढ़ें या सुनें।
मां शैलपुत्री को लगाएं भोग
नवरात्रि 2023 के पहले दिन आलू का हलवा, राजगिरा का लड्डू या साबूदाना खिचड़ी जैसे प्रसाद का भोग लगा सकते हैं। इसके अलावा आप देवी मां को अनार का फल अर्पित कर सकते हैं।
मां शैलपुत्री की इन मंत्रों के साथ करें पूजा

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

स्तोत्र

प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोजानि त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनि।
मोक्ष भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

मां शैलपुत्री आरती

सर्व मंगला मंगल्ये, शिव सर्वार्थ साधिका ।

शरण्ये त्रयम्बके गौरी, नारायणी नमोस्तुते ।।

सर्व स्वरूपे सर्वेशे, सर्व शक्ति समन्वयते ।

भये भ्यस्त्राही नो देवी, दुर्गे देवी नमोस्तुते ।।

एतत्ते वदनं सौम्यं लोचना त्रयभुषितम् ।

पातु नः सर्वभितिभ्यः कात्यायनि नमोस्तुते ।।

ज्वाला करला मत्युग्राम शेषासुर सुदानम् ।

त्रिशूलं पातु नो भितर भद्रकाली नमोस्तुते ।।

या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थितः ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।

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