दिल्लीराजनीति

पीएम मोदी कहीं दबाव में तो नहीं, लेटरल एंट्री पर लगायी गयी रोक..!

पीएम मोदी ने सहयोगी दलों के दबाव आकर उठाया गया अपना कदम वापस ले लिया है। उनके निर्देश पर केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री पर रोक लगाने का फैसला किया है। इसके लिए संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी को निर्देश दिये गये हैं कि वह लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्तियां ना करे। कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन प्रीति सूदन को पत्र लिखकर कहा है कि इस नीति को लागू करने में सामाजिक न्याय और आरक्षण का ध्यान रखा जाना चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन वाली सरकार में पीएम मोदी क्या अब दबाव में आ गये हैं, राजनीतिक गलियारों में यह प्रश्न अब लगातार पूछा जाने लगा है। इसका ताजा उदाहरण लेटरल एंट्री के जरिए नियुक्तियों के कदम पर यू टर्न लेना माना जा रहा है। बता दें कि लेटरल एंट्री में आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस पार्टी ने उठाया जिसके बाद एनडीए के सहयोगियों जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) ने भी आपत्ति दर्ज कराई। लोकसभा चुनावों में आरक्षण के मुद्दे पर तगड़ा झटका खा चुकी बीजेपी ने इस मुद्दे पर राजनीति गरमाने से पहले कदम वापस लेने का फैसला किया है।
कार्मिक विभाi के मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन को लिखे अपने पत्र में कहा है कि केंद्र सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए लोगों को नियुक्त किया जा रहा है। हाल ही में यूपीएससी ने केंद्र सरकार के विभिन्न स्तरों पर ‘लेटरल एंट्री’ के लिए विज्ञापन जारी किया था। मंत्री ने अपनी चिट्ठी में कांग्रेस सरकारों में बिना आरक्षण के लेटरल एंट्री का भी जिक्र किया। उन्होंने लिखा, ‘कई मंत्रालयों और यूआईडीएआई के प्रमुखों जैसे पदों पर बिना आरक्षण की प्रक्रिया का पालन किए ही भर्तियां की गई थीं। यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि किस तरह कुख्यात राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्य प्रधानमंत्री कार्यालयल (पीएमओ) को नियंत्रित करने के लिए सुपर-ब्यूरोक्रेसी की तरह संचालित हो रहे थे।’
लेटरल एंट्री में होता था भाई-भतीजावाद
इससे पहले मंत्री ने कहा कि लेटरल एंट्री के विचार को कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में 2005 में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग ने स्वीकार किया था। वर्ष 2013 में गठित छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं। उन्होंने कहा कि विभिन्न मंत्रालयों में सचिव पद या UIDAI के प्रमुख पद आदि अनेक पदों पर पूर्व की सरकारों में ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए बिना किसी आरक्षण के लोगों को नियुक्त किया गया था। उन्होंने कहा है कि यह एक तात्कालिक तरीका था और इसमें भाई-भतीजावाद का बोलबाला था।
पीएम नरेंद्र मोदी के निर्देश पर लगायी गयी रोक
कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने आगे कहा कि मौजूदा सरकार ‘लेटरल एंट्री’ की प्रक्रिया को संस्थागत, पारदर्शी और खुला बनाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह प्रक्रिया हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए। मंत्री ने विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों का जिक्र किया और कहा कि प्रधानमंत्री का मानना है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय की नींव है, जिसका लक्ष्य ऐतिहासिक अन्यायों को दूर करना और समावेशी समाज बनाना है।
सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार में कई ऐसे पद हैं जो विशेषज्ञता वाले हैं और जिनमें सिंगल कैडर पोस्ट की व्यवस्था है। इन पदों पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है, जिसकी समीक्षा करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह पहलू प्रधानमंत्री के सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लक्ष्य के अनुरूप नहीं है। इसलिए, उन्होंने यूपीएससी से 17 अगस्त 2024 को जारी ‘लेटरल एंट्री’ से भर्ती के विज्ञापन को रद्द करने का निर्देश दिया है। सिंह ने कहा कि इस कदम से सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति होगी।

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