सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपराधियों पर बुलडोजर कार्रवाई के मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें अदालत ने इस तरह की कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया के सख्त पालन का निर्देश दिया। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले में कई सख्त टिप्पणियाँ करते हुए इसे कानून के शासन के विपरीत बताया। अदालत ने पूरे देश में इस कार्रवाई पर गाइडलाइन्स जारी करने की बात भी कही ताकि भविष्य में इस प्रकार के मामलों में संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन न हो।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मुख्य बातें
1. कार्यपालिका के अधिकार सीमित
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि कार्यपालिका केवल आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति का घर या संपत्ति ध्वस्त नहीं कर सकती। किसी आरोपी को दोषी ठहराने या सजा देने का कार्य न्यायपालिका का है, कार्यपालिका का नहीं। इस तरह की कार्रवाई का आदेश प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा नहीं दिया जा सकता है, अन्यथा यह कानून के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध माना जाएगा।
2. शक्तियों का दुरुपयोग अस्वीकार्य
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कार्यपालिका द्वारा की गई अनुचित कार्रवाई, जैसे कि अचानक किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना, संविधान के आदर्शों के विपरीत है और यह लोकतांत्रिक शासन के लिए अनुचित है। कानून किसी भी शक्ति के दुरुपयोग की इजाजत नहीं देता और ऐसे मामलों को गंभीरता से देखा जाना चाहिए।
3. विध्वंस से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य
अदालत ने स्पष्ट किया कि जब किसी भवन को विध्वंस के लिए चुना जाता है और अन्य समान संरचनाओं को छोड़ दिया जाता है, तो यह मनमानी के समान है। यह स्पष्ट रूप से कानूनी कार्रवाई का ढोंग कर बिना सुनवाई के दंडित करने जैसा हो सकता है। इसके लिए उचित नोटिस और व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
4. आवास का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत
सुप्रीम कोर्ट ने आवास के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित बताया। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को उनके घर से बेदखल किया जाना है, तो पहले यह प्रमाणित करना आवश्यक होगा कि ध्वस्तीकरण ही अंतिम विकल्प है। इसके अतिरिक्त, घर के हिस्से को हटाने से पहले अन्य वैकल्पिक समाधानों पर विचार किया जाना चाहिए।
5. नोटिस और व्यक्तिगत सुनवाई का प्रावधान
न्यायालय ने निर्देश दिया कि ध्वस्तीकरण से पूर्व व्यक्ति को उचित कारण बताओ नोटिस भेजा जाए, जिसमें अवैध निर्माण की प्रकृति और उल्लंघन का विवरण हो। यह नोटिस पंजीकृत डाक द्वारा भेजा जाएगा और संरचना पर चिपकाया जाएगा ताकि जानकारी संबंधित व्यक्ति तक पहुंचे। इसके साथ ही आरोपी को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाएगा और कार्रवाई का विवरण रिकॉर्ड में रखा जाएगा।
6. डेमोलिशन की वीडियो रिकॉर्डिंग
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि विध्वंस की पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाए और उसे एक सार्वजनिक डिजिटल पोर्टल पर प्रकाशित किया जाए। इससे पारदर्शिता बनी रहेगी और संबंधित अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
7. निर्देशों के उल्लंघन पर सख्त कार्यवाही
अदालत ने चेतावनी दी कि निर्देशों का उल्लंघन करने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की जाएगी। यदि ध्वस्तीकरण अवैध पाया गया, तो अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से इसकी जवाबदेही वहन करनी होगी और संपत्ति की पुनर्स्थापना के लिए हर्जाने का भुगतान करना पड़ेगा।
मनमानी कार्रवाई पर कोर्ट का सख्त रुख
अदालत ने कहा कि किसी भी अधिकारी को मनमानी तरीके से घर या संपत्ति ध्वस्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसा पाया जाने पर संबंधित अधिकारी पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने यह भी कहा कि विध्वंस से पूर्व संबंधित व्यक्ति का पक्ष अवश्य सुना जाना चाहिए और प्रशासन स्वयं को न्यायाधीश के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकता।
पूरे परिवार को दंडित नहीं किया जा सकता
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी आरोपी के अपराध के कारण उसके पूरे परिवार को सजा देना उचित नहीं है। यह गाइडलाइन्स किसी विशेष राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए लागू होंगी। कोर्ट ने प्रावधान दिया कि विध्वंस के मामलों में संबंधित अधिकारी से इस प्रक्रिया के पालन की अपेक्षा की जाएगी।
निष्पक्षता के साथ कार्य करना आवश्यक
फैसले के अंत में जस्टिस गवई ने कहा कि हर व्यक्ति का घर उसका सपना होता है और उसे मनमाने ढंग से छीनना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। न्यायालय का यह निर्णय विध्वंस से जुड़े मामलों में कानूनी प्रक्रिया और निष्पक्षता की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है, जो संविधान के आधारभूत सिद्धांतों को बरकरार रखेगा।