नयी दिल्ली। ईरान के परमाणु अनुसंधान केंद्र पर इजरायल के हमले ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हलचल मचा दी है। यह हमला ईरान के पारचिन स्थित गोपनीय परमाणु अनुसंधान केंद्र पर हुआ, जहां जटिल उपकरण नष्ट कर दिए गए। इन उपकरणों का उपयोग परमाणु चेन रिएक्शन शुरू करने के लिए किया जाता था। इस घटना ने ईरान और इजरायल के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है, और परमाणु युद्ध की आशंका ने गंभीर रूप धारण कर लिया है।
इजरायली हमले में ईरान को हुआ नुकसान
इजरायल ने 26 अक्टूबर को ईरान के पारचिन सैन्य परिसर के अंदर मौजूद तालेघन 2 परमाणु केंद्र को निशाना बनाया। यह केंद्र 2003 से पहले परमाणु उपकरणों के परीक्षण के लिए उपयोग किया जाता था। इजरायल ने दावा किया है कि इस हमले में ईरान का अंतरिक्ष केंद्र, मिसाइल निर्माण इकाइयां और कई महत्वपूर्ण उपकरण नष्ट हो गए। चार ईरानी सैनिकों की मौत भी हुई। इसके साथ ही, ईरान की परमाणु परियोजनाओं को बड़ा झटका लगा है।
हालांकि, ईरान ने इन नुकसानों को मामूली बताया है। ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने अभी तक कोई बड़ा जवाबी कदम नहीं उठाया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ईरान चुप रह पाएगा?
अमेरिका और इजरायल का आरोप
अमेरिकी और इजरायली अधिकारियों का दावा है कि ईरान ने पिछले एक साल में परमाणु हथियारों से संबंधित शोध फिर से शुरू किया है। इजरायल ने अपने हमले को आत्मरक्षा करार देते हुए कहा है कि इस कार्रवाई से ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने में बाधा आएगी। अमेरिका ने भी इस हमले का समर्थन किया है और ईरान को चेतावनी दी है कि अगर वह पलटवार करता है, तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
ट्रंप की वापसी और ईरान की रणनीति में बदलाव
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों की लंबे समय से आपत्तियां रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में लौटने की संभावना के बीच ईरान अब नरमी दिखा रहा है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने हाल ही में ईरान के दो बड़े परमाणु केंद्रों का दौरा किया है। ट्रंप के पिछले कार्यकाल में अमेरिका ने ईरान के परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था और कड़े प्रतिबंध लगाए थे।
पिछले वर्ष, ईरान ने IAEA की निगरानी टीम के कई सदस्यों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन अब ट्रंप की संभावित वापसी के मद्देनजर वह सहयोग की इच्छा जता रहा है।
क्या बदले की तैयारी में है ईरान?
इजरायल के हमले के बाद, खामेनेई ने सेना को तैयार रहने का आदेश दिया था। हालांकि, महीना बीतने के करीब है, लेकिन ईरान ने अभी तक इजरायल के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। यह सवाल उठता है कि क्या ईरान सही मौके का इंतजार कर रहा है, या वह इस समय प्रतिक्रिया देने की स्थिति में नहीं है?
निष्कर्ष:
इजरायल के हमले ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बड़ा झटका दिया है, लेकिन यह घटनाक्रम क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा सकता है। पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन बनाए रखना अब और चुनौतीपूर्ण हो गया है। यह देखना अहम होगा कि ईरान इस स्थिति से कैसे निपटता है और क्या उसका अगला कदम इजरायल के साथ सीधा टकराव होगा।