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संविधान दिवस तक ऐसा कोई कैदी जेल में न हो, जिसने अपनी एक-तिहाई सजा काट ली हो और उसे न्याय न मिला होः गृह मंत्री अमित शाह

नयी दिल्ली। भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक सुधार की बात करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि तीन नए आपराधिक कानूनों के लागू होने से एफआईआर दर्ज होने के तीन साल के भीतर सुप्रीम कोर्ट स्तर का न्याय सुनिश्चित किया जाएगा। उन्होंने यह टिप्पणी अखिल भारतीय पुलिस विज्ञान सम्मेलन में की और अगले दशक को भारत की न्याय प्रणाली को दुनिया की सबसे वैज्ञानिक और प्रभावी बनाने का समय बताया।
तीन नए कानून: न्यायिक प्रक्रिया में सुधार
अमित शाह ने बताया कि 1 जुलाई, 2024 से लागू तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), पुलिस और अदालतों की प्रक्रियाओं को सरल और समयबद्ध बनाने के उद्देश्य से तैयार किए गए हैं।
शाह ने कहा कि 26 नवंबर, संविधान दिवस तक यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जेलों में एक-तिहाई सजा काट चुके कैदियों का कानूनी समाधान लंबित न रहे। उन्होंने कहा, “हमने अदालतों, अभियोजन पक्ष और पुलिस को 60 से अधिक प्रावधानों के माध्यम से समय सीमा में काम पूरा करने के लिए बाध्य किया है। यदि किसी आरोपी का ट्रायल समय पर शुरू नहीं होता, तो जेल अधिकारी खुद बेल प्रक्रिया अदालत में पेश करेंगे। हमारा लक्ष्य है कि संविधान दिवस तक ऐसा कोई कैदी जेल में न हो, जिसने अपनी एक-तिहाई सजा काट ली हो और उसे न्याय न मिला हो।”
पुलिस सुधार और जवाबदेही
गृह मंत्री ने कहा कि पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए बड़े कदम उठाए गए हैं। उन्होंने कहा, “पुलिस को अधिक सक्षम और जवाबदेह बनाने के लिए हमने कई सुधार किए हैं। यह परिवर्तन न केवल न्याय में देरी को रोकेगा बल्कि पुलिस व्यवस्था को और मजबूत करेगा।”
आने वाले दशक की चुनौतियां
शाह ने कहा कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारत को पांच प्रमुख चुनौतियों विशेषतौर पर साइबर अपराध, सीमाओं की सुरक्षा और घुसपैठ की रोकथाम, ड्रोन का अवैध उपयोग, मादक पदार्थों की तस्करी और डार्क वेब का दुरुपयोग से निपटना होगा।
उन्होंने कानून प्रवर्तन अधिकारियों से आग्रह किया कि वे इन अपराधों से निपटने के लिए अपराधियों से दो कदम आगे रहें और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करें।
गृह मंत्री के अनुसार, इन सुधारों और नए कानूनों से न केवल न्याय प्रक्रिया को गति मिलेगी, बल्कि भारत की न्याय प्रणाली को वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक और प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी। इन प्रयासों से न्याय में देरी के मुद्दे को भी समाप्त किया जा सकेगा और पुलिस तथा न्यायालयों की कार्यक्षमता बढ़ेगी।

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