नयी दिल्ली। पिछले (चालू) वित्तीय वर्ष का आर्थिक सर्वेक्षण और आगामी वित्तीय वर्ष का बजट प्रस्तुत किया जा चुका है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2025 को बजट पेश किया। इस बार का बजट मुख्य रूप से उपभोग पर केंद्रित रहा। कर प्रणाली में किए गए बदलावों के माध्यम से सरकार ने जनता के हाथों में अधिक धन पहुंचाने की कोशिश की है।
अब जब बजट प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, तो देश के केंद्रीय बैंक और सरकार के बैंकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। आरबीआई 5 फरवरी से 7 फरवरी के बीच अपनी द्वि-मासिक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक आयोजित करने जा रहा है।
बैठक का परिणाम 7 फरवरी को आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा द्वारा घोषित किया जाएगा। यह बैठक इसलिए भी खास है क्योंकि यह आरबीआई के नए गवर्नर की अध्यक्षता में होने वाली पहली एमपीसी बैठक होगी। संजय मल्होत्रा ने पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास की जगह ली है।
क्या ब्याज दरों में कटौती होगी?
ब्याज दरों में कटौती को लेकर उद्योग जगत, शेयर बाजार और यहां तक कि सरकार भी उत्सुकता से इंतजार कर रही है।
पिछली 6 दिसंबर को हुई एमपीसी बैठक में आरबीआई, जो उस समय शक्तिकांत दास के नेतृत्व में था, ने रेपो रेट 6.50% पर बनाए रखने का फैसला किया था।
आरबीआई ने फरवरी 2023 से अब तक लगभग दो सालों से ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है।
• मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF) दर – 6.75%
• स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) दर – 6.25%
कम ब्याज दर का फायदा
अगर आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करता है, तो बाजार में नकदी की उपलब्धता बढ़ेगी और उधारी सस्ती होगी, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। पिछली बार आरबीआई ने ब्याज दरों को स्थिर रखा था, लेकिन उसने कैश रिज़र्व रेशियो (CRR) में कटौती की थी।
शर्तें लागू
ब्याज दरों में कटौती आर्थिक सर्वेक्षण की सिफारिशों के अनुरूप होगी, जिसने व्यापार को अधिक अवसर देने और नियमन को कम करने पर जोर दिया है।
• कम रेपो दर से व्यापारिक गतिविधियों को गति मिलेगी।
• हाल के महीनों में भारत में मुद्रास्फीति दर आरबीआई की 4% की सीमा से ऊपर बनी हुई है।
• पिछली तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई।
• भारतीय शेयर बाजार भी हाल के हफ्तों और महीनों में अस्थिर रहा है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व का असर
एमपीसी की बैठक ऐसे समय हो रही है जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Fed) की फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) की बैठक पिछले महीने हुई थी। फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल के नेतृत्व में अमेरिका में ब्याज दरें 4.50% पर स्थिर रखी गईं।
अब देखना यह होगा कि क्या आरबीआई इस बार दरों में कटौती करता है या फिर अमेरिकी फेडरल रिजर्व की तरह ‘कैंची’ को किनारे रखता है।