नयी दिल्ली। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने पांच वर्षों में पहली बार प्रमुख नीति दर में कटौती की है, जिससे कॉर्पोरेट और खुदरा ऋण (जिसमें होम लोन भी शामिल हैं) सस्ते हो जाएंगे। विश्लेषकों को उम्मीद है कि समिति की अगली बैठक में, जो अप्रैल में होगी, एक और कटौती की जा सकती है।
नीति दर में यह कटौती 25 आधार अंकों या 0.25 प्रतिशत अंकों की गई है, जिससे रेपो रेट 6.25% हो गया है। यह कटौती अपेक्षाओं के अनुरूप रही, हालांकि, कुछ विश्लेषक 50 आधार अंकों की कटौती की उम्मीद कर रहे थे। वहीं, शेयर बाजार ने पहले से ही 25 आधार अंकों की कटौती को अपने आकलन में शामिल कर लिया था, जिससे यह निर्णय बाजार को विशेष रूप से उत्साहित नहीं कर सका।
RBI की कटौती के पीछे तर्क
RBI ने इस कटौती का आधार अपनी आर्थिक प्रक्षेपण रिपोर्ट में रखा है। इसके अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था (GDP) के वित्तीय वर्ष 2025-26 में 6.7% की दर से बढ़ने की संभावना है। तिमाही वृद्धि दर 6.7%, 7%, 6.5% और 6.5% रहने का अनुमान है। दिसंबर में RBI ने पहली तिमाही के लिए 6.9% और दूसरी तिमाही के लिए 7.3% की वृद्धि का अनुमान लगाया था, लेकिन अब नए आंकड़े धीमी वृद्धि का संकेत दे रहे हैं। दिसंबर की नीति समीक्षा में MPC ने 2024-25 की वार्षिक वृद्धि दर को 20 आधार अंकों से अधिक कर 6.6% आंका था, जबकि जनवरी में जारी प्रथम अग्रिम अनुमान के अनुसार यह 6.4% रहने का अनुमान है।
मुद्रास्फीति (Inflation) को लेकर RBI का अनुमान है कि यह पूरे वर्ष के लिए 4.2% रहेगी, जो RBI के 4% लक्ष्य के काफी करीब है। यह 2016 में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting Framework) अपनाने के बाद से सबसे सटीक अनुमान माना जा रहा है। अगर यह अनुमान सही साबित होता है, तो यह 2018-19 के बाद का सबसे कम वार्षिक मुद्रास्फीति स्तर होगा, जब यह 3.4% था।
स्पष्ट रूप से, RBI की MPC ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की धीमी होती विकास दर को सहारा देने की जरूरत है। हालांकि, इसकी मौद्रिक नीति का रुख अभी भी सतर्क (न्यूट्रल) है, जो वैश्विक अस्थिरता को देखते हुए उचित भी है। लेकिन इस तटस्थ रुख को भविष्य में और कटौतियों के संकेत के रूप में भी देखा जा सकता है।
तरलता बढ़ाने की पहल
जनवरी में ही RBI ने अन्य उपायों के जरिए बैंकिंग प्रणाली में ₹1.5 लाख करोड़ की अतिरिक्त तरलता डालने की घोषणा की थी।
RBI की इस दर कटौती से खुदरा और कॉर्पोरेट उधारकर्ताओं को राहत मिलने की संभावना है। RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा, जिन्होंने अपनी पहली MPC बैठक की अध्यक्षता की, ने कहा कि इस कटौती का प्रभाव खुदरा दरों पर पूरी तरह आने में दो तिमाहियों तक का समय लग सकता है। पिछले लगभग पांच वर्षों के मौद्रिक कड़ेपन (Monetary Tightening) के कारण ब्याज भुगतान में वृद्धि हुई थी, जिससे होम लोन धारकों की लोन अवधि भी बढ़ गई थी, क्योंकि अधिकांश बैंक और ग्राहक EMI को स्थिर रखना पसंद करते हैं।
इस कटौती से उपभोक्ता व्यय में वृद्धि हो सकती है, विशेष रूप से इनकम टैक्स रिबेट और 1 फरवरी को पेश किए गए केंद्रीय बजट में कर स्लैब में बदलाव से उत्पन्न ₹1 लाख करोड़ के अतिरिक्त उपभोग प्रोत्साहन के साथ मिलकर।
मानसून रहेगा महत्वपूर्ण कारक
इस साल के मानसून के प्रदर्शन पर भी मुद्रास्फीति और वृद्धि का काफी कुछ निर्भर करेगा, और RBI को उम्मीद है कि यह सामान्य रहेगा।
MPC ने पिछली बार मई 2020 में रेपो दर में कटौती की थी, जब इसे 5.15% से घटाकर 4% किया गया था। उस समय महामारी के प्रभाव से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए यह एक बड़ा कदम था। शुक्रवार के फैसले से पहले, रेपो दर फरवरी 2023 से 6.5% पर स्थिर बनी हुई थी।
मौद्रिक नीति समिति का दृष्टिकोण
नीति समिति ने अपनी संकल्पना में स्पष्ट किया है कि दरों में कटौती का क्या औचित्य है। MPC ने यह भी ध्यान दिया कि 2024-25 की दूसरी तिमाही में वृद्धि दर 5.4% के निम्नतम स्तर पर पहुंचने के बाद अब इसमें सुधार की उम्मीद है, लेकिन यह पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है। इन विकास-मुद्रास्फीति गतिशीलताओं से MPC के पास वृद्धि को समर्थन देने की नीति बनाने की गुंजाइश बनती है, जबकि मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
नीति समिति और गवर्नर के बयान में वैश्विक बाजारों की अस्थिरता और इसके संभावित प्रभाव को लेकर सतर्कता दिखाई गई है।
भविष्य की संभावनाएं
MPC ने तटस्थ नीति रुख बनाए रखा है ताकि मुद्रास्फीति और वृद्धि के दृष्टिकोण को सतर्कता से देखा जा सके और भविष्य में उचित कदम उठाए जा सकें।
HSBC की भारत और इंडोनेशिया की प्रमुख अर्थशास्त्री प्रांजल भंडारी के अनुसार, “यह RBI के नए गवर्नर की पहली नीतिगत बैठक थी, और बाजार नीतिगत दिशानिर्देशों की प्रतीक्षा कर रहे थे – ब्याज दरें, तरलता, विनियमन और रुपये को लेकर। घरेलू विकास में सुस्ती और घटती मुद्रास्फीति ने मौद्रिक नीति में प्रोत्साहन की मांग की, लेकिन वैश्विक अनिश्चितता और वित्तीय बाजारों में उच्च अस्थिरता ने इसे धीरे-धीरे लागू करने की आवश्यकता जताई। हमारा मानना है कि RBI ने इस संतुलन को बखूबी बनाए रखा है। आगे हम अप्रैल नीति बैठक में 25 आधार अंकों की एक और कटौती की उम्मीद कर रहे हैं, जिससे रेपो दर 6% पर आ जाएगी।”
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अध्यक्ष सी.एस. सेट्टी ने कहा, “RBI का यह निर्णय नीतिगत सहजता चक्र (Easing Cycle) को 25 आधार अंकों की कटौती के साथ शुरू करने का सही समय था। RBI के 2025-26 के लिए विकास और मुद्रास्फीति अनुमान यह स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन साधना कितना महत्वपूर्ण है।”
इसके अलावा, RBI द्वारा घोषित विनियामक बदलावों, जैसे कि फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट, व्यापार निपटान चक्र की समीक्षा, और बैंकों व भुगतान प्रणालियों में साइबर सुरक्षा को मजबूत करने के उपायों से बाजार में अधिक पारदर्शिता और डिजिटल बैंकिंग में विश्वास बढ़ेगा।