सामाजिक

राणा बख्तावरसिंह के बलिदान दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये

इन्दौर। देश आज भी इस माटी के लिए बलिदान देने वालों को याद करता है। इंदौर मे सोमवार, 10 फरवरी को लोग केईएच कंपाउंड स्थित 1857 के बलिदानी राणा बख्तावर सिंहजी के प्रतिमा स्थल पर पहुंचे और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये। मेडिकल कॉलेज और राजपूत क्लब के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित यह श्रद्धांजलि कार्यक्रम डॉक्टर वीपी पांडेय, अधिष्ठाता एमजीएम मेडिकल कॉलेज और प्रसिद्ध समाजसेवी मनोरमा मेनन के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में विशेष अतिथि गोपाल माहेश्वरी, प्रधान संपादक देवपुत्र पत्रिका, राणा जी के वंशज अभय टीएन. सिंह, शक्तिसिंहजी, एमजीएम मेडिकल कॉलेज भावना एवं परिसर सौंदर्यीकरण के संस्थापक सदस्य डॉ. मनोहर भण्डारी, पत्रकार विवेक अस्थाना तथा समारोह प्रभारी प्रो. डॉ अजय भट्ट उपस्थिति रहे।
इस अवसर पर राजपूत क्लब के अध्यक्ष शीतल सिंह और उनसी पूरी कार्यकारिणी भी उपस्थित थी I माहसी के डॉ. विजय कौशिक, डॉ. स्नेहा जोशी डॉ उषा सिंह, डॉ. झरना गुप्ता, डॉ प्रिया मेहता और डॉ. मयूरी शर्मा और नर्सिग कॉलेज से कुमकुम प्रसाद तथा मेडिकल, नर्सिंग और फिजियो थेरेपी के विद्यार्थीगण भी उपस्थित थे I
राजपूत क्लब अध्यक्ष शीतल सिंह सहित सभी अतिथियों ने राणा साहेब के स्वतंत्रता संग्राम में अतुल्य योगदान पर अपने-अपने विचार व्यक्त किये और कहा कि हमें उनके बताये रास्ते पर चलना चाहिये। उन्होंने कहा, अपने-अपने कर्तव्यों और दायित्वों का ईमानदारी से पालन करना भी राष्ट्रभक्ति है I इस अवसर पर सुनील वर्मा ‘ मुसाफ़िर ‘ ने राणा बख्तावर पर ग़ज़ल पेश की । उसके पश्चात राणाजी के समक्ष दीपदान डॉ. वीपी. पांडेयजी सहित सभी अतिथियों ने किया तथा सभी उपस्थित महानुभावों ने राणाजी को माला अर्पण कर नमन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ मनोहर भंडारी ने किया और आभार सुनील वर्मा ने व्यक्त किया I
अमर सेनानी राणा बख्तावरसिंह
पूरे भारत में अंगरेजों के विरुद्ध खुलेआम विद्रोह करने वाले पहले भारतीय राजा हमारे अपने मध्यप्रदेश की माटी के लाल अजर-अमर सेनानी राणा बख्तावरसिंहजी थे I अमझेरा जैसी छोटी-सी रियासत के राजा बख्तावर सिंह ने अपनी सेना में किसानों और भील भिलालों को सम्मिलित किया था I ये सैनिक गोरिल्ला युद्ध में प्रवीण थे I उन्होंने अपनी इसी सेना के बलबूते अंगरेजों के विरुद्ध खुलेआम युद्ध छेड़ा था I उनके इस साहसिक निर्णय की सराहना करने के लिए स्वयं तात्याटोपे उनसे मिलने आए थे और इस भेंट के बाद राणाजी का आक्रोश सातवें आसमान पर था I हालांकि 1857 के मई माह में क्रान्ति की चिंगारी मेरठ, दिल्ली में जली, जुलाई तक वह मध्य भारत और मालवा के इन्दौर, नीमच, अमझेरा, धार और मंदसौर जैसे खास स्थानों तक जा पहुँची I इसी क्रम में राणाजी ने पूरे भारत में अंगरेजों के विरुद्ध खुलेआम विद्रोह करने वाले पहले भारतीय राजा के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया। उन्होंने अपने देशभर के राजाओं को अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में कूद पड़ने के लिए स्पष्ट सन्देश दिया।
क्रांतिवीर राणा बख्तावर सिंह के नेतृत्व में एक के बाद एक अंगरेजों की कई छावनियां लूटी गई और हथियार लूटने के बाद उन्हें आग के हवाले किया जाता रहा I अंगरेजों को जल्दी ही समझ में आ गया था कि राणाजी को आमने-सामने के मुकाबले में जीतना आसान नहीं है इसलिए धोखाधड़ी और चालबाजी से राणाजी को अन्तत: 11 नवम्बर 1857 को गिरफ्तार किया गया और फिर 10 फरवरी 1858 को इसी नीम के पेड़ पर (जिसके नीचे ह मूर्ति स्थापित है) उन्हें साथियों सहित फांसी दे दी गई I

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