सांस्कृतिक

जयपुर में स्वर लहरियों की महफिलः पारंपरिक मांड गायकी, भजन, सूफी और ग़ज़ल गायन से गनी बंधुओं ने सजाई एक अविस्मरणीय संध्या..!

जयपुर। गुलाबी नगर का अल्बर्ट हॉल का ऐतिहासिक प्रांगण शनिवार की संध्या सुरमयी स्वरों से गूंज उठा, जब पद्मश्री सम्मानित मांड गायक अब्दुल गनी और अली गनी ने अपनी मनमोहक प्रस्तुति से दर्शकों को अभिभूत कर दिया। राजस्थान पर्यटन विभाग की पाक्षिक सांस्कृतिक संध्या ‘कल्चरल डायरीज़’ के छठे एपिसोड में गनी बंधुओं ने अपनी पारंपरिक मांड गायकी, भजन, सूफी और ग़ज़ल गायन से एक अविस्मरणीय संध्या रच दी।
कार्यक्रम की शुरुआत ‘गौरी पुत्र गणेश’ की मधुर स्वर लहरियों के साथ हुई, जिसने माहौल को भक्तिमय बना दिया। इसके पश्चात राजस्थान की पहचान बन चुके ‘केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देस रे’ गीत ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। गनी बंधुओं की इस प्रस्तुति में ‘कभी आंसू, कभी खुश्बू.. कभी नग्मा बनकर’‘फिर तेरी कहानी याद आई…’ , ‘मोहब्बत करने वाले कम न होंगे…’ जैसे कालजयी गीत शामिल थे, जिन्हें सुनकर दर्शक भावविभोर हो उठे। गनी बंधुओं द्वारा पेश किया गया भजन अवध की पावन धरती पर रामजी आए हैं.. दर्शकों को भक्ति के सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर दिया।
गनी बंधुओं ने ‘धरती धोरां री…’ प्रस्तुत कर राजस्थान के वीरता, बलिदान और महत्ता को सुरों के माध्यम से जीवंत कर दिया। इसी क्रम में ‘हिवड़ो पुकारे ढोला क्यूं..’, ‘बादिला ढोला बेगा घर आ..’, ‘सांवरिया जादू करगयो, म्है क्या करूं… ’ जैसी पारंपरिक रचनाओं को भी पेश किया, जो श्रोताओं के हृदय में गहरे उतर गईं। इसके अलावा ‘छाप तिलक सब छीनी…’, ‘दमादम मस्त कलंदर…’ जैसे सूफी गीतों ने कार्यक्रम को संगीत के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा दिया।
गनी बंधुओं ने इस अवसर पर कहा कि उनकी मांड गायकी भावप्रधान है, जिसमें प्रेम, दर्द और राजस्थान की संस्कृति का अद्भुत संगम होता है। उन्होंने राजस्थान पर्यटन विभाग और उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने ‘कल्चरल डायरीज़’ जैसी अनूठी पहल के माध्यम से लोक कलाकारों को मंच प्रदान किया है।
गौरतलब है कि पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित ‘कल्चरल डायरीज़’ लोक कलाओं को संरक्षित करने और उन्हें राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का माध्यम बन रही है। इस आयोजन के जरिए राजस्थान के सांस्कृतिक पर्यटन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। गनी बंधु हिंदी, राजस्थानी एवं पंजाबी फिल्मों में संगीत निर्देशन कर चुके हैं। उन्होंने अपनी गायकी से न केवल राजस्थानी संगीत को वैश्विक मंच पर स्थापित किया है, बल्कि हिंदी, पंजाबी और सूफी संगीत में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
इस अवसर पर राजस्थान पर्यटन विभाग की संयुक्त निदेश डॉ. पुनीता सिंह, संयुक्त निदेशक दलीप सिंह राठौड़, उपनिदेशक नवल किशोर बसवाल, उपनिदेशक सुमिता मीणा सहित कई अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे।

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