आमेर महल में पुरातत्व कानूनों की उड़ रही धज्जियां
विश्व पर्यटन दिवस पर विशेष
धरम सैनी
जयपुर। विश्व पर्यटन दिवस पर रविवार को पूरे विश्व में प्राचीन विरासतों को बचाने और उन्हें संरक्षित रखने का सीख दी जाएगी, लेकिन पुरातत्व विभाग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। विभाग में पुरातत्व कानूनों की खुलकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। इसकी बानगी पूरे विश्व में विख्यात और यूनेस्को की ओर से संरक्षित विश्व विरासत स्थल बन चुके आमेर महल में देखने को मिल रही है।
डेढ़ दो महीने पूर्व बारिश के दौरान आमेर महल के चाँदपोल गेट और टिकट विंडो के बीच बने टॉयलेट की छत का प्लास्टर टूट कर गिर गया। पर्यटक नहीं होने से यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ, लेकिन पुरातत्व विभाग की ओर से कराए जा रहे नियम विरुद्ध काम की पोल खुल गई। प्लास्टर गिरने के बाद छत से लोहे के सरियों का जाल सामने आया और साफ हो गया कि यहां लोहे का जाल बनाकर उसपर सीमेंट का प्लास्टर किया गया है।
यह टॉयलेट मुख्य महल का हिस्सा है। इसके ऊपर शिला माता मंदिर पुजारियों के आवास बने हुए हैं। ऐसे में यहां सीमेंट और सरियों का उपयोग सबको हैरान कर रहा है। महल प्रशासन की ओर से इस गिरे हुए प्लास्टर की मरम्मत कराई जा चुकी है, लेकिन वह मरम्मत सीमेंट से कराई गई है।
क्या कहते हैं नियम
पुरातत्व नियमों के अनुसार किसी भी स्मारक में मरम्मत और संरक्षण-संवर्धन का काम उसी प्रकार की निर्माण सामग्री से कराया जाना जरूरी है, जिस कालखंड के दौरान उस स्मारक का निर्माण हुआ था। जबकि यूनेस्को की गाइडलाइन तो और भी ज्यादा सख्त है।ऐसे में यदि टॉयलेट की छत खराब थी तो यहां चूने से ही मरम्मत कराई जानी चाहिए थी।
सीमेंट उपयोग के समय पर संक्षय
जानकारों का कहना है कि सीमेंट और सरिए से यह निर्माण कार्य वर्ष 2018 के दौरान कराया गया। इस दौरान इस टॉयलेट और एक पे-टॉयलेट की मरम्मत का कार्य कराया गया था और इन टॉयलेट्स को करीब छह महीनों तक बंद रखा गया था। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि यह सीमेंट का कार्य कई दशकों पूर्व कराया गया था। अब इसकी सही जानकारी पुरातत्व विभाग या फिर आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) के अधिकारी ही दे सकते हैं, क्योंकि इन दोनों की ओर से विगत तीन दशकों से संरक्षण कार्य कराया जा रहा है।
दोबारा लगा दी सीमेंट
प्लाटर गिरने के बाद आमेर महल प्रशासन की ओर से टूटे हुए छत के हिस्से की मरम्मत भी सीमेंट से कराई गई है, जो नियमविरुद्ध है। जब सामने आ गया था कि यहां सीमेंट-सरिए का प्रयोग हुआ है तो उसे हटाकर पूरी जगह में चूने का प्लास्टर कराया जाना चाहिए था। हैरानी की बात यह है कि आमेर महल में लगे अधीक्षक विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हैं। पिछले दस वर्षों से वह आमेर महल का ही जिम्मा संभाल रहे हैं। ऐसे में उन्होंने फिर से सीमेंट से मरम्मत कैसे करवा दी?
विभाग की कारस्तानी
शिला माता मंदिर के पुजारियों का कहना है कि मंदिर से चांदपोल गेट तक पूरे इलाके में चूने और पत्थरों की छत बनी हुई है। सीमेंट और सरिया कहां से आया यह पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की ही यह कारस्तानी हो सकती है।
अधिकारी बोलने से बच रहे
इस गैरकानूनी काम पर हमने आमेर महल अधीक्षक पंकज धरेंद्र और एडमा के कार्यकारी निदेशक (कार्य) बीपी सिंह से जानकारी चाही, लेकिन दोनों ही जिम्मेदार अधिकारी बोलने से बचते रहे।