अजमेर संभागीय आयुक्त द्वारा दो सीईओ के भ्रष्टाचार का मामला एसीबी को सौंपे जाने से नाराज हुए मंत्री
जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देशों पर पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार मुक्त राजस्थान अभियान चलाया जा रहा है। एसीबी रोज कहीं न कहीं भ्रष्ट अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, लेकिन सरकार के मंत्री ही मुख्यमंत्री के इस विचार को दरकिनार करने में लगे हैं।
बुधवार को एसीबी ने नागौर जिले की मकराना नगर परिषद के आयुक्त संतलाल मक्कड़ को 40 हजार रुपए की रिश्वत लेते गिरफ्तार किया है, वहीं दूसरी ओर इसी जिले के एक अन्य सीईओ पर सरकारी भूमि के पट्टे जारी करने के आरोप में व अजमेर के सीवर एक्सेस पेमेंट मामले की जांच करके संभागीय आयुक्त द्वारा एसीबी को दी गई शिकायत पर स्वायत्त शासन मंत्री अपने अधिकारियों के बचाव में आ गए हैं। जबकि संभागीय आयुक्त अजमेर डॉ. आरुषी मलिक ने तो मुख्यमंत्री के निर्देशों के चलते यह मामले एसीबी को सौंपे थे।
संभागीय आयुक्त द्वारा स्वायत्त शासन विभाग के अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामले एसीबी को दिए जाने की जानकारी मंत्री शांति धारीवाल के संज्ञान में आते ही वह एक्शन में आ गए। उन्होंने 14 अक्टूबर को विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि मुख्य सचिव को विभाग की ओर से लिखा जाए कि विभाग के अधीन कार्य करते हुए किसी अधिकारी के विरुद्ध जांच कर उसका निष्कर्ष अपने स्तर पर लेकर राज्य सरकार की बगैर अनुमति के संभागीय आयुक्त द्वारा एसीबी को परिवाद भेजा जाना गलत है।
नोटशीट में लिखा गया है कि संभागीय आयुक्त अजमेर द्वारा अपने क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण स्वायत्त शासन विभाग के अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जा रही है, संभागीय आयुक्त को ऐसी कोई शक्ति प्रत्यायोजित नहीं की गई है। जबकि हकीकत यह है कि संभागीय आयुक्तों को 18 फरवरी 2020 को राज्य सरकार ने ही ऐसे अधिकार दिए हैं।
शासन संयुक्त सचिव सुरेश कुमार नवल द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया कि राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1958 के नियम 15 के उपनियम (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, राज्य सरकार सभी संभागीय आयुक्तों को उनके संभाग में कार्यरत क्षेत्रीय स्तर के राज्य सेवा के अधिकारियों के विरुद्ध राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1958 के नियम 17 के अधीन लघु शक्तियां (अधिकतम तीन वेतन वृद्धियां असंचयी प्रभाव से रोकने तक) अधिरोपित करने के लिए विशेष रूप से सशक्त करती है। संभागीय आयुक्त के दंडादेश के विरुद्ध नियम 23 में निर्दिष्ट प्राधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत की जाएगी।
नोटशीट में आगे लिखा गया है कि संभागीय आयुक्त की जानकारी में यदि कोई अनियमितता आती है तो सबसे पहले विभाग को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करके निर्देश प्राप्त करने चाहिए। संभागीय आयुक्त द्वारा भविष्य में इस प्रकार की गतिविधियां रोकने के लिए पाबंद किए जाने हेतु मुख्य सचिव को लिखा जाए और अनधिक्रत जारी सीसीए नियमों के नोटिस को भी निरस्त किया जाए। इस नोटशीट के सामने आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मंत्री मुख्यमंत्री के निर्देशों के खिलाफ जाकर क्यों इन मामलों की जांच एसीबी से कराने से बच रहे हैं?