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जयपुर के नाहरगढ़ में वन विभाग को करनी थी पुरातत्व विभाग पर कार्रवाई, मिलीभगत से ठेलेवालों को भगाया

जयपुर। पेड़-पौधों और जंगलों की अहमियत रेगिस्तान में रहने वाले लोगों को अच्छी तरह पता होती है, लेकिन राजस्थान जैसे मरुस्थलीय प्रदेश में वन विभाग जंगलों के प्रति लापरवाह बना हुआ है। हालांकि दस्तावेजों में प्रदेश में जंगलों का रकबा बढ़ता हुआ दिखाया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि वन अधिकारियों की मिलीभगत से प्रदेश के जंगलों पर निरंतर अतिक्रमण होते जा रहे हैं और पेड़-पौधों की संख्या घटती जा रही है। अगर इसकी बानगी देखनी है तो वह राजधानी के नाहरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य में देखी जा सकती है।

पर्यटन विकास के नाम पर प्रदेश का पुरातत्व विभाग लगभग डेढ़ दशक से नाहरगढ़ अभ्यारण्य क्षेत्र में स्थित नाहरगढ़ फोर्ट में वन एवं वन्यजीव अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की धज्जियां उड़ाकर वाणिज्यिक गतिविधियां करा रहा है। क्लियर न्यूज ने 7 अक्टूबर को ‘मूक वन्यजीवों की जान दांव पर लगाकर हो रहा पर्यटन विकास’ खबर प्रकाशित कर पहली बार जयपुर के पर्यावरण को प्रभावित करने वाले इस मामले का खुलासा किया था।

उच्चाधिकारियों ने दिए कार्रवाई के निर्देश

इस खुलासे के बाद वन विभाग के उच्चाधिकारियों ने अपने अधिकारियों को पुरातत्व विभाग की ओर से किए जा रहे अतिक्रमण पर तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। यहां चल रही वाणिज्यिक गतिविधियों को रुकवाने के लिए भी अधिकारियों को वन एवं वन्यजीव अधिनियमों के तहत आगे की कार्रवाई के लिए निर्देशित किया गया था।

जो कार्रवाई करनी थी, वह नहीं की, लीपापोती कर लौट आए

वन विभाग के सूत्रों का कहना है कि नाहरगढ़ अभ्यारण्य क्षेत्र में चल रहे अतिक्रमण और वाणिज्यिक गतिविधियां वन अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम है। इसका सबूत यह है कि पुरातत्व विभाग और आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) की ओर से नाहरगढ़ फोर्ट के गेट के बाहर करीब चार बीघा वनभूमि पर पेड़-पौधों को काटकर बनाई गई अवैध पार्किंग पर कार्रवाई के निर्देश थे, लेकिन वन अधिकारियों ने पार्किंग के बजाए नाहरगढ़ जाने वाले रास्ते पर उन जगहों पर खंदकें खुदवा दी, जहां गाड़ियाँ पार्क कर पर्यटक जयपुर शहर को निहारते थे। अतिक्रमण हटाने के नाम पर फोर्ट के आस-पास ठेलों पर सामान बेचने वाले गरीब वेंडरों को वहां से भगा दिया गया।

अभी तक दर्ज नहीं कराई एफआईआर

जानकारों का कहना है कि वाणिज्यिक गतिविधियों को बंद कराने की प्रक्रिया लंबी हो सकती है, लेकिन वन भूमि पर अतिक्रमण करना और अभ्यारण्य में पेड़-पौधों को काटना सीधे-सीधे वन अधिनियम का उल्लंघन है। ऐसे में पार्किंग मामले में वन अधिकारियों को तुरंत नाहरगढ़ फोर्ट के अधीक्षक, एडमा के अधिकारियों और पार्किंग ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी चाहिए थी, लेकिन अभी तक वन अधिकारी एफआईआर दर्ज कराने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं।

तुरंत दर्ज होनी चाहिए एफआईआर

मामले के शिकायतकर्ता कमल तिवाड़ी और राजेंद्र तिवाड़ी का कहना है कि जब वन अधिकारी फोर्ट के अंदर वाणिज्यिक गतिविधियाँ कर रहे रसूखदारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे थे, तो फिर छोटे वेंडरों को हटाने का क्या तुक है। अधिकारियों ने कोरोनाकाल में गरीब थड़ी-ठेलेवालों पर अपनी लाठी चला दी, लेकिन रसूखदारों के खिलाफ कार्रवाई करने की इनकी हिम्मत नहीं हो रही है। वन भूमि पर अतिक्रमण और पेड़ काटने का मामला वन अधिनियम का खुला उल्लंघन है। वन विभाग को इस मामले में तुरंत एफआईआर दर्ज करानी चाहिए।

मामले को दिखवाते हैं

जयपुर के पर्यावरण से जुड़े इस गंभीर मामले को लेकर जब अतिरिक्त मुख्य सचिव वन श्रेया गुहा से चर्चा की गई। गुहा का कहना है कि वह इस मामले की अधिकारियों से जानकारी लेंगी और दिखवाएंगी कि जांच रिपोर्ट आने के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।

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