पुरातत्व विभाग से बिना एनओसी लिए संरक्षित स्मारकों पर कराया जा रहा संरक्षण कार्य
जयपुर। स्थापना के साथ ही विवादों में घिरे रहने वाला जयपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट शहर की प्राचीन धरोहरों को ढेर करने में जुटा है। हाल ही में कंपनी ने जालूपुरा में गोपीनाथ मार्ग स्थित दरबार स्कूल प्रोजेक्ट में प्राचीन परकोटे और बुर्ज को ढहा दिया, अब जानकारी सामने आई है कि स्मार्ट सिटी कंपनी के अधिकारी बिना पुरातत्व विभाग से एनओसी लिए प्राचीन स्मारकों हथौड़े चलाने में जुटे हैं।
पुरातत्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से अभी तक जितने भी संरक्षित स्मारकों पर सौंदर्यन और संरक्षण का कार्य शुरू किया गया है, उसके लिए पुरातत्व विभाग से एनओसी नहीं ली गई है। बिना अनुमति के ही कंपनी ने प्राचीन स्मारकों पर काम कराना शुरू कर दिया है। ऐसे में यदि किसी स्मारक को क्षति पहुंचती है तो कौन जिम्मेदार होगा?
पुरातत्व अधिकारियों का कहना है कि ऊपरी दबाव के चलते विभिन्न कंपनियां स्मारकों पर कार्य करने के दौरान विभाग से एनओसी लेने की जहमत नहीं उठा रहे हैं, जबकि पुरातत्व नियमों के अनुसार संरक्षित स्मारकों और उनके रक्षित क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण या अन्य कार्य करने से पूर्व विभाग से एनओसी लेना जरूरी होता है।
कमीशन के खेल के चलते विभाग पर राजनीतिक दबाव डलवाया जाता है और बिना अनुमति के कार्य कराया जा रहा है, जो शहर के स्मारकों के लिए खतरे की घंटी है। स्मार्ट सिटी कंपनी से पूर्व जयपुर मेट्रो ने भी मनमाने तरीके से प्राचीन स्मारक ईसरलाट, चांदपोल गेट, हवामहल पर नवीन निर्माण कार्य किया था।
इन स्मारकों पर काम, नहीं ली एनओसी
विभाग के सूत्रों के अनुसार स्मार्ट सिटी कंपनी की ओर से मंदिरों और पुराने स्कूलों में संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया है। इनमें दो मंदिर संरक्षित स्मारक है और विभाग के जयपुर वृत्त के अधीन आते हैं, लेकिन कार्य से पूर्व वृत्त कार्यालय से एनओसी नहीं ली गई। इसी तरह दरबार स्कूल में निर्माण कार्य के लिए भी एनओसी नहीं ली गई।
हाल ही में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत विभिन्न कार्यों के लिए 12 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई है, जिसमें परकोटे के न्यूगेट और सांगानेरी गेट पर कार्य कराया जाएगा, लेकिन इसके लिए भी विभाग से मंजूरी नहीं ली गई है। विभाग में कहा जा रहा है कि पिछले कई वर्षों में विभिन्न स्मारकों पर कंपनी की ओर से कार्य कराया गया, लेकिन नियमानुसार एनओसी नहीं ली गई।
धृतराष्ट्र बन बैठा पुरातत्व विभाग
एक तरफ तो पुरातत्व नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है, वहीं दूसरी ओर विभाग धृतराष्ट्र बना बैठा है। परकोटे और बुर्ज को गिराने के मामले में अभी तक विभाग को कंपनी के अधिकारियों और ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा देनी चाहिए थी, लेकिन विभाग के अधिकारी नए साल के आगमन में छुट्टियां मनाने में मशगूल है। पुरातत्व निदेशक के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है और अधिकारी मुंह छिपाए कुछ बोलने से भी बच रहे हैं।
कमीशन के लिए बेचा ईमान
पुरातत्व सूत्रों का कहना है कि विभाग के अधिकारियों ने कमीशन के लिए अपना ईमान स्मार्ट सिटी को बेचा है और कंपनी को मौन स्वीकृति दे रखी है। इसके एवज में कंपनी ने भी कुछ स्कूलों और मंदिरों का काम पुरातत्व विभाग को सौंप रखा है, ताकि विभाग के अधिकारी अपना मुंह बंद रखें।
कहा जा रहा है कि स्कूल और मंदिरों का काम पुरातत्व विभाग और आरटीडीसी की ओर से कराया जा रहा है। दोनों एजेंसियों के पास समान नेचर के काम है, लेकिन टेंडर की रेटों में जमीन आसमान का अंतर है। आरटीडीसी जहां यह काम 8 से 15 फीसदी कम रेटों में करवा रहा है, वहीं पुरातत्व विभाग इसी काम को बीएसआर से 20 से 25 फीसदी अधिक रेटों पर करवा रहा हैं।
मॉन्यूमेंट इंस्पेक्टर को आमेर में खजाने की खोज से नहीं मिल रही फुर्सत
परकोटे को नुकसान पहुंचाए जाने के प्रकरण के बाद एक बार फिर विभाग के मॉन्यूमेंट इंस्पेक्टर पर सवाल खड़े हो गए हैं। विभाग का एकमात्र मॉन्यूमेंट इंस्पेक्टर के पद पर एक रिटायर्ड वरिष्ठ लिपिक गोरधन शर्मा को पांच साल से आमेर महल में ही संविदा पर लगाया जा रहा है, जबकि उनका काम स्मरकों का निरीक्षण करना है। इस मामले में भी उन्हें परकोटे का निरीक्षण करना चाहिए था, लेकिन वह और आमेर महल अधीक्षक पंकज धरेंद्र पिछले एक दशक से नियमविरुद्ध आमेर में खजाने की खोज में लगे हैं।