जयपुर

पुरातत्व विभाग राजस्थान – कोई भी ठेकेदार आए, पुरा स्मारकों पर हथौड़े चलाए

कमीशन के फेर में उलझी राजस्थान के पुरा स्मारकों की सुरक्षा

जयपुर। पुरातत्व विभाग राजस्थान ने प्राचीन स्मारकों के संरक्षण और जीर्णोद्धार कार्यों के लिए निविदाएं निकाली है और दूसरे विभागों के चहेते ठेकेदारों को निमंत्रण भेजा है कि आओ और हमारे प्राचीन स्मारकों पर हथौड़े चलाओ। इसके लिए उनसे स्मारकों के संरक्षण कार्यों का अनुभव भी नहीं मांगा जा रहा है।

मोटे कमीशन के फेर में पुरातत्व विभाग के नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों ने अपना जमीर ठेकेदारों के हाथों गिरवी रख दिया है और ऐसा कारनामा किया है जो स्मारकों की सुरक्षा के लिए खिलवाड़ है। अधिकारियों ने संरक्षण कार्यों की निविदा शर्तें चहेते ठेकेदारों के अनुरूप बदल दी है। पहले उन्हीं संवेदकों को निविदा में भाग लेने का मौका मिलता था, जिन्हें पूर्व में स्मारकों के संरक्षण और जीर्णोद्धार का अनुभव हो।

लेकिन, अधिकारियों ने चहेतों को काम दिलाने के लिए ऐसी शर्त लगाई है, जिससे सिर्फ वही ठेकेदार ही निविदा ले पाएं, टैक्निकली पास हो जाएं और अधिकारियों का मोटा कमीशन पक्का हो जाए। चाहे उन्हें संरक्षण का अनुभव हो या न हो। एक खेल यह भी किया गया है कि डबल ए क्लास रजिस्ट्रेशन की शर्त लगाकर कई कार्यों को क्लब करके करोड़ों के काम निकाले जा रहे हैं, ताकि ए क्लास और उससे नीचे दर्जे में रजिस्टर्ड व अनुभवी ठेकेदार काम नहीं ले सकें।

पहले यह थी निविदा की प्रमुख शर्त

पूर्व में अपंजीकृत संवेदकों के लिए शर्त डाली जाती थी कि उन्हें प्रस्तावित कार्य के प्रकार एवं मूल्य के कम से कम एक तिहाई मूल्य का कार्य किया होना आवश्यक है। अन्य शर्त में पंजीकृत एवं अपंजीकृत दोनों श्रेणी के संवेदकों के लिए गत दो वर्षों में किसी राज्य सरकार, राज्य सरकार के उपक्रम, राज्य सरकार द्वारा संचालित ट्रस्ट, सोसायटी, केंद्रीय सरकार, केंद्र सरकार के उपक्रम, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, केंद्र द्वारा संचालित ट्रस्ट, सोसायटी में संबंधित कार्य (संरक्षण एवं जीर्णोद्धार) किए जाने का अनुभव होना जरूरी होता था।

यह है नई शर्त

अब जो नई शर्त निविदा में डाली गई है, उसके अनुसार पंजीकृत फर्मों को निविदा राशि के समान मूल्य के विगत पांच वर्षों के दौरान राज्य सरकार, केंद्र सरकार, राज्य और केंद्र सरकार के निगम, बोर्ड, स्वयत्तशासी संस्थाओं में सफलतापूर्वक पूर्ण किए गए कार्यों का अनुभव होना चाहिए।

वर्तमान में अधिकारियों ने कारस्तानी करते हुए अपंजीकृत संवेदकों का रास्ता बंद करने के लिए उनकी शर्त को निविदा से हटा दिया है, ताकि वे कलाकार जिन्हें संरक्षण कार्यों का पूरा अनुभव है, काम नहीं ले पाएं। पुरानी शर्तों में साफ उल्लेख है कि संवेदक को विभिन्न विभागों में संबंधित कार्य करने का दो वर्ष का अनुभव होना चाहिए, जबकि नई शर्त में सिर्फ यही कहा गया है कि संवेदक को निविदा राशि के समान मूल्य का कार्य का अनुभव होना जरूरी है। मतलब नई शर्त में अनुभव को पूरी तरह से हटा दिया गया है।

ऐसे हुआ खुलासा

यह पता नहीं कि अधिकारियों ने निविदा की शर्तें कब बदली और कब से स्मारकों की सुरक्षा को खतरे में डाला गया, लेकिन सूत्र कह रहे हैं कि अधिकारियों की कमीशनखोरी से विभाग के पुराने संवेदक काफी नाराज हैं और अधिकारियों के खिलाफ धरने-प्रदर्शन करने, एसीबी में जाने की तैयारी में है, क्योंकि उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है। सूत्रों का कहना है कि अधिकारी पिछले करीब चार-पांच सालों से गिने-चुने संवेदकों को ही सभी ठेके दे रहे हैं, जिससे संरक्षण कार्यों में बड़े भ्रष्टाचार की आशंका बलवति हो रही है।

कहा जा रहा है कि कुछ अधिकारियों ने सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस में पैठ बना रखी है और अपने राजनीतिक आकाओं के दम पर जमकर भ्रष्टाचार में लगे है। इंजीनियरिंग विभाग के दो बाबुओं के किस्से पूरे विभाग में चर्चित है और यह दोनों एक दशक से अधिक समय से यहां जमे हैं। वहीं विभाग के डबल एओ भी नियमविरुद्ध यहां लंबे समय तक जमे रहे।

हाल ही में उन्हें उनके मूल पद पर भेजा गया, लेकिन वह भी राजनीतिक आकाओं के भरोसे फिर से विभाग में काबिज होने की कोशिश में लगे है। विभाग के अधिकारी भी यही चाहते हैं कि डबल एओ विभाग में ही रहे। यही कारण है कि उनके रिक्त पद का चार्ज किसी दूसरे को नहीं दिया जा रहा है।

अधिकारी एक दूसरे पर डाल रहे जिम्मेदारी

शर्तों के हेरफेर के संबंध में जब विभाग के अधिशाषी अभियंता मुकेश शर्मा से पूछा गया तो उनका कहना था कि निविदा की शर्तों में अनुभव की शर्त फिर से जोड़ने के लिए फाइल चला रखी है, लेकिन यह फाइल अकाउंट्स सेक्शन में रुकी पड़ी है। फाइल रोकने के संबंध में चीफ अकाउंट ऑफिसर भगवान सहाय लाड़ला से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि शर्तें बदलने से कुछ नहीं होने वाला है, विभाग में पूरी इंजीनियरिंग शाखा को ही बदलने की जरूरत है।

संरक्षण कार्य कराने वाले इंजीनियर पीडब्ल्यूडी या अन्य विभागों से आए हैं और उन्हें संरक्षण कार्यों का बिलकुल ज्ञान नहीं है। जब इस फाइल की पड़ताल की गई तो हकीकत सामने आ गई। विभाग में कहा जा रहा है कि शर्तों के लिए फाइल तो चलाई थी, लेकिन वह सिर्फ अंतर राशि को हटाने के लिए चलाई गई थी, उसमें अनुभव की शर्त निविदा में फिर से जोड़ने की कोई बात नहीं थी।

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