जयपुर। भाजपा के चाणक्य अमित शाह और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की हाल ही में दिल्ली में हुई मुलाकात के राजनीतिक हलकों में कई मायने निकाले जा रहे हैं। दोनों के बीच प्रदेश के मामलों में सार्थक चर्चा हुई है। कहा जा रहा है कि प्रदेश भाजपा नेताओं ओर केंद्र के बीच बनी दूरियों के लिए जिम्मेदार कारणों को दूर करने पर यह चर्चा फोकस रही। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि प्रदेश भाजपा में जल्द ही बड़ा फेरबदल देखने को मिल सकता है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनावों के पूर्व संगठन महामंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को बदला गया था। चंद्रशेखर को वाराणसी से यहां लाकर संगठन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। संगठन महामंत्री का काम सत्ता और संगठन में समन्वय बनाने का होता है, इसके बावजूद आज तक स्थितियों में कोई सुधार नहीं हो पाया और गुटबाजी चरम पर है।
भाजपा में कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने राजस्थान भाजपा में चल रही गुटबाजी को खत्म करने के लिए चंद्रशेखर को राजस्थान भेजा था, लेकिन वह भाजपा संगठन, संघ खेमे और राजे खेमे के बीच समन्वय स्थापित करने में नाकामयाब रहे। टिकट वितरण में गड़बड़ी के चलते बीजेपी कुछ सीटों के कारण सत्ता से हाथ धो बैठी। जयपुर में उनके प्रवास के बावजूद इस संभाग में ही भाजपा के हाथ से आधी सीटें निकल गई, जबकि जयपुर को भाजपा का गढ़ माना जाता है।
विधानसभा चुनावों में हार के बाद केंद्रीय संगठन को लग गया कि ऐसे तो राजस्थान लोकसभा चुनावों में भी हाथ से निकल जाएगा। तब लोकसभा चुनावों के दौरान मोदी और शाह ने राजस्थान की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई, जिसका नतीजा यह निकला कि सभी गुट एकजुट हो गए और भाजपा राजस्थान में भारी जीत दर्ज करने में कामयाब हो पाई।
मदनलाल सैनी के असामयिक निधन के बाद केंद्र ने प्रदेश में नया प्रदेशाध्यक्ष बनाने की कोशिश की तो गुटबाजी के चलते भारी विवाद हो गया और केंद्र गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनवा पाया। सतीश पूनिया प्रदेशाध्यक्ष बने तो वह एक साल तक अपनी कार्यकारिणी नहीं बनवा सके, जो उनकी नाकामयाबी बताती है।
ऐसा नहीं है कि केवल संगठन महामंत्री ही राजस्थान भाजपा में चल रही राजनीतिक उठापटक के जिम्मेदार हैं। इससे पूर्व केंद्रीय नेतृत्व राजस्थान प्रभारी वी सतीश को भी बदला था। वी सतीश को राजस्थान प्रभारी पद से हटाया गया था और उनके स्थान पर अरुण सिंह को यहां का प्रभारी बनाया गया था। सूत्र बताते हैं कि अब अगला बदलाव संगठन महामंत्री का हो सकता है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि चंद्रशेखर की कार्यशैली को भी इसके लिए सबसे बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है, क्योंकि वह आज तक भी कार्यकर्ताओं में अपनी पहचान नहीं बना पाए। संगठन महामंत्री संघ से आते हैं और उसी प्रचारक को प्रदेश में इस पद की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जो दशकों तक उसी प्रदेश में प्रवास करते हैं। लंबे प्रवास के कारण उनका शहरों से लेकर गांव-ढाणी के कार्यकर्ताओं तक पकड़ होती है। चंद्रशेखर बाहर से आए थे और पकड़ कमजोर होने के कारण वह यहां कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए।
विधानसभा चुनावों से पूर्व प्रदेश कार्यालय से जयपुर जिला कार्यालय को शिफ्ट करना, कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद नहीं रखना, कार्यकर्ताओं को प्रदेश कार्यालय में आने की मनाही, कार्यालय के ऊपरी तल पर कार्यकर्ताओं के जाने पर रोक लगाना और ताला लगाना, लगाम नहीं कसने के कारण पुराने टिके हुए विधायकों की मनमानी करना जैसे कारणों से भाजपा में फूट बढ़ती गई। अब भाजपा में यही चर्चाएं चल रही है कि संगठन महामंत्री भी बदले जाएं तो भाजपा में फिर से पुराना अनुशासन आ पाएगा।
उल्लेखनीय है कि क्लियर न्यूज ने सबसे पहले 14 दिसंबर ‘नए साल से राजस्थान की राजनीति में आएगा उबाल, राजे होंगी एक्टिव, ताकि पार्टी पर पकड़ रहे बरकरार’, 9 जनवरी को ‘पायलट प्रकरण ने कांग्रेस में गहलोत को पॉवर सेंटर बनाया, क्या भाजपा में राजे बनेंगी एक बार फिर पॉवर सेंटर’, 14 जनवरी को ‘राजस्थान भाजपा में प्यादों से रानी को मात देने की तैयारी’, खबरें प्रकाशित कर बताया था कि राजस्थान भाजपा में राजे को आसानी से दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
क्लियर न्यूज ने 30 जनवरी को खबर प्रकाशित कर सबसे पहले बताया था कि राजे शक्ति प्रदर्शन कर सकती है। राजे 8 मार्च को अपने जन्मदिन पर भरतपुर में बड़ा कार्यक्रम आयोजित करेंगी, लेकिन अब यह कहा जा रहा है कि यह कार्यक्रम केंद्र की रजामंदी के बाद ही आयोजित हो रहा है।