जयपुर

9 फरवरीः राजस्थान विधानसभा बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल मिश्र से संविधान की प्रस्तावना पढ़वाकर सीएम गहलोत ने साधा केंद्र पर निशाना

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने बुधवार को पन्द्रहवीं राजस्थान विधान सभा के छठे सत्र में अभिभाषण दिया। देश के इतिहास में पहली बार किसी विधानसभा में राज्यपाल ने सदन में संविधान की प्रस्तावना एवं मूल कर्तव्यों का वाचन किया। राजनीतिक हलकों में अब राज्यपाल के अभिभाषण की नहीं बल्कि पढ़ाए गए संविधान पाठ की चर्चा हो रही है।

संविधान के जानकार और भाजपा के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी का कहना है कि राज्यपाल विधानसभा में वही पढ़ते हैं, जो सरकार कैबिनेट में पास करके उन्हें पढ़ने के लिए देती है। सरकार ने जो भी कुछ लिखकर दिया, वह राज्यपाल ने पढ़ दिया। राज्यपाल संविधान प्रस्तावना को पढ़ने से मना तो नहीं कर सकते थे। संविधान की प्रस्तावना पढ़ने में कोई परेशानी नहीं है।

ऐसा समझा जा रहा है कि राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने केंद्र सरकार पर निशाना साधने के लिए प्रस्तावना का पाठ कराया है। राजस्थान में पिछले दिनों हुए सियासी संकट और कई अन्य मामलों में मुख्यमंत्री गहलोत केंद्र पर आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र सरकार संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर लोकतंत्र की हत्या कर रही है।

सूत्रों के अनुसार लोकसभा में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) पास होने के बाद कांग्रेस ने संविधान की प्रस्तावना को हथियार बनाकर सीएए का विरोध शुरू किया था। उस समय दिल्ली में सीएए कानूनों के खिलाफ आयोजित विरोध सभा में कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी के साथ सभी कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ किया था।

वर्तमान में कृषि कानून विवाद के कारण बने हुए हैं और कांग्रेस इन कानूनों का पुरजोर विरोध कर रही है। इसी के चलते केंद्र सरकार पर निशाना साधने के लिए सरकार ने राज्यपाल से संविधान की प्रस्तावना का पाठ कराया है लेकिन भाजपा नेता तिवाड़ी का कहना है कि सीएए कानून संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप था और वर्तमान में कृषि कानून भी प्रस्तावना के अनुरूप ही है।

उधर, भाजपा में कहा जा रहा है कि राज्यपाल कलराज मिश्र का व्यक्तित्व नियमानुसार चलने वाले राजनेता का रहा है। कुछ समय पूर्व भाजपा में तय किया गया था कि 75 वर्ष से ऊपर की उम्र के पार्टी के राजनेताओं को सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए। पार्टी में जब यह नियम बना था, उस समय मिश्र केंद्रीय मंत्री थे और कुछ ही समय बाद उनकी उम्र 75 वर्ष पार कर गई। ऐसे में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा दे दिया था। हालांकि भाजपा की ओर से उन्हें सरकार चलने के दौरान कंटीन्यू करने का ऑफर भी दिया गया था लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था। इसके बाद मिश्र को राज्यपाल बनाया गया था।

भाजपा में राज्यपाल के व्यक्तित्व को उदाहरण बनाकर पद से चिपके बैठे उम्रदराज नेताओं को निशाना बनाया जाना शुरू हो गया है। भाजपा में कहा जा रहा है कि प्रस्तावना का पाठ राज्यपाल ने किया हो या सरकार ने उनसे कराया हो लेकिन इसका संदेश यही है कि राजनेता नियमों को मानें और अपने कर्तव्यों का पालन करें। भाजपा में नियम है कि 75 वर्ष से ऊपर के राजनेता सक्रिय राजनीति से सन्यास लें तो फिर राजस्थान में क्यों पुराने राजनेता पदों से चिपके हुए हैं।

भाजपा में मांग उठने लगी है कि उम्रदराज राजनेताओं को सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिए ताकि नई पीढ़ी को राजनीति में अपनी काबिलियत दिखाने, जनता के लिए कार्य करने का मौका मिल सके। उम्रदराज नेता यदि पदों पर बने रहेंगे, तो युवा पीढ़ी आगे नहीं आ पाएगी। खुद नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया काफी उम्रदराज हैं लेकिन अभी भी पद पर हैं। कई विधायक पांच से सात बार चुन कर विधानसभा पहुंच चुके हैं लेकिन वह अपनी सीट छोड़ने को तैयार नहीं है, जिससे युवा नेताओं को मौका नहीं मिल रहा है और वे पार्टी से दूर होते जा रहे हैं।

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