ताज़ा समाचारदिल की कलम से

16 फरवरी, वसंत पंचमीः विद्या एवं प्रेम के समागम का ऋतु पर्व

  • प्रणय पिंपळे, कला एवं खेल समीक्षक

माघ शुक्ल पंचमी याने वसंत पंचमी का पर्व भारत भूमि के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। लगभग हजार वर्षों का विदेशीआक्रमणकारियों का सांस्कृतिक दमन भी वसंत ऋतु में भारतीय उपमहाद्वीप पर होने वाले नैसर्गिक सृजन के पर्व का संहार नहीं कर पाया। भले ही वसंत पंचमी का इतिहास धुंधला हुवा हो पर प्यार और नया करने की इच्छा वसंत ऋतु के साथ वातावरण मे नई उमंग पैदा कर देती है।
कामदेव का जन्म एवं लीला
सजीव सृष्टि का प्रकृति के नियमों के तहत वर्धन होने कि प्रक्रिया स्वाभाविक मिलन ही है। सृष्टि रचयिता परमपिता ब्रह्मा ने इसी उद्देश्य कि पूर्ति के लिये वसंत पंचमी के दिन प्रेम के देवता कामदेव का सृजन किया। कामदेव और दक्ष प्रजापति कि कन्या रति ने प्रेम के जो नये अद्भुत आयाम स्थापित किये, उसी कारण प्रेम के सर्वोच्च आविष्कार को कामक्रीड़ा या रति क्रीड़ा कहा जाता है। वसंत ऋतु प्यार के ऐसे पर्व की मानसिकता सभी सजीवों मे इस प्रकार पैदा कर देती है कि बेहद स्वाभाविकता से सृष्टि सृजित हो जाती है।
मां सरस्वती का जन्म
सृष्टि के सृजन के साथ उसका चलन सुयोग्य रूप से हो यह भी आवश्यक था। परमपिता ब्रह्मा ने इसी उद्देश्य से विद्या की देवी सरस्वती का सृजन वसंत पंचमी के पावन पर्व पर किया।
कामदेव का सृजन कर चुके परमपिता ब्रह्मा अपनी पुत्री सरस्वती को वसंत की बहार में निहारते हुए स्वयं कामदेव के शिकार हो गये । उनके मन में अपनी पुत्री के साथ काम की प्रबल इच्छा जागृत हो उठी। कोई अनर्थ हो इससे पहले सरस्वती के प्रभाव से कामदेव का प्रभाव संतुलित हो गया और ब्रह्मदेव पश्चाताप कर कर पापक्षालन में जुट गये।
सर्वप्रथम सरस्वती पूजन, उसके बाद ही काम
वसंत पंचमी के अवसर पर सर्वप्रथम सरस्वती पूजन होता है और उसके बाद ही प्रिय व्यक्ति से सृजन की अनुमति है। यह दर्शाता है कि भारतीय सभ्यता केवल सृजन को नहीं बल्कि योग्य ज्ञान प्राप्त करके योग्य पद्धति से सृजन में विश्वास रखती है।
कामज्वर की पीड़ा मे विद्या एवं विवेक का त्याग करने के उदाहरण भी कई है और उनसे होने वाले पाप का भी विवेचन भारतीय पुराणों में मिलता है।
ब्रह्म- सरस्वती के अतिरिक्त इंद्र और अहिल्या , विष्णु एवं वृंदा, पांडु एवं माद्री की कथाएं बड़ी सीख देती हैं। रति की कृपा से प्राप्त हुए सौंदर्य मे चूर अहिल्या इंद्र को मोहित करने में नही चूकती। इंद्र भी फिर अहिल्या के पति ऋषि गौतम के रूप मे अहिल्या के सामने प्रकट हो जाते हैं। अपने सौंदर्य पर इंद्र भी परास्त हो गये, इस भावना मे चूर अहिल्या इंद्र को नहीं रोकतीं और शापित होकर एक शिला मे परिवर्तित हो जाती हैं। त्रेता युग तक इंतजार करने के पश्चात प्रभु श्रीराम द्वारा मुक्ति पाती हैं।
जलंधर अपनी पत्नी वृंदा के पतिव्रत के दम पर देवताओं को सदा परास्त करके त्रस्त करते थे। वृंदा के इसी पतिव्रत को भंग करने के लिये भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण क वृंदा में कामज्वर का प्रचलन किया। वृंदा के पतिव्रत खोने के बाद तुरंत ही जलंधर का वध हो जाता है।
पांडवों के पिता महाराज पांडु भी कामज्वर का शिकार हो कर माद्री से मिलन के लिये लालायित हुए और प्राण गंवा बैठे।
ये सारी कथाएं इसी बात का संकेत करती है कि नियमित सरस्वती पूजन नियमित करके अपना विवेक ना खोएं। काम अवश्य करे परंतु विवेक का त्याग करके नहीं।

सांस्कृतिक सृजन के सुयोग्य चलन का ये पर्व सभी भारतीय जरूर मनाएं
प्रेम करे प्रेम बढ़ायें। स्वदेशी संस्कार एवं उच्च परंपरा का ज्ञान सभी को हो और आशा करता हूं कि वसंत पंचमी का ये पर्व इसी ज्ञान और प्रेम का प्रकाश पूरे भारत वर्ष मे फैलायें।

Related posts

मुख्यमंत्री गहलोत ने लिया बड़ा फैसला, राजस्थान में कक्षा 6 से 8 तक विद्यार्थी व कॉलेज विद्यार्थी 8 फरवरी से स्कूल जा सकेंगे

admin

टोक्यो पैरालंपिक (Tokyo Paralympics) के आखिरी दिन भारतीय बैडमिंटन (Badminton) खिलाड़ियों का जलवा, प्रमोद भगत और कृष्णा नागर ने जीता स्वर्ण, नोएडा के डीएम सुहास यथिराज (Noida DM Suhas Yathiraj) ने रजत और मनोज सरकार ने जीता कांस्य पदक

admin

कोरोना वैक्सीन (corona vaccine) की पहली डोज (first dose) लगा चुके लोग दूसरी डोज लगवाने में लापरवाही (negligence) से बचें : चिकित्सा मंत्री (Medical Minister) मीना

admin