जयपुर। जयपुर नगर निगम के साथ एक उपनाम कंगाल नगर निगम जुड़ा हुआ है। नगर निगम कंगाली की हालत तक क्यों पहुंचा, इसके पीछे भी रोचक दास्तान यह है कि अधिकारी और कर्मचारी निगम का राजस्व डकार रहे हैं। इसका खुलासा शहर में चल रहे डेयरी बूथों से हो रहा है।
जानकारी सामने आई है कि सरस डेयरी शहर में 6000 बूथों पर दूध की सप्लाई करती है, जबकि नगर निगम में 550 के करीब बूथ ही रजिस्टर्ड है। शेष 5500 बूथों में से करीब 2500 अवैध बूथ बताए जा रहे हैं। अवैध बूथ तो छोड़ निगम में रजिस्टर्ड बूथ भी निगम को किराया नहीं चुका रहे हैं। हाल ही में नगर निगम ग्रेटर की ओर से डेयरी बूथों का किराया जमा कराने के लिए कैंप भी आयोजित किया गया था, लेकिन बूथ संचालकों ने किराया नहीं जमा कराया।
नगर निगम लाइसेंस समिति के अध्यक्ष रमेश चंद सैनी का कहना है कि रजिस्टर्ड बूथों द्वारा किराया जमा नहीं कराने पर कारण जानने की कोशिश की तो सामने आया कि निगम के अधिकारी और कर्मचारी द्वारा इन बूथों से अवैध रूप से वसूली की जा रही है। निगम को एक डेयरी बूथ से प्रतिमाह एक हजार रुपए किराया वसूला जाता है, लेकिन दशकों से निगम को इन बूथों से राजस्व की प्राप्ति नहीं हो रही है।
ऐसे में समिति की ओर से तय किया गया है कि सोमवार से नगर निगम ग्रेटर के क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी रजिस्टर्ड डेयरी बूथों का सर्वे किया जाएगा और उनसे किराया वसूला जाएगा। जो डेयरी बूथ अवैध रूप से संचालित है, उन्हें मौके पर ही रेग्यूलाइज करेंगे और उनसे किराया वसूलेंगे। इस पूरी कार्रवाई का मकसद यही है कि निगम का रेवेन्यू बढ़ाया जाए। यदि डेयरी बूथ इतने पर भी नहीं मानेंगे तो उनसे पेनल्टी समेत किराया वसूली की जाएगी।
ट्रेड लाइसेंस के लिए खान-पान की दुकानों का होगा सर्वे
सैनी ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से शहर में अवैध रूप से चल रही खान-पान की दुकानों यथा होटल, ढाबा, रेस्टोरेंट, मिठाई की दुकान, ज्यूस की दुकान, बेकरी, केंटीन आदि को ट्रेड लाइसेंस जारी करने और शुल्क निर्धारित किया गया है। लाइसेंस समिति की ओर से इस संबंध में ग्रेटर के सभी जोन उपायुक्तों को पत्र लिखा गया है कि वह अपने जोन के सभी वार्डों में संचालित समस्त खान-पान की दुकानों का निर्धारित प्रोफार्मा में सर्वे करा कर 15 दिन में समिति को भेजें, ताकि इन दुकानों के लाइसेंस बनाकर फीस वसूली की जा सके और निगम का रेवेन्यु बढ़ाया जा सके।
2017 के बाद आवासीय भवन में बनी दुकानों को नहीं मिलेगा लाइसेंस
सैनी ने बताया कि 2017 से पूर्व आवासीय या व्यावसायिक भवनों में बनी जिन खान-पान की दुकानों ने लाइसेंस ले रखा है या आवेदन कर रखा है, उन्हें लाइसेंस दिया जाएगा या रिन्यू किया जाएगा। वहीं वर्ष 2017 के बाद आवासीय भवनों में संचालित खान-पान की दुकानों को लाइसेंस प्रदान नहीं किया जाएगा।