जयपुर

स्वच्छता सर्वेक्षण में डूबेगी जयपुर की नैय्या, जयपुर ग्रेटर महापौर ने एसीबी को पत्र लिखकर ठोकी कील, 3 महीनों से चल रही ठेकेदारों की हड़ताल, एसीबी को पत्र के बाद अधिकारी भुगतान से डरेंगे

जयपुर। इस बार के स्वच्छता सर्वेक्षण में जयपुर की नैय्या डूब सकती है। जयपुर नगर निगम ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर की ओर से एसीबी को लिखे गए पत्र ने जयपुर की नाव में कील ठोक दी है। अब सर्वेक्षण के दौरान शहर की सारी व्यवस्थाएं ठप्प होने के आसार है और नगर निगम ग्रेटर के साथ-साथ हैरिटेज की रैंकिंग गिरने के भी आसार बन रहे है।

नगर निगम ग्रेटर हो या हैरिटेज, दोनों की स्थिति इस समय कंगाल है। दोनों निगम कर्ज लेकर घी पीने की कोशिशों में लगे हैं। वित्त व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण लंबे समय से दोनों निगम ठेकेदारों को भुगतान नहीं कर पा रहे थे। निगम के ठेकेदारों ने भुगतान नहीं मिलने के कारण पिछले तीन महीनों से हड़ताल कर रखी है। ठेकेदारों के हैरिटेज में करीब 90 करोड़ रुपए और ग्रेटर में करीब 200 करोड़ रुपए अटके हुए हैं।

निगम में कहा जा रहा है कि महापौर ने एसीबी को पत्र लिखकर भुगतान पर नजर रखने का आग्रह किया है। ऐसे में एसीबी के डर से अधिकारी भुगतान करने से झिझकेंगे। भुगतान नहीं मिलने पर ठेकेदार भी हड़ताल तोड़ने के मूड में नहीं है। हड़ताल नहीं टूटी तो शहर की साफ-सफाई, सीवर, लाइट समेत अन्य व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं आएंगी, जिससे सर्वेक्षण में नगर निगम ग्रेटर और हैरिटेज की रैंकिंग गिरना तय है। ठेकेदारों को भुगतान करने में निगम हैरिटेज के अधिकारियों को भी डर रहेगा, ऐसे में वहां भी लोन का पैसा आने के बावजूद ठेकेदारों का भुगतान लेट हो सकता है।

शहर का हाल यह है कि निगम के सभी काम हड़ताल के चलते बंद पड़े हैं। न नाली साफ हो रही है और न ही सीवर लाइन। चैम्बरों में मलबा भरा पड़ा है। बीवीजी ने डोर-टू-डोर बंद कर ओपन डिपो से कचरा उठाना शुरू कर दिया है। वार्डों में हूपर नहीं पहुंच रहे हैं। शहर की सड़कों पर सीवर उफान मार रहा है। नालों पर फेरो कवर नहीं है। नगर निगम ने सीवर लाइन सफाई की मशीनें भी ठेकेदारों को पकड़ा दी, लेकिन हड़ताल के चलते यह मशीनें भी खड़ी है।

राजनीतिक हलकों में महापौर के इस पत्र को अपरिपक्वता करार दिया जा रहा है, क्योंकि इस पत्र से सर्वेक्षण के दौरान निगमों का सारा काम खराब हो जाएगा। कहा जा रहा है कि महापौर को भुगतान में भ्रष्टाचार का अंदेशा था तो, उनके पास पॉवर है कि वह खुद खड़े रहकर पूरी जांच परख के बाद ठेकेदारों का भुगतान करा सकती थी। सर्वेक्षण के दौरान उनकी पहली प्राथमिकता यही होनी चाहिए थी कि जल्द से जल्द ठेकेदारों की हड़ताल टूटे, लेकिन उन्होंने एसीबी को पत्र लिखकर मामले को ज्यादा उलझा दिया है।

इस पत्र से तो यही मैसेज मिल रहा है कि हड़ताल लंबी खिंच सकती है। महापौर की कार्यप्रणाली को देखकर तो यही लगता है कि पिछले भाजपा महापौर की तरह वह सिर्फ अपना नाम चमकाने में लगी हैं।

क्या महापौर ने गलत भुगतान नहीं किया?

निगम सूत्रों का कहना है कि महापौर को भ्रष्टाचार की इतनी चिंता है, तो फिर उन्होंने बीवीजी कंपनी को गलत भुगतान क्यों किया? शहर में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण को निगम के इतिहास में सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है। कंपनी डोर-टू-डोर करने के बजाए ओपन डिपो से कचरा उठाकर, आधा-अधूरा काम करके भुगतान उठा रही है। शहरभर से जोन उपायुक्त कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट भेजते हैं, तो फिर महापौर कई महीनों से बीवीजी के बिलों को कैसे सत्यापित कर रही हैं?

जयपुर में ढह जाएगा भाजपा का गढ़

उधर भाजपा में कहा जाने लगा है कि करौली से आई सौम्या गुर्जर जयपुर में भाजपा का गढ़ ढहा देगी। एसीबी के डर से कोई अधिकारी-कर्मचारी अधिकारी भाजपा नेताओं के कहने पर काम नहीं करेगा। लोगों के काम नहीं होंगे तो इसका सीधा प्रभाव भाजपा पर पड़ेगा। इससे पूर्व भी समितियों के निर्माण में गलत निर्णयों के चलते समितियां भंग हुई और भाजपा को मुंह की खानी पड़ी। महापौर के निर्वाचन को भी न्यायालय में चुनौति मिली हुई है।

यदि न्यायालय में महापौर के खिलाफ निर्णय आता है तो फिर एकबार भाजपा को मुंह की खानी पड़ेगी। शहर में फैली अव्यवस्थाओं के कारण लोग भाजपा से किनारा कर लेंगे। उन्हें तो सबसे पहले ठेकेदारों को थोड़ा-थोड़ा पैसा देकर हड़ताल तुड़वानी चाहिए थी।

निगम का काम करने वाले ठेकेदारों के घर पहुंच रहा राशन

नगर निगम के ठेकेदार भी इस बार मन कड़ा करके हड़ताल पर उतरे हैं कि जब तक उन्हें भुगतान नहीं होता, तब तक न तो कोई काम होगा और न ही हड़ताल टूटेगी। जानकारी के अनुसार हड़ताल के दौरान कुछ ठेकेदारों ने अधिकारियों के कहने पर काम करने की कोशिश की। ठेकेदारों की यूनियन को जब इसका पता चला तो वह उन ठेकेदारों के घर पर दाल-चावल और आटे के पैकेट लेकर पहुंच गए और राशन देकर उनके घरों के बाहर धरना प्रदर्शन किया। यूनियन की इस कार्रवाई से अब कोई भी ठकेदार निगम का काम करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।

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