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छिछोरगर्दी में नवाचार

होली की फुहारें..

होली के हुरियारे इस बार डरे-डरे से हैं। यह डर कुछ ऐसा है कि जैसे.. बचपन जब हम कोई शरारत तो करते ही नहीं थे, और कोई बड़ा बस यूं ही अपना रौब झाड़ने के लिए हमारे गाल गुलाबी करने के लिए थप्पड़ रसीद कर देता और हम रोते हुए घर के किसी और अधिक बड़े-बजुर्ग के पास शिकायत लिए जाते तो वह बड़ा-बुजुर्ग सांत्वना देने की बजाय यह समझाता कि..आखिर गये ही क्यों थे, उसके पास। यानी बस यूं ही किसी के शौक के लिए पिटे भी और गलती भी हमारी। होरी के हुरियारों को कोरोना ऐसे ही रुला रहा है। फगुनियाये हुए घर से बाहर निकले कि किसी बड़े ने कर दिये गाल गुलाबी और झाड़ दिया अपना रुआब..। ऐसे अजीबो-गरीब दौर में देश के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार आलोक पुराणिक अपनी पिचकारी की धार से सराबोर कर रहे हैं।

छिछोरगर्दी में नवाचार

आलोक पुराणिक

टीवी चैनलों की आफत है। होली हर साल आती है, कुछ नया दिखाना है। होली खेले रघुबीरा अवध में- अमिताभ बच्चन का यह होली गीत अब कतई फर्जी मालूम होता है। अमिताभ बच्चन सरीखा शाणा मानुष होली खेलने में टाइम वेस्ट नहीं करता, यह सब जानते हैं। होली खेले रघुबीरा के नृत्य के दौरान भी अगर उनपे आफर आ जाये कि प्लीज इस रंग का प्रचार कर दो, गीत के बीच यह कह दो कि ये वाला रंग ही होली खेलने के लिए उपयुक्त है-अमिताभ बच्चन गीत रोककर ब्रांड एंबेसडर बन जायेंगे।

अमिताभ के होली गीत फर्जी लगते हैं, अमिताभ बच्चन अब इस कदर इतने आइटम बेच रहे हैं कि वह अब सिर्फ कुछ बेचते हुए ही अमिताभ बच्चन लगते हैं। अमिताभ बच्चन किसी और शेप में अमिताभ बच्चन नहीं लगते। अमिताभ बच्चन होना यानी कुछ बेचना। डॉन की तलाश तो सौ ब्रांडों के मार्केटिंग मैनैजर कर रहे हैं, उन्हे अपना माल बिकवाना है-यह डायलाग कतई सटीक लगता है अमिताभ बच्चन पर।

तो अमिताभ बच्चन को कितना दिखायें होली पर, कुछ नया दिखाइये। शाहरुख खान इन दिनों बेरोजगार टाइप चल रहे हैं, फिल्में फ्लॉप जा रही हैं। उन्हे पब्लिक फिल्मों ना देखना चाहती, तो होली गीतों के जरिये क्यों देखेगी। तो क्या दिखायें होली पर।

बलम पिचकारी का प्रख्यात होली गीत-बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी-वाली दीपिका पादुकोण के बलम रणवीर सिंह हो गये हैं। इस गीत के हीरो रणबीर कपूर अभी किसी के बलम ना हो पाये हैं, बलम इन वेटिंग हैं- यह गीत अब पुराना हो लिया है। इस गीत के बालमात्मक रिश्ते अब अस्त व्यस्त पड़े हैं।

होली पर क्या दिखायें- कवि सम्मेलन हास्य कवि सम्मेलन का वक्त फिलहाल ना दिखता क्योंकि पाकिस्तानी आतंक से देश कराह रहा है, तो वीर रस के कवि को बुलाओ। उसी कवि को बुलाओ, जो अब तक हजार बार पाकिस्तान को निपटा चुका है। रावलपिंडी  में तिरंगा फहरा चुका है। फहराता ही जा रहा है। अब तो वीर रस के कवि का पुत्र भी लाहौर, रावलपिंडी को मंच से निपटाने लगा है। इतनी बार निपट लिया पाकिस्तान मंच से फिर भी निपट नहीं रहा है। वीर रस का कवि चाहता है कि वह निपटे भी नहीं, पोते को भी एक दिन मंच से लाहौर रावल पिंडी निपटाने का मौका मिलेगा। पाकिस्तान बहुत काम आता है, पाक सेना के जनरलों के लिए, पाक के भ्रष्ट अफसरों के लिए, भ्रष्ट नेताओं के लिए और वीर रस के कवियों के लिए।

मैंने एक वीर रस के एक कवि से अर्थशास्त्र डिस्कस किया। मैंने उसे बताया-पाकिस्तान के फाइनेंस के पीछे चीन है। चीन रकम देता है, तो पाक चलता है। चीन यह रकम उन स्मार्ट मोबाइल फोनों से कमाता है, जो भारतवासी खरीदते हैं। भारत में बिकनेवाले दस स्मार्टफोनों में से सात चाईनीज हैं। इन चाईनीज फोनों को हमारे बड़े क्रिकेटर, फिल्म स्टार बेचते  हैं। पाकिस्तान से लड़ना है, तो चीन के खिलाफ जंग छेड़ो मंच से। मंच से बीजिंग को निपटाओ, चीन के शहरों को निपटाओ।

कवि बोला-मुझे चीन के दस शहरों के नाम भी ना पता। फिर पब्लिक चीन को निपटाने में दिलचस्पी ना दिखाती। पब्लिक रावलपिंडी को निपटना देखना चाहती है। पब्लिक लाहौर को निपटते देखना चाहती है। मैंने कवि को समझाया कि बेट्टे पाकिस्तान ना निपटने का,चीन को निपटा ले । चीन को निपटाने का काव्य-कारोबार ज्यादा जोरदार नहीं है, तो चीन ना निपट पा रहा है। तो होली पर हास्य कवि सम्मेलन ना हो सकता।

 तो.. तो.. तो.. क्या दिखायें होली पर, होली पर कुछ नया दिखाना है। क्या दिखायें होली पर टीवी सीरियलों में – भाभीजी घर पर हैं-भरभूतिजी उर्फ विभूतिजी होली का फायदा उठाकर और ज्यादा छिछोरे हो गये हैं- यह दिखा दिया जाये होली पर। पर.. पर.. पर विभूतिजी और तिवारीजी होली से पहले ही जितनी छिछोरगर्दी दिखा देते हैं, उसके मुकाबले और ज्यादा छिछोरगर्दी ये लोग क्या दिखा देंगे। भारतीय टीवी सीरियलों के सामने एक चुनौती यह आ खड़ी हुई है- आखिर कैसे छिछोरगर्दी में नवाचार किया जाये। छिछोरगर्दी में नये नये आयाम कैसे लाये जायें।

इंसानों में छिछोरगर्दी के लगभग सारे आयाम छान लिये गये हैं, सो भारतीय टीवी सीरियलों पर नागिनों और चुड़ैलों तक को छिछोरगर्दी में उतारा जा रहा है। मन करता है कभी इच्छाधारी नाग या चुड़ैल बन जाऊं और टीवी की चुड़ैलों से कहूं-तुम काहे छिछोरगर्दी में अपना नाम खराब कर रही हो। ये सब काम भरभूतिजी और तिवारीजी के लिए छोड़ दो, उनका तो धंधा रोजगार है, तुम तो चुड़ैल हो, आराम से कहीं किले खंडहर में टंग कर चैन से रहो। पर मुझे चुड़ैलों का जवाब पता है- वे कहेंगी- ये टीवी चैनल वाले कहां चैन से रहने देते हैं वहां भी। भानगढ़ किले पर नये-नये भूतों चुड़ैलों की तलाश में कोई ना कोई टीवी चैनल वाला रोज ही पहुंचा रहता है।

खैर, तो मूल सवाल वही है कि आखिर होली पर नया क्या दिखाया जाये। खैर छोड़िये सब टीवी पर कंगना रनौत को देखें जो नाराज हैं इस बात पर कि अंगरेजों के खिलाफ देशभक्ति अब वह बात क्यों ना रही।

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