प्राकृतिक रूप से रेगिस्तानी राज्य राजस्थान में वनों (forests) के हाल खराब हैं। बढ़ते रेगिस्तान को रोकने के लिए जहां प्रदेश में वनों का विकास किया जाना चाहिए, वहीं वन और पर्यटन (tourism) विभाग मिलकर प्रदेश के बचे-खुचे वन क्षेत्रों को भी होटल ओर टूरिज्म लॉबी के हवाले कर बबार्द करना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस (international tiger day) की पूर्व संध्या पर बुधवार को फिक्की की ओर से ‘बाघ और पर्यटन’वेबिनार आयोजित की गई। इस वेबिनार के मायने यही निकाले जा रहे हैं कि वन और पर्यटन विकास के नाम पर होटल व टूरिज्म लॉबी प्रदेश की नई ईको टूरिज्म पॉलिसी के तहत वन क्षेत्रों में अपनी घुसपैठ बढ़ाने में जुट गई है।
राजस्थान में भारतीय वन्यजीव (forest animal) संस्थान, कुंभलगढ़ में 5वें बाघ अभयारण्य के लिए व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए क्षेत्र सर्वेक्षण और अध्ययन कराया जा रहा है। प्रोजेक्ट टाइगर दुनिया भर में सबसे सफल संरक्षण कार्यक्रमों में से एक रहा है। यह कहना है वन एवं पर्यावरण विभाग की प्रमुख सचिव श्रेया गुहा का। गुहा अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर फिक्की (FICCI) द्वारा आयोजित ‘बाघ और पर्यटन’ वेबिनार में बोल रही थीं।
गुहा ने कहा कि हाल ही में प्रदेश में नए डेस्टिनेशंस और प्रोडक्ट्स को विकसित करने, एक्सपेरिएण्टियल टूरिज्म को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इकोटूरिज्म नीति की घोषणा की गई थी। इसके तहत विभाग तीन परियोजनाओं पर काम कर रहा है, इसमें चंबल अभयारण्य, ताल छापर और घना है।
पर्यटन निदेशक निशांत जैन ने कहा कि रिजर्व से बाहर के क्षेत्रों पर बाघों का आर्थिक प्रभाव पड़ा, जिससे इन इलाकों में पर्यटन, आजीविका और उद्यमिता के नए रास्ते खुले। राजस्थान में 2 और टाइगर रिजर्व आने की संभावना है, इससे पर्यटन को कॉफ़ी बढ़ावा मिलेगा। पर्यटन विभाग अपने मार्केटिंग कैंपेन में वन्यजीव पर्यटन को भरपूर तरीके से बढ़ावा देगा।
डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. इंडिया के सीईओ रवि सिंह ने कहा कि रामगढ़ विषधारी को टाइगर रिजर्व घोषित कराने की सोच राज्य में वाइल्डलाइफ टूरिज्म को बढ़ावा देने में एक बड़ा कदम है। इको-टूरिज्म के लाभ रिजर्व के आस-पास के स्थानीय लोगों को भी मिलने चाहिए।
फिक्की के सह अध्यक्ष रणधीर विक्रम सिंह ने कहा कि पर्यटन बाघों के संरक्षण में सहायक हो सकता है क्योंकि यह रिजर्व के आसपास के लोगों के लिए आर्थिक अवसर पैदा करता है और उनकी आजीविका वन्यजीवों की रक्षा और उन्हें बढ़ाने से जुड़ जाती है। शाहपुरा होटल्स के चेयरमैन सुरेन्द्र सिंह शाहपुरा ने कहा कि इको टूरिज्म नीति, उद्यमों और होटल व्यवसायियों के लिए नए अवसरों के साथ-साथ स्थानीय रोजगार पैदा करने में मदद करेगी।
दूसरी ओर वन एवं वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि प्रदेश की होटल और पर्यटन लॉबी की नजरें नई ईको टूरिज्म पॉलिसी पर जमी हुई है और यह लॉबी इसके जरिए वन क्षेत्रों में घुसपैठ करना चाहती है, जो वन एवं वन्यजीवों के लिए बड़ा खतरा है। पर्यटन विकास के नाम पर वन एवं वन्यजीवों की धज्जियां कैसे उड़ती है, इसका ताजा मामला नाहरगढ़ अभ्यारण्य है, जहां वन विभाग की मिलीभगत से कई दशकों से अवैध वाणिज्यिक गतिविधियां चल रही है। प्रदेश के हर वन्यजीव अभ्यारण्य के ऐसे ही हाल हैं। राजस्थान उच्च न्यायालय और एनजीटी में इससे संबंधित कई मामले चल रहे हैं।
वन एवं वन्यजीव विशेषज्ञ अधिवक्त महेंद्र सिंह कच्छावा का कहना है कि वन्यजीव अधिनियम में पर्यटन को चौथे स्थान पर रखा गया है। पहले स्थान पर वन्यजीवों के संरक्षण का कार्य है, लेकिन संरक्षण का कार्य काफी पिछड़ गया है और पर्यटन पहले पायदान पर आ चुका है।
वन प्रेमी कमल तिवाड़ी का कहना है कि वन विभाग को वन एवं वन्यजीवों के संरक्षण पर प्राथमिकता से काम करना चाहिए। प्रदेश में ईको टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाना सही है, लेकिन ईको टूरिज्म वन्यजीवों की जान की कीमत पर नहीं होना चाहिए। होलट और पर्यटन लॉबी को वन अधिनियमों का सम्मान करना ही होगा।