जयपुर

5 महीने बाद राजस्थान के पुरातत्व विभाग को आई दीमक की याद, फर्नीचर की मरम्मत के लिए निकाली निविदा

जयपुर। पुरातत्व विभाग के जिन अधिकारियों को प्रदेश की प्राचीन संपदाओं की सुरक्षा से कोई मतलब नहीं हो, ऐसे अधिकारियों से यह आशा भी नहीं की जा सकती है कि वह अपने विभाग का रिकार्ड भी सही तरीके से सुरक्षित रख पाएंगे। तभी तो विभाग को अपने रिकार्ड की सुरक्षा की फिक्र 5 महीने बाद हो रही है।

पुरातत्व विभाग ने पानी में भीगे और दीमक लगे फर्नीचर को सही कराने के लिए निविदा निकाली है। करीब 35.0 लाख की लागत से फर्नीचर की मरम्मत कराई जाएगी, ताकि विभाग के कार्यालय में लगी दीमक का अटैक अल्बर्ट हॉल संग्रहालय तक नहीं पहुंच सके। इसके तहत विभाग के कुर्सी, टेबल, रिकार्ड रखने की अलमारियों, वार्डरोब, पार्टीशन के दीमक लगे हिस्सों और पानी से खराब हुए हिस्सों को बदला जाएगा।

उल्लेखनीय है कि 14 अगस्त को जयपुर में हुई भारी बारिश के बाद पुरातत्व विभाग के मुख्यालय और अल्बर्ट हॉल की ममी गैलरी और स्टोर रूम में चार-पांच फीट तक पानी भर गया था और विभाग का आधे से ज्यादा रिकार्ड और स्टोर रूम में बड़ी मात्रा में रखी प्राचीन सामग्रियां पानी में भीग गई थी। पानी में भीगे फर्नीचर और फाइलों में बड़ी मात्रा में दीमक का फैलाव हो गया था।

क्लियर न्यूज ने 11 सितंबर को ‘अब होगा पुरा सामग्रियों पर दीमक अटैक’ खबर प्रकाशित कर बताया था कि विभाग का मुख्यालय पूरी तरह से दीमक के चपेट में था और यहां से दीमक का फैलाव अल्बर्ट हॉल की तरफ भी हो रहा था। उस समय विभाग के अधिकारियों ने दावा किया था कि विभाग की रसायन शाखा दीमक के फैलाव को रोकने की कोशिश कर रही है, लेकिन उनका यह दावा झूंठा था, क्योंकि विभाग की मुख्य पुरा रसायनवेत्ता एक-डेढ़ महीने बाद ही सेवानिवृत्त हो गई थी। वैसे भी विभाग की इस शाखा में बरसों से कोई काम नहीं हुआ था।

पुरातत्व विभाग में दीमक के बचाव के लिए पांच महीने बाद शुरू की जा रही इस कार्रवाई पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। विभाग के सूत्रों का कहना है कि विभाग में दो दशकों से बड़े घोटाले चल रहे हैं, लेकिन जनता से सीधा जुड़ाव नहीं होने के कारण यह घोटाले जनता के सामने नहीं आ पाते थे। मुख्यालय में जल भराव के कारण विभाग के सेटिंगबाज अधिकारियों पुराने घोटालों की फाइलों को दफन करने का मौका मिल गया। घोटालों से जुड़ी सभी फाइलों को पानी में भीगने से बर्बाद हुआ बताया जा रहा है।

धरोहर बचाओ समिति के अध्यक्ष भारत शर्मा ने विभाग से आरटीआई के जरिए सूचना मांगी थी कि पानी भरने के बाद विभाग मुख्यालय में कितनी फाइलें भीग कर बर्बाद हो गई और कितनी फाइलें बचा ली गई। विभाग की ओर से सूचनार्थी को सूचना उपलब्ध कराई गई कि विभाग की सभी फाइलें पानी में भीग कर बर्बाद हो गई हैं। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब सारी फाइलें पानी में भीग कर बर्बाद हो गई थी तो फिर हाल ही में विभाग में हुई ऑडिट में ऑडिटरों ने क्या गली हुई फाइलों के मलबे को खंगाला था क्या?

दूसरा सवाल यह उठ रहा है कि जब सभी फाइलें पानी में भीग कर बर्बाद हो गई थी तो फिर अब ठेकेदारों को पिछले कार्यों का भुगतान, सिक्योरिटी राशि का भुगतान किस आधार पर किया जा रहा है? इन सवालों का विभाग के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है। विभाग के निदेशक से लेकर अधिशाषी अभियंता इन सवालों का जवाब देने से बचने में लगे हैं।

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