‘विस्मृति’ यानी अल्जाइमर (Alzeimer’s) बुढ़ापे में होने वाली कुछ बीमारियों में से एक है। हम में से कई लोगों ने अपने परिजनों को इस बिमारी का सामना करते हुए देखा है। कुछ लोग इस बीमारी को वैद्यकीय परिभाषा में ‘अल्जाइमर’ के तौर पर भी जानते हैं। ‘अल्जाइमर’ मस्तिष्क के कार्य से संबधित बिमारी होती है। यह बीमारी अधिकतर 60 वर्ष तथा इससे अधिक आयु में होती है। इस बीमारी को औषधि (medicine), सक्रियता (Activeness) और देखभाल (Care) के जरिये नियंत्रित (Control) किया जा सकता है।
अल्जाइमर और डिमेन्शिया में अंतर को समझें
‘अल्जाइमर’ कहें या ‘डिमेन्शिया’ कहें, इन दोनों बीमारियों के लक्षण लगभग समान होने के कारण बहुत बार सामान्य लोग इसे एक ही समझते है। वास्तव में मस्तिष्क की क्षमता का क्षय होने में कई व्याधियां जिम्मेदार होती हैं। इन सबके लक्षणों तथा उनके एकत्रित परिणाम को डिमेन्शिया कहा जाता है। ‘अल्जाइमर’ डिमेन्शिया होने का एक प्रमुख कारण होता है। डिमेन्शिया के सत्तर प्रतिशत रोगियों में ‘अल्जाइमर’ पाया जाता है। ऐसे रोगियों को ‘अल्जाइमर-डिमेन्शिया’ के निदान की जरूरत होती है।
अल्जाइमर के तीन प्रकार
इस बिमारी को सामान्य रूप से तीन चरणों में विभाजित किया जाता है। सबसे पहला चरण अति सौम्य प्रकार का होता है। चाबी, चष्मा, दवाइयां और रोज की जरूरत की चीजे कहां रखी हैं? यह बार-बार भूल जाना, किसी का संदेश देना, टेलिफोन या बिजली के बिल भरने की अंतिम तारीख याद न रहना तथा कोई नई चीज सीखने का साहस न दिखाना आदि लक्षण इस अवस्था में पाये जाते है। इसका स्वरूप इतना सौम्य होता है कि परिवार तथा स्वयं पीड़ित व्यक्ति द्वारा भी इन लक्षणों को अनदेखा किया जाता है।
दूसरे चरण को सौम्य तथा मध्यम चरण कहा जाता है। इसमें व्यक्ति को सुबह क्या भोजन किया? कल किससे मिले थे? दवाई ली या नहीं ली, ये बातें याद नहीं आती हैं। सामाजिक समारोहों में उनकी सहभागिता कम होती जाती है। लोगों से मिलना-जुलना कम हो जाता है। कई बार वे अपनी परिचित जगह से घर आने का रास्ता भूल जाते हैं। परिणामस्वरूप कई बार इस अवस्था में व्यक्ति की मनोवस्था विमूढ़ दिखाई देती है। ‘मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है?’ यह सोचकर व्यक्ति का चिड़चिडापन बढ़ने लगता है। इस अवस्था में व्यक्ति को बैंक तथा वित्तीय व्यवहार करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस तरह का परावलंबी जीवन उनकी अस्वस्थता को बढ़ता है।
विस्मृति का तीसरा चरण होता है अति गंभीर
विस्मृति के इन दोनों चरण में अगर अनदेखी होती है, तो व्यक्ति तीसरे चरण में पहुंच जाता है। यह चरण अधिक गंभीर तथा तीव्र स्वरूप का होता है। इसमें व्यक्ति अपने गली-मोहल्ले, कॉलोनी तथा गांव में भी खो जाता है। यहां तक कि वह अपने घर का पता, फोन नंबर, परिजनों का मोबाइल नंबर भी नहीं बता सकता है। बचपन, युवावस्था से जुड़ी गहरी स्मृतियां भी उसे याद नहीं रहतीं। स्नान, भोजन, दवाई आदि नित्यकर्म एक बार करने के बाद भी भूल जाते हैं। एक ही चीज वह बार-बार करते रहते है। इस चरण के अति तीव्र अवस्था में व्यक्ति अपने मल-मूत्र विसर्जन का नियंत्रण खो बैठता है। उनको भ्रम होने लगते है। दिन-रात, समय, तारीख का उनको ध्यान नहीं रहता है। उनकी शारीरिक गतिविधियां भी सीमित हो जाती है। स्नायुं की पकड़ भी ढीली पड़ जाती है। भोजन निगलने में, संवाद करने में उनको समस्या आती है। धीरे-धीरे उनका बात करना बिल्कुल ही बंद हो जाता है।
जरूरी है बीमारी के पहले चरण व दूसरे चरण को पहचानना
अल्जाइमर को ‘प्रोग्रेसिव डिसीज’ यानि उत्तरोत्तर बढ़ने वाली बीमारी कहा जाता है। इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी न होने के कारण इस अवस्था में घर के बुजुर्गों का ध्यान कैसे रखना है, इस बात से हम अवगत नहीं होते हैं। यह बीमारी पूरी तरह से ठीक नहीं होती है लेकिन पहले और दूसरे चरण में इस बीमारी को पहचाना जाए तो दवाइयों और अच्छी देखभाल के साथ इसकी गति को धीमा किया जा सकता है।
पहले या दूसरे चरण में इस बीमारी का पता चल जाता है तो मस्तिष्क से संबधित कुछ गतिविधियों से रोगी को जोड़ना चाहिए जैसे सुडोकू खेलना, पुराने फोटो एल्बम देखना, पुस्तकें व समाचार पत्र पढ़कर उसके बारें में लेखन तथा चर्चा करना, फाइलों को व्यवस्थित रखना, अलग-अलग ताले और चाबियों को मिलाना इत्यादि ताकि मस्तिष्क की कार्यक्षमता का विघटन रोकने में मदद हो।
पारिवारिक समारोहों में उनको शामिल करना, दोस्तों-रिश्तेदारों का सम्मेलन रखना, घर में मिलकर भोजन लेना, टेलीविजन प्रोग्राम देखना, न्यूज पर चर्चा करना, घर के कामों में उनकी मदद लेकर उनकी उपयोगिता को अधोरेखित करना आदि व्यवहार तथा उपक्रम बुजुर्गों को विस्मृति की बिमारी के गंभीर परिणामों से बचा सकते है।
बीमारी के निदान के लिए बदलें जीवन-शैली
नियमित रूप से संतुलित आहार, हल्की कसरत, प्राणायाम जैसी जीवन-शैली से तथा गायन, रेखांकन, वाचन, पाककला, बागवानी जैसी रुचि के कार्य करने के लिए प्रेरित करके हम उनकी सहायता कर सकते है। गंभीर स्तर के रोगियों के साथ धीरे-धीरे बात करना, उनकी भावनाओं को समझना, उन्हें कभी अकेला न छोड़ना, ‘अल्जाइमर्स क्लब’ में सम्मिलित कराना यह परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी है। साथ ही सबको मिलकर और अदल-बदल करके ‘केयर टेकर’ की भूमिका निभानी चाहिए। अगर एक ही व्यक्ति लगातार विस्मृति से पीड़ित रोगी की देखभाल करने में जुटा रहा तो उस पर दुष्प्रभाव भी दिखाई देगा। अधिकतर घरों में महिलाओं पर यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, सबको मिलकर यह जिम्मेदारी उठाने में ही समझदारी है।
21 सितम्बर यानी ‘विश्व विस्मृति दिवस’
वर्तमान स्थिति में हमारे देश में लगभग 53 लाख लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं। इस बीमारी के बारे में लोगों में जागरूकता लाने के लिए विश्वभर में 21 सितंबर को ‘विश्व विस्मृति दिवस’ का अनुपालन किया जाता है। हमारे देश में हो रहे चिकित्सा सेवाओं के सुधार को देखकर भविष्य में बुजुर्ग व्यक्तियों की संख्या बढ़ेगी, यह अनुमान गलत नहीं होगा। साथ में अल्जाइमर रोगियों की संख्या भी बढ़ेगी। ‘अल्जाइमर’ बीमारी की खोज हुए सौ साल से अधिक बीत चुके है। फिर भी इसके बारे में अधिक लोग जानते नहीं हैं। आने वाले समय में इस बीमारी का बढ़ता खतरा ध्यान में रखते हुए, हमें इस विषय में व्यापक स्तर पर लोगों में जागरूकता लानी होगी।