राज्य सरकार ने यूनेस्को को दे रखा है गाइडलाइन की पालना का आश्वासन
जयपुर। विश्व विरासत स्थल आमेर महल में उजागर हुई सीमेंट की छत महल के दर्जे के लिए नासूर साबित हो सकती है। यदि पुरातत्व विभाग की ओर से महल के टॉयलेट में बनाई गई सीमेंट की छत को नहीं हटाया जाता है और महल में इसी प्रकार चोरी-छिपे सीमेंट व अन्य आधुनिक निर्माण सामग्रियों का उपयोग बदस्तूर जारी रहता है तो यूनेस्को इस हिल फोर्ट को खतरनाक की श्रेणी में डाल सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यूनेस्को ने किसी स्मारक को वल्र्ड हैरिटेज मॉन्यूमेंट का दर्जा दिया है तो उसके लिए यूनेस्को की गाइडलाइन का सख्ती से पालना आवश्यक हो जाती है। यदि ऐसा नहीं होता है तो यूनेस्को कार्रवाई भी कर सकता है। भारत में पहले कर्नाटक के हम्पी को यूनेस्को की गाइडलाइन की पालना नहीं करने पर सात वर्षों तक खतरनाक स्मारक की श्रेणी में रखा गया था।
पॉलिसी में पारंपरिक निर्माण सामग्री के निर्देश
यूनेस्को की गाइडलाइन के अनुसार विश्व विरासत स्थल घोषित हो चुके स्मारकों के लिए पूरे भारत में एक ही सेंट्रल कंजरवेशन पॉलिसी है। इस पॉलिसी में देश के सभी स्मारकों में पारंपरिक निर्माण सामग्री के उपयोग के ही निर्देश दिए गए हैं। प्रदेश में विश्व विरासत स्थल घोषित हो चुके हिल फोर्ट के संरक्षण पर हाल ही में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी, इस बैठक में भी निर्देशित किया गया है कि स्मारकों पर सेंट्रल कंजरवेशन पॉलिसी के अनुसार पारंपरिक निर्माण सामग्री का ही उपयोग किया जाए। राजस्थान सरकार ने यूनेस्को को आमेर, गागरोन और अन्य हिल फोर्ट पर आश्वासन दे रखा है कि वह इनमें सरंक्षण के लिए सेंट्रल कंजरवेशन पॉलिसी की ही पालना करेंगे।
क्या अधिकारियों को गाइडलाइन की जानकारी नहीं?
आमेर महल में सीमेंट और सरिए की छत उजागर हो गई और महल में विगत दस वर्षों से अधीक्षक का पद संभाल रहे जिम्मेदार अधिकारी द्वारा इसकी अवहेलना कर फिर से सीमेंट से छत की मरम्मत करवा देना हैरान करने वाला है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को यूनेस्को की गाइडलाइन और राज्य सरकार द्वारा यूनेस्को को दिए गए आश्वासन की जानकारी नहीं है?
भय बिना नहीं होगी प्रीत
स्मारकों पर अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही की खबरें आए दिन सुर्खियां बनती है। पिछले दो दशकों से स्मारकों पर बेवजह पहले तोड़फोड़ की जाती है और बाद में संरक्षण के नाम पर राजस्व बर्बाद किया जा रहा है। सीमेंट सरिए की छत सामने आने के बाद पुरातत्व विभाग की जिम्मेदारी बनती है कि वह यहां लगे सीमेंट और सरिए को हटाए और गिरी हुई छत की सीमेंट से मरम्मत कराने वाले अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, क्योंकि जब तक कार्रवाई नहीं होगी, तब तक अधिकारी स्मारकों के प्रति लापरवाह बने रहेंगे।
इस लिए गिरी सीमेंट
पुरातत्व संरक्षण से जुड़े जानकारों का कहना है कि चूने के ऊपर कभी सीमेंट टिक ही नहीं सकता। महल के टॉयलेट में भी यही हुआ है। चूने-पत्थर से बनी छत के नीचे सरिए लगाकर सीमेंट का प्लास्टर किया गया था। बारिश के मौसम में सीलन आने पर चूने ने सीमेंट और सरिए से केमिकल रिएक्शन किया और छत गिर गई। छत की मरम्मत दोबारा सीमेंट से कराई गई है, ऐसे में यह मरम्मत भी टिकाऊ नहीं रह पाएगी और कुछ ही समय में नीचे गिर जाएगी।