जयपुर

नाहरगढ़ मामले को रफा-दफा कराने में जुटा पुरातत्व विभाग

सेटिंगबाज अधिकारी को लगाया वन विभाग से वार्ता के लिए

जयपुर। पुरातत्व कानूनों को ताक में रखकर काम करने वाला पुरातत्व विभाग का नाहरगढ़ मामले में पूरी तरह से भंडा फूट चुका है। ऐसे में विभाग अब इस मामले को रफा-दफा कराने में जुट गया है। इस कार्य के लिए विभाग ने ऐसे सेटिंगबाज, उच्चाधिकारियों के करीबी और रसूखदार अधिकारी को वन विभाग के उच्चाधिकारियों से वार्ता के लिए लगाया है, ताकि वन विभाग के आरोपों पर लीपापोती की जा सके।

नाहरगढ़ वन अभ्यारण्य क्षेत्र में स्थित नाहरगढ़ फोर्ट में पुरातत्व विभाग, पर्यटन विभाग और आरटीडीसी की ओर से अवैध रूप से चलाई जा रही वाणिज्यिक गतिविधियों को बचाने और वन विभाग की संभावित कार्रवाई को टलवाने के लिए नाहरगढ़ अधीक्षक राकेश छोलक ने गुरुवार को वन अधिकारियों से चर्चा की। हालांकि इस चर्चा की जानकारी उजागर नहीं हो पाई, लेकिन कहा जा रहा है कि वन अधिकारियों ने पुरातत्व अधिकारी को टका सा जवाब देकर लौटा दिया है।

पुरातत्व विभाग में कहा जा रहा है कि सेटिंगबाजी के गुण के चलते यह अधिकारी अपनी नौकरी के 17 वर्ष जयपुर में पूरे कर चुके हैं। इस दौरान मात्र 8 महीनों के लिए उन्हें जयपुर से बाहर लगाया गया, लेकिन वह अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए फिर से जयपुर लौट आए।

एक अधिकारी पांच चार्ज

हैरानी की बात यह है कि इनका मूल चार्ज अल्बर्ट हॉल है, लेकिन उन्होंने सेटिंगबाजी से एक अन्य संग्रहालय और तीन स्मारकों का चार्ज भी अपने पास ले रखा है, यह तीनों स्मारक नाहरगढ़, सिसोदिया रानी बाग और विद्याधर का बाग वन क्षेत्र में स्थित है, यह सोचने वाली बात है कि आखिर क्यों वह अपने मूल चार्ज के बजाए वन क्षेत्र में पड़ने वाले स्मारकों पर पकड़ बनाए हुए हैं? सवाल उठता है कि जयपुर में पुरातत्व विभाग के पाँच से ज्यादा अधीक्षक कार्य कर रहे हैं, लेकिन सिर्फ एक अधीक्षक को ही पाँच चार्ज क्यों सौंप रखे है? इस मामले में पुरातत्व विभाग के उच्चाधिकारियों पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं।

खुद की मरी भैंस, खुद ही फोटे पटाखे

यह अधिकारी इन दिनों ‘खुद की मरी भैंस, खुद ही फोड़े पटाखे’ कहावत को चरितार्थ करने में लगे हैं। नाहरगढ़ की चिंता में सूख रहे अधिकारी के चार्ज वाले अल्बर्ट हॉल के हाल बेहाल है। विगत 14 अगस्त को हुई अतिवृष्टि में अल्बर्ट हॉल में अरबों रुपए मूल्य की पुरातात्विक सामग्रियां पानी से भीग गई थी, लेकिन उन्हें मूल प्रभार के बजाए अतिरिक्त प्रभारों में ज्यादा इंटरेस्ट है। इन्हें इन पुरा सामग्रियों को बचाने के लिए कार्य करना था, लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। गोदाम में सड़ रही एंटीक्यूटीज को बचाने के लिए अन्य कोई व्यवस्था नहीं होने तक उन्हें खुद इन्हें बचाने का प्रयास करना चाहिए था, क्योंकि वह खुद भी एक्सपर्ट आर्कियोलॉजिस्ट हैं और संग्रहालय विज्ञान का अनुभव प्राप्त हैं। इसके बावजूद उन्होंने खुद के स्तर पर कितनी एंटीक्यूटीज पर कंजर्वेशन का काम किया, यह यक्ष प्रश्न है।

नि:शुल्क कंजर्वेशन का ऑफर, कर रहे बार्गेनिंग

जानकारी में आया है कि अल्बर्ट हॉल में पुरा सामग्रियों की बर्बादी के बाद पुरातत्व विभाग में एंटीक्यूटीज का कंजर्वेशन करने वाली तीन विशेषज्ञ निजी फर्मों ने इन एंटीक्यूटीज का नि:शुल्क कंजर्वेशन करने का ऑफर पुरातत्व निदेशक पीसी शर्मा, प्रमुख शासन सचिव और मंत्री को दिया था, लेकिन दो महीने बाद भी इन फर्मों को विभाग की ओर से या अधीक्षक की ओर से कोई जवाब नहीं भेजा गया। इसके उलट पुरातत्व अधिकारी दिल्ली की एक सरकारी फर्म से बार्गेनिंग करने में जुटे हैं। इस सरकारी फर्म ने कंजर्वेशन कार्य के लिए लंबा-चौड़ा खर्च का प्रस्ताव पुरातत्व विभाग को भेज रखा है। दो महीने के समय में बड़ी मात्रा में बेशकीमती एंटीक्यूटिज बर्बाद हो चुकी है, जिन्हें छिपाया जा रहा है।

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