जयपुर। पुरातत्व विभाग में दो दशकों से फैले भारी भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की तैयारी शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि एक-एक करके सभी भ्रष्ट अधिकारियों का हिसाब-किताब किया जा रहा है। उनके कारनामों की पूछ परख शुरू हुई तो दशकों से मलाईदार सीटों पर जमे अधिकारी तिलमिला गए हैं और मीडिया मैनेजमेंट के जरिए खुद को दूध का धुला साबित करने में लगे हैं।
पुरातत्व सूत्रों के अनुसार जयपुर के सभी पुरा स्मारकों और संग्रहालयों में मेंटिनेंस, संरक्षण-जीर्णोद्धार कार्य कराने की जिम्मेदारी आमेर विकास एवं प्रबंधन प्राधिकरण (एडमा) की है, लेकिन अल्बर्ट हॉल अधीक्षक राकेश छोलक ने अपने चार्ज में आने वाले नाहरगढ़ में कई गैर जरूरी नवीन निर्माण कराए थे। इन कार्यों के लिए उनके पास टैक्निकल सैंग्शन नहीं थी, जिसके चलते पुरातत्व कला एवं संस्कृति विभाग की शासन सचिव और एडमा की सीईओ मुग्धा सिन्हा की ओर से छोलक को कारण बताओ नोटिस जारी किए थे। इस कार्रवाई के बाद विभाग के अधिकारियों में हडकंप मच गया।
सूत्र बताते हैं कि सिन्हा ने शनिवार को आमेर महल का निरीक्षण किया। जिस आमेर में पर्यटकों के साथ ठगी, डिब्बेबाजी करने वाले हॉकरों, फोटोग्राफरों और लपकों को खुला संरक्षण मिला हुआ है, निरीक्षण के दौरान उन्हें आमेर में एक भी हॉकर, लपका नजर नहीं आया, जिससे साबित हो गया कि महल प्रशासन की मिलीभगत से ही यहां पर्यटकों के साथ ठगी, डिब्बेबाजी हो रही है। नहीं तो एक न एक हॉकर शासन सचिव के भी पकड़ में आता। कोई भी यह मानने को ही तैयार नहीं है कि आमेर महल में एक भी लपका या हॉकर न मिले।
यहां तो लपकों और महल प्रशासन का पूरा कॉकस एक दशक से चल रहा है। कहा जा रहा है कि तीन दिन पूर्व निरीक्षण की सूचना मिलते ही महल प्रशासन ने सभी लपकों, फोटोग्राफरों और हॉकरों को महल क्या महल के आस-पास भी फटकने की मनाही कर दी।
गड़बड़ियों को काउंटर करने के लिए चली खबर
विभाग के अधिकारी जब भी किसी भ्रष्टाचार या गलत कार्य के मामले में फंसते हैं, तभी मामले को काउंटर करने के लिए कुछ चुनिंदा अखबारो में दूसरों को दोषी ठहराने के लिए खबरें चलवा देते हैं। सूत्रों का कहना है कि नाहरगढ़ मामले में नोटिस मिलने के बाद से ही काउंटर करने के लिए खबर तैयार कराई जा रही थी और शासन सचिव के दौरे के बाद तिलमिलाए विभाग के सभी अधिकारियों ने महल में बैठक की और यह खबर चलवाई कि एडमा विकास कार्य नहीं करा पा रहा है।
एडमा नहीं पुरातत्व अधिकारियों की कार्यकुशलता पर उठे सवाल
इस खबर के बाद पुरातत्व विभाग में फिर से संग्राम शुरू हो गया है और सवाल अधिकारियों पर ही उठ गए हैं कि दशकों मलाईदार सीटों पर बैठे रहने के बावजूद वह एडमा से काम क्यों नहीं करा पा रहे हैं? उल्लेखनीय है कि अल्बर्ट हॉल अधीक्षक विगत 17 वर्षों से आमेर महल अधीक्षक विगत 10 वर्षों से और हवामहल अधीक्षक विगत 20 वर्षों से ही जयपुर में मलाईदार पदों पर पदस्थापित हैं। इन अधिकारियों पर नकेल कसने की कोशिश की गई, तो वह खबरें चलवाकर शासन सचिव को बदनाम करने की कोशिशों में जुटे हैं।
इससे पूर्व भी खबर प्रायोजित करवा कर अल्बर्ट हॉल में पुरा सामग्रियों के बर्बाद होने का ठीकरा शासन सचिव पर फोड़ने की कोशिश की गई थी, जबकि इसके लिए जिम्मेदार विभाग के अधिकारी थे।
इन पर चल रहा विवाद
सूत्रों का कहना है कि पुरातत्व विभाग के अधिकारियों और शासन सचिव के बीच शीतयुद्ध चल रहा है। अल्बर्ट हॉल में बेशकीमती पुरा संपदाओं का बर्बाद होना, प्राचीन सामग्रियों के संरक्षण कार्य में देरी, प्राचीन ममी की सुरक्षा खतरे में डालना, आमेर महल में सीमेंट से कार्य, विभाग के घपले-घोटालों की फाइलों को बर्बाद करने, इंजीनियरिंग विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार, दशकों से मलाईदार सीटों पर अधिकारियों और कर्मचारियों के जमे रहना।
नाहरगढ़ और आमेर में वन भूमि पर अतिक्रमण व बढ़ती वाणिज्यिक गतिविधियां, दो टिकट घोटालों के बीच स्मारकों और संग्रहालयों पर टिकट बिक्री से अधिक राशि मिलना, विभाग से हटाए गए डबल एओ को फिर से विभाग में लाने की कोशिशों, पुरा स्मारकों पर दूसरी एजेंसियों के द्वारा काम कराए जाने व स्मारकों को नुकसान पहुंचाने के मामलों को लेकर यह विवाद चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि इन विवादों के चलते शासन सचिव पुरातत्व अधिकारियों से काफी खफा है।
मंत्री की उदासीनता बड़े खतरे का संकेत
वहीं दूसरी ओर पुरातत्व कला एवं संस्कृति मंत्री बीडी कल्ला द्वारा विभाग के प्रति उदासीन रवैये के कारण भी अधिकारियों के हौसले बढ़े हुए हैं। कल्ला का यह उदासीन रवैया प्रदेश के समारकों और संग्रहालयों के लिए बड़े खतरे का संकेत है। कल्ला को बिजली और पानी महकमों से कुछ समय निकालकर पुरातत्व की ओर भी ध्यान देना होगा, नहीं तो प्रदेश की पुरा संपदाओं को अधिकारियों द्वारा बर्बाद करने में देर नहीं लगेगी।
अल्बर्ट हॉल में पानी भरने के बाद पुरातत्व अधिकारियों द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए इसे प्राकृतिक आपदा से हुआ नुकसान बता दिया गया और तुरत-फुरत में मंत्री का दौरा करा के गेंद सरकार के पाले में डाल दी गई थी। यदि अभी अधिकारियों पर नकेल नहीं कसी गई तो पुरा संपदाओं को नुकसान पहुंचने के बाद कोई न कोई बहाना बनाएंगे और सारा दोष सरकार व अन्य लोगों पर डालने से नहीं चूकेंगे।