जयपुर नगर निगम ग्रेटर के जनप्रतिनिधि हों या अधिकारी रोजाना कोरोना काल में जनता की सेवा करने के बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन शनिवार को इन सभी के चेहरों का नकाब उतर गया और इनका अमानवीय चेहरा (inhuman face)सामने आ गया। ग्रेटर के दस्ते ने विद्याधर नगर के परशुराम सर्किल स्थित कच्ची बस्ती को उजाड़ डाला और सैंकड़ों लोगों को बेघर कर दिया। कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए जहां सरकार ने प्रदेशभर में लॉकडाउन लगा रखा है, वहीं ग्रेटर ने इन लोगों के बसेरों को उजाड़कर इन्हें खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर कर दिया।
जानकारी के अनुसार परशुराम सर्किल स्थित जिस जगह यह कच्ची बस्ती बसी थी, उस जगह पहले नगर निगम का पुराना कचरा डिपो था, जिसे जनता के विरोध के बाद हटा दिया गया था। इस जगह पर खानाबदोश लोगों ने अपनी झोंपडिय़ां बना ली थी। निगम की इस कार्रवाई का स्थानीय लोगों ने भी विरोध किया है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि नगर निगम को गरीबों के झोंपड़े तो दिखाई दे गए, लेकिन उन्हें सौ मीटर दूर हरित पट्टी में सजावटी पौधे बेचने वालों का अतिक्रमण दिखाई नहीं दिया।
यदि निगम को इन्हें हटाना था, तो कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद भी हटाया जा सकता था, निगम की यह कार्रवाई प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के मानसिक दिवालियेपन को दर्शा रही है।
निगम की इस कार्रवाई के बाद हरिओम जन सेवा समिति के पास सूचना पहुंची कि उजाड़े गए परिवारों के सामने भोजन का संकट खड़ा हो गया है। इस पर समिति की ओर से करीब डेढ़ सौ लोगों का भोजन बनाकर इन गरीब लोगों को वितरित किया गया। समिति के लोगों का कहना था कि निगम दस्ते ने इन परिवारों के रहने, खाने, पहनने के सभी सामानों को बर्बाद कर दिया।
इस विकट परिस्थिति में यदि यह परिवार खुले में रहने के कारण बीमार हो जाते हैं या फिर कोरोना संक्रमित हो जाते हैं, तो कौन जिम्मेदार होगा। सरकार को इन परिवारों के बारे में कुछ करना चाहिए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।