बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार, मोदी सरकार के लिए चुनौतियां खड़ी करते दिख रहे हैं। उन्होंने पहले बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग पर जोर दिया था। वर्तमान परिस्थितियों में यह संभव नहीं था इसलिए नीतीश कुमार ने बजट में बड़ा हिस्सा हासिल करने में सफलता प्राप्त की। बिहार और आंध्र प्रदेश को अतिरिक्त पैकेज देने की घोषणा के बाद, मोदी सरकार की आलोचना की गई।
अब, नीतीश कुमार ने आरक्षण की सीमा को 65 प्रतिशत तक बढ़ाने के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट से झटका खाने के बाद, मोदी सरकार के सामने एक नई मांग रखी है। इस मांग को पूरा करना मोदी सरकार के लिए बहुत कठिन माना जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया नीतीश सरकार को बड़ा झटका
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश सरकार के लिए एक बड़ा झटका दिया। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में आरक्षण को 65 प्रतिशत तक बढ़ाने के मामले में पटना हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक को जारी रखा। शीर्ष अदालत ने पटना हाईकोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने का अनुरोध ठुकरा दिया और घोषणा की कि वह सितंबर में इस मामले की विस्तृत सुनवाई करेगी।
बिहार सरकार ने हाल ही में जातीय जनगणना के बाद जारी किए गए आंकड़ों के आधार पर आरक्षण बढ़ाने का निर्णय लिया था। इसके अनुसार, शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़े वर्ग और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को 65 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था। पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसे बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिली।
नीतीश सरकार ने रखी केंद्र के सामने नई डिमांड
बिहार में अब आरक्षण का यह मुद्दा राजनीतिक रूप से काफी गरमा गया है। इसे लेकर राजद और ने विपक्षी दलों की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा जा रहा है। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। ऐसे में इस फैसले को लागू करवाना नीतीश कुमार के लिए काफी अहम हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से झटका लगने के बाद अब सिर्फ एक ही विकल्प बचा है कि बिहार सरकार के इस फेसले को केंद्र सरकार संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दे। इस बाबत नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू की ओर से केंद्र सरकार से अनुरोध भी किया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अभी हाल में बिहार विधानसभा में कहा था कि वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वर्चा करेंगे।
नौवीं अनुसूची में शामिल करने के फायदे
विशेषज्ञों के अनुसार, किसी भी मुद्दे को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने से उसकी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। अब तक 284 मामले इस अनुसूची में शामिल किए जा चुके हैं। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी का कहना है कि उनके पास सीमित विकल्प बचे हैं और केंद्र को उनकी मांग पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
केंद्र पर दबाव डालने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे दबाव बनाने की राजनीति नहीं करते। उनका मानना है कि चीजों को व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए और बिहार के मुद्दे को भी व्यापक नजरिए से समझा जाना चाहिए।
नीतीश कुमार ने बढ़ाई मोदी सरकार की मुश्किलें
बिहार में, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिक पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों की राजनीति की है, जिससे वे लंबे समय से राजनीतिक रूप से मजबूत बने हुए हैं। अब आरक्षण का यह मुद्दा उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण बन गया है। इस मांग के कारण केंद्र सरकार भी एक धर्म संकट में फंसती नजर आ रही है।
भाजपा की धर्म की राजनीति के जवाब में जाति की राजनीति का कार्ड खेला जा रहा है। कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के नेता जातीय जनगणना की मांग करते रहे हैं। राहुल गांधी ने हाल ही में लोकसभा में आबादी के अनुसार भागीदारी की मांग की थी।
अगर मोदी सरकार नीतीश कुमार की मांग को नहीं मानती है, तो विपक्ष इसे एक मुद्दा बना सकता है।