धरम सैनी
कर्नाटक में जातिगत जनगणना मुद्दे पर हार का सामना करने के बाद भाजपा ने पांच राज्यों के चुनाव में ओबीसी वोटों के लिए तगड़ा चक्रव्यूह रचा था। ओबीसी वोटर इस चक्रव्यूह में फंस भी गए, लेकिन मंगलवार को संघ के विरोध के बाद भाजपा का यह चक्रव्यूह टूट गया है। ऐसे में अब जातिगत जनगणना की मांग उठाने वाले संगठन और राजनीतिक दल अब भाजपा को घेरेंगे और लोकसभा चुनाव में ओबीसी वर्ग के साथ हुई इस चालबाजी को उजागर करते हुए फिर इसी मुद्दे उछालेंगे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक विधानसभा चुनावों में जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर—शोर से उठाया था और इसी के दम पर वह कर्नाटक में सरकार बनाने में सफल हो पाए। ऐसे में भाजपा ने आगामी पांच राज्यों के चुनावों में 65 फीसदी ओबीसी वोटरों को भरमाने के लिए चक्रव्यूह रचा और तीन राज्यों में जीत दर्ज कर ली। लेकिन, अब यह कहा जा रहा है कि तीन राज्यों की जीत लोकसभा चुनावों में भाजपा के गले की हड्डी बन सकती है।
इस तरह रचा चक्रव्यूह
पांच राज्यों के चुनावों के लिए भाजपा और संघ ने मिलकर चक्रव्यूह रचा था। इसके लिए भाजपा और संघ के वरिष्ठ नेताओं ने दलित—पिछड़े वर्ग और आरक्षण के पक्ष में बयान जारी किए। संघ प्रमुख मोहना भागवत ने आरक्षण पर कहा था कि जब तक समाज में भेदभाव है, तब तक आरक्षण रहना चाहिए, संघ आरक्षण का समर्थन करता है। इस बयान के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के भी सुर बदल गए थे। खुद भाजपा के चाणक्य अमित शाह ने कहा कि भाजपा जातिगत जनगणना की विरोधी नहीं है। उन्होंने तेलंगाना में घोषणा भी की कि भाजपा सत्ता में आती है तो तेलंगाना का मुख्यमंत्री ओबीसी वर्ग से होगा। संघ और भाजपा ने बयानों का जो चक्रव्यूह रचा, उसमें ओबीसी वोटर फंस गया और ओबीसी वर्ग ने भाजपा को तीन राज्यों में बहुमत के साथ जीत दिलवा दी। अब मंगलवार को महाराष्ट्र से जातिगत जनगणना पर संघ का विरोध सामने आया तो, देशभर के ओबीसी वर्ग की आंखें खुली की खुली रह गई है। उसे विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि भाजपा ने सिर्फ बयानों का झांसा देकर उसे फांसा है।
यह था मामला
महाराष्ट्र में भी ओबीसी संगठन जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। यहां की महागठबंधन सरकार के सहयोगी भी इसके समर्थन में है। जातिगत जनगणना की मांग पर भाजपा—शिवसेना के मंत्री विधायक मंगलवार को नागपुर संघ मुख्यालय पहुंचे, लेकिन संघ की ओर से साफ कर दिया गया कि सिर्फ चुनाव जीतने के लिए जातिगत जनगणना नहीं होनी चाहिए। ऐसी जनगणना हुई तो उसकी रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी और बताना होगा कि किस जाति की कितनी जनसंख्या है। इससे समाज में विभाजन के बीज बोए जाएंगे और वैमनस्य बढ़ेगा।
जातियों के बीच सारा वैमनस्य हो जाएगा समाप्त
एआईसीसी ओबीसी विभाग के नेशनल कोओर्डिनेटर और सदस्य राजस्थान राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग राजेन्द्र सेन का कहना है कि भाजपा ओबीसी वर्ग को बेवकूफ बनाकर वोट लेती है। पांच राज्यों के चुनावों में भी भाजपा नेताओं ने ओबीसी वर्ग को भ्रमित करने वाले बयान दिए और चुनाव समाप्त होने के बाद यह अपने बयानों से बदल गए। संघ कहता है कि जातिगत जनगणना से वैमनस्य बढ़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं है। इससे वैमनस्यता समाप्त होगी, क्योंकि सभी को पता चल जाएगा कि उनका कितना हक है। सामाजिक विकास की जो भी योजनाएं बनती हैं, वह जनसंख्या के आधार पर ही बनती है, अगर आपके पास जनसंख्या का सही आंकड़ा नहीं है, तो आप सही योजनाएं नहीं बना पाएंगे। यही कारण है कि पिछड़ी जातियां आजादी के 75 साल बाद भी पिछड़ी हुई ही है।
राजस्थान में ओबीसी जातियों में असंतोष
आजाद समाज पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष विनीत सांखला ने कहा कि भाजपा ने गलतबयानी कर ओबीसी वर्ग को भ्रमित किया है। तेलंगाना में भाजपा के जीतने के चांस ही नहीं थे, वहां वह ओबीसी मुख्यमंत्री का वादा कर रहे थे। चुनाव से पहले ओबीसी मुख्यमंत्री का वादा भाजपा ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किया होता, तो नजारा ही अलग होता। सवर्ण जातियां भाजपा को चुनावों में जवाब दे देती। भाजपा नेता बिहार में जाकर बयान दे रहे थे कि उनका जातिगत जनगणना से कोई विरोध नहीं है। बिहार—उत्तर प्रदेश में भाजपा को ओबीसी के यादव वोटर तोड़ने हैं, इसलिए यह बयान दिए गए और मध्यप्रदेश में यादव मुख्यमंत्री बनाया गया। यह वही भाजपा है जिसने उत्तर प्रदेश में गैर यादव ओबीसी को साथ लेकर सरकार बनाई थी। अब क्षेत्रीय दलों से यादव वोटर तोड़ने के लिए यह चक्रव्यूह रचा जा रहा है। भाजपा राजस्थान में ओबीसी की बात क्यों नहीं करती? राजस्थान में भी 65 फीसदी ओबीसी वोटर हैं। यहां ओबीसी पर भाजपा ने ध्यान नहीं दिया, इसके कारण ओबीसी जातियों में भारी असंतोष है और यही जातियां लोकसभा चुनावों में भाजपा को सबक भी सिखा सकती है।