जयपुर। बंगाल के दो दिवसीय दौरे में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बोतल में बंद संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के जिन्न को फिर से बाहर निकाल दिया है। कहा जा रहा है कि सोची- समझी रणनीति के तहत शाह ने सीएए पर नया बयान दिया है ताकि बंगाल में भाजपा वोटों का ध्रुवीकरण करा सके। भाजपा को ध्रुवीकरण की राजनीति काफी रास आ रही है, ऐसे में भविष्य में अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों में भी भाजपा इसी तरह का कार्ड खेल सकती है।
एक प्रेसवार्ता में शाह ने सीएए के सवाल पर पर कहा था कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के सिर्फ नियम बनना बाकी है। शाह के बयान के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी पलटवार किया और साफ कर दिया कि तृणमूल कांग्रेस सीएए, एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ है।
सीएए के खिलाफ पूरे भारत में अल्पसंख्यक वर्ग ने जबरदस्त विरोध दर्ज कराया था। जगह-जगह शाहीन बाग जैसे आंदोलन चलाए गए। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शाह चाहते तो इस सवाल को टाल सकते थे लेकिन बंगाल चुनाव को देखते हुए उन्होंने इस पर बयान दिया ताकि यह विवाद फिर से सुर्खियों में आए और हुआ भी यही, तुरंत ही ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया सामने आ गई।
ऐसे में कहा जा रहा है कि भाजपा को ध्रुवीकरण की राजनीति काफी रास आ रही है। इसका सीधा उदाहरण हैदराबाद नगर निगम का चुनाव है। यहां भाजपा को पता था कि यहां अल्पसंख्यक वोटरों का ध्रुवीकरण ओवैसी की पार्टी की ओर है इसलिए टीआरएस से वोटरों को छीनने के लिए हिंदुओं की भावनाओं को छेड़ा गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जैसे ही भाग्यनगर का राग छेड़ा वैसे ही भाजपा तुरंत एआईएमआईएम और टीआरएस की टक्कर में आ गई।
बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या बड़ी है, इसलिए भाजपा ने यहां सीएए, एनआरसी और एनपीआर का जिन्न बोतल से बाहर निकाला है। वहीं दूसरी ओर अल्पसंख्यक वर्ग के वोटर तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और एआईएमआईएम में बंट जाएंगे, जिसका फायदा भाजपा को मिल जाएगा। इसी के चलते शाह ने यहां 200 से अधिक सीटों का दावा ठोका है।
विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा भविष्य में होने वाले चुनावों में हैदराबाद और बंगाल जैसा कार्ड हर जगह खेल सकती है। उत्तरप्रदेश में चुनावों की आहट हो चुकी है। यहां लव जिहाद के खिलाफ कानून, मथुरा और वाराणसी में मंदिर निर्माण के मामले अभी से उछलने लगे हैं। इस दौरान राम मंदिर निर्माण भी शुरू हो जाएगा, जिससे भाजपा को काफी फायदा मिलेगा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि बंगाल के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वामदलों को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दिया जाएगा। इसके बाद जहां भी चुनाव होगा, वहां अन्य छोटे विपक्षी दलों के साथ-साथ मुख्य निशाना कांग्रेस पर रहेगा।
राजस्थान में हालांकि विधानसभा चुनाव तीन साल दूर हैं लेकिन भाजपा ने अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है। प्रदेश भाजपा में इस समय जो कुछ हो रहा है, वह सीधे केंद्र के दिशा-निर्देशों पर हो रहा है। रणनीति के तहत वसुंधरा खेमे को हाशिये पर किया जा चुका है और संघ खेमा आगे आकर विवादित मुद्दों पर कांग्रेस से दो-दो हाथ की तैयारी में है। उधर एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी बीटीपी को समर्थन कर सियासत में भूचाल ला दिया है। ऐसे में यदि प्रदेश कांग्रेस अभी से सतर्क होकर भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति और ओवैसी की काट ढूंढ लेती है तो अगले चुनावों में उनकी राह आसान हो जाएगी।