विराट कोहली का क्रिकेट करियर चाहे जूनियर हो या सीनियर काफी चर्चा मे रहा है। उसका प्रमुख कारण उनकी बल्लेबाजी ही नहीं परंतु कप्तान (Captain) होना भी है। पिछले 15 सालों में जूनियर और सीनियर टीम की कप्तानी लगभग 10 साल उनके पास रही है। पिछले करीब तीन महीनों में पहले आईपीएल फिर टी-20 क्रिकेट की कप्तानी छोड़ने (relinquished) के बाद एक दिवसीय टीम की कप्तानी उनसे ले ली गयी और अब दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध टेस्ट श्रृंखला गंवाने के बाद कांटों भरा ताज (crown full of thorns) यानी टेस्ट टीम की कमान भी उन्होंने छोड़ दी है और वे टीम के लिए सिर्फ बल्लेबाज (only a batsman) के तौर पर उपलब्ध रहेंगे।
अपने करियर में बल्लेबाजी के दम पर स्टार बने विराट ने कप्तानी भी एक सितारे के तरह ही की। उनके सीनियर टीम के कप्तानी की शुरूआत से ही कोच रवि शास्त्री का उन्हे भरपूर साथ मिला। उनकी जोड़ी कुछ ऐसे थी कि बीच में जब अनिल कुंबले कोच बने तो कोहली ने पूरा जोर लगाकर कुंबले को हटाकर शास्त्री की वापसी में बड़ा किरदार अदा किया। अच्छे कप्तान की पहचान इस बात से तय होती है कि वे किस तरह की टीम और कैसे नये खिलाड़ियों को तराशते है। कोहली ने 20 विकेट लेने वाली टीम, 5 गेंदबाज लेकर खेलने वाली टीम, जीत के पीछे लगने वाली और उस प्रयत्न मे एक-दो मैच हार भी गये तो कोई बात नहीं ऐसी सोच वाली टीम बनायी।
तेज गेंदबाज उनके नेतृत्व में पनपे पर विदेशी जमीन पर जीतने का जज्बा इतना हावी था कि घरेलू जमीन पर जितानेवाले स्पिनरों की महत्ता कम होती चली गयी। आर अश्विन जैसे गेंदबाज जो आज कप्तानी के दावेदार हो सकते थे, उनको उभरने नहीं दिया गया। इतना ही नहीं पर जिस कुलचा (कुलदीप यादव एवं युवी चहल) ने कोहली को एक दिवसीय क्रिकेट मे काफी जीतें दिलाई, उनको भी एकाध बार खराब प्रदर्शन के बाद बाहर कर दिया गया।
अजिंक्य रहाणे और चेतेश्वर पुजारा जैसे खिलाड़ी सफेद गेंद क्रिकेट से पूरी तरह से बाहर कर दिये गये और टेस्ट क्रिकेट मे भी उनका आत्मविश्वास ध्वस्त किया गया। कोहली की कप्तानी मे खिलाड़ी बनने से ज्यादा बिगड़ने का सिलसिला देखने को मिला। आईपीएल मे भी उनके बाहर किये गये खिलाड़ी दूसरी टीमों में अच्छे खेलने एवं खिताब जीतने के उदाहरण अनेक हैं।
तो कोहली द्वारा कप्तानी छोड़ना भारतीय टीम के दृष्टिकोण से कोई बड़ी आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि औसतन किसी भी कप्तान का जो समय होता है, उस सीमा को कब का पार कर चुके थे कोहली। परंतु जो 3-4 खिलाड़ी उनका स्थान बड़ी सहजता से ले सकते थे, वे भी भिन्न कारणों से भारतीय टीम को लंबी सेवा नहीं दे सकते। प्रथम नाम रोहित शर्मा का जो कि आईपीएल के सबसे सफल कप्तान हैं। उन्हें 2 साल पूर्व 2019 के विश्वकप के बाद कप्तान होना चाहिए था परंतु उनको टेस्ट से निकाल बाहर करने का प्रयत्न किया गया। आज 34 साल के रोहित ज्यादा फिट भी नहीं और 2 साल से ज्यादा खेल भी शायद ना पायें।
वे यदि कप्तान बनाये गये तो अनिल कुंबळे की तरह एक छोटे समय के कप्तान होंगे। रहाणे, पुजारा एवं अश्विन अपनी करियर के आखिरी पड़ाव में फंस गये हैं तो अब युवा राहुल एवं जसप्रीत बूमरा प्रमुख खिलाड़ी रह जाते है और उनमें से कोई एक धोनी बन जाये. ऐसी कामना भारतीय चयनकर्ता कर रहे होंगे।
कोहली की बात करें तो 2019 के बाद एक भी शतक उन्होंने नहीं लगाया। टेस्ट क्रिकेट ही नहीं एक दिवसीय क्रिकेट में भी उनकी औसत कम होती जा रही है। रहाणे और पुजारा के प्रदर्शन की आड़ मे यह बात दब गयी थी। कप्तान होने के कारण कोई उनके स्थान पर उंगली नहीं उठा रहा था। पर.. अब वे कप्तान नहीं है, 33 साल कि उम्र में बल्लेबाजी का फॉर्म ढूंढ रहे है। रवि शास्त्री जैसा समर्थक भी अब साथ में नहीं है। ऐसी स्थिति मे 2019 पूर्व जैसी बल्लेबाजी करना यह एक ही सहारा है।
आशा करता हूं भारतीय बल्लेबाजी के भविष्य के लिये ऐसा ही हो और नये कम से कम 2-3 बल्लेबाज कोहली की छाया में उभर कर आयें लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो जिस तेजी से कप्तानी गयी उसी तेजी से भारतीय क्रिकेट से भी कोहली छूट सकते हैं। केवल अपने और अपने मन की करने वाले शोकांत पाते है। आशा है कि कोहली ऐसा नहीं होने देंगे और बल्लेबाजी में नये आयाम स्थापित करेंगे।