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चेहरे बदले, नाम बदले, लेकिन नहीं बदली सीट, राजस्थान विधानसभा उपचुनावों में 2 सीटों पर कांग्रेस और 1 पर भाजपा ने दर्ज की जीत

राजस्थान विधानसभा में खाली हुई तीन सीटों सहाड़ा, सुजानगढ़ और राजसमंद के लिए हुए उपचुनावों में दो पर कांग्रेस ने और एक सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत दर्ज की है। मतदाताओं ने विधानसभा चुनावों में दिए जनादेश को फिर से दोहरा दिया है, जिसके चलते इन तीनों सीटों पर नाम और चेहरे बदल गए हैं लेकिन जो सीट जिस पार्टी के पास थी, उसी पार्टी के पास रह गई है। ना तो कांग्रेस ने इन चुनावों में कुछ पाया और न ही भाजपा ने कुछ खोया है। सहानुभूति लहर चली और दिवंगत विधायकों के परिजनों ने इन सीटों पर जीत दर्ज की।

सहाड़ा से दिवंगत विधायक कैलाश त्रिवेदी की पत्नी गायत्री त्रिवेदी ने जीत दर्ज की। राजसमंद से दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की बेटी कीर्ति माहेश्वरी ने जीत दर्ज की तो सुजानगढ़ से दिवंगत विधायक भंवर लाल मेघवाल के पुत्र मनोज मेघवाल जीते। राजसमंद में भाजपा प्रत्याशी कीर्ति माहेश्वरी को 74 हजार 704 वोट मिले, कांग्रेस प्रत्याशी तनसुख बोहरा को 69 हजार 394 वोट मिले। सहाड़ा में गायत्री देवी को 81 हजार 700 वोट तो रतन लाल को 39 हजार 500 वोट मिले। सुजानगढ़ में मनोज मेघवाल को 79 हजार 253 तो भाजपा के खेमाराम मेघवाल को 43 हजार 642 वोट मिले। सुजानगढ़ में उलटफेर का कारण आरएलपी बनी और आरएलपी के उम्मीदवार सोहनलाल नायक को 32 हजार 210 वोट मिले।

उपचुनावों के परिणाम आने के बाद भाजपा में कहा जा रहा है कि पिछले ढाई साल में सरकार प्रदेश में कोई काम नहीं कर पाई, इसके बावजूद भाजपा सरकार की इस नाकामी को भुनाने में विफल रही। इसके लिए प्रदेश नेतृत्व के साथ-साथ प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की कमजोरी को भी गिनाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि पूनिया अपनी पहली परीक्षा में फेल हो गए हैं। प्रदेश नेतृत्व संगठन में गुटबाजी को खत्म नहीं कर पाया, जिसके चलते उपचुनावों में सरकार की खामियों को नहीं भुनाया जा सका और भाजपा को एक ही सीट पर संतोष करना पड़ा।

वसुंधरा राजे खेमे की ओर से उपचुनावों के दौरान दूरी बनाए जाने से भाजपा में एक वैक्यूम साफ दिखाई दे रहा था। हालांकि इस वैक्यूम को भरने की कोशिशें भी की गई और बाहर से प्रचारक बुलाए गए लेकिन भाजपा इस वैक्यूम को नहीं भर पाई। राजे गुट के अलावा भी कई दिग्गज नेता इन दिनों संगठन से किनारा करने में लगे हैं। प्रदेश नेतृत्व संगठन को जोड़कर रखने में विफल दिखाई दे रहा है इसलिए अब भाजपा के लिए जरूरी हो गया है कि वह प्रदेश संगठन में कुछ बदलाव कर इस वैक्यूम को भरने की कोशिश करे। भाजपा जितनी जल्दी इस वैक्यूम को भरने की कोशिश करेगी, भविष्य में उतना ही भाजपा के लिए फायदा होगा।

भाजपा राजसमंद सीट जीत कर खुश हो रही है लेकिन हकीकत यह है कि यहां भी भाजपा जीत के बावजूद कमजोर साबित हुई और कांग्रेस ने यहां वोटों का अंतर कम किया है। पांच हजार वोटों से जीत को बड़ी जीत नहीं माना जा रहा है। सुजानगढ़ में भी भाजपा की किरकिरी होते-होते बची है। शुरुआती रुझानों में एक बार तो आरएलपी के उम्मीदवार ने भाजपा को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था, बड़ी मुश्किल से भाजपा यहां अपनी इज्जत बचा पाई है।

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